पिछली कड़ी में हमने जाना था कि सुप्रीम कोर्ट के सामने हिंदू पक्ष ने धर्मग्रंथों के जो हिस्से पेश किए, उनमें से अधिकतर में राम जन्मस्थान - यानी वह जगह जहाँ राम पैदा हुए थे - के बारे में ठीक-ठीक कोई जानकारी नहीं है। वाल्मीकि जो राम के समकालीन कहे जाते हैं, उनके लिखे रामायण में इस बारे में कुछ नहीं है। तुलसीदास जिनके जीवनकाल (1511-1623 ई.) में ही कथित राम जन्मस्थान पर बाबरी मसजिद बनी (1528 ई.), उनके द्वारा रचित रामचरितमानस या किसी और ग्रंथ में इसके बारे में कुछ नहीं है। यहाँ तक कि गुरु नानक जो 1511-12 के आसपास राम जन्मस्थान पर गए बताते हैं, उनकी जन्म साखियों में भी इसके बारे में कुछ नहीं मिलता। अगर कुछ मिलता है तो संभवतः आठवीं शताब्दी में लिखे स्कंदपुराण के अयोध्या माहात्म्य में कि राम जन्मस्थान विघ्नेश्वर मंदिर के पूर्व में, ऋषि वशिष्ठ के आश्रम के उत्तर में तथा ऋषि लोमश के आश्रम के पश्चिम में स्थित है। इसका अर्थ यह हुआ कि राम जन्मस्थान के पश्चिम में विघ्नेश्वर मंदिर, दक्षिण में वशिष्ठ मुनि का आश्रम और पूर्व में लोमश ऋषि का आश्रम था। लेकिन मुश्किल यह है कि ये मंदिर या आश्रम आज की तारीख़ में हैं ही नहीं।
अयोध्या: 1766 में यूरोपीय पादरी ने देखा - राम जन्मस्थान था मसजिद के बाहर
- अयोध्या विवाद
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- 14 Nov, 2019

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अयोध्या से जुड़े तथ्यों पर हम विशेष सीरीज़ प्रकाशित कर रहे हैं। पिछली कड़ियों में हमने जाना कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपना फ़ैसला किस आधार पर दिया है। यह भी कि किन सबूतों को कोर्ट ने माना और वे कितने पर्याप्त थे। आज की कड़ी में पढ़िए उन लोगों, ख़ासकर, विदेशी लोगों के यात्रा वृत्तांत में अयोध्या के ज़िक्र के बारे में जो पिछले 500 सालों में अयोध्या आए थे।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो कभी अयोध्या आया हो, उसने ये आश्रम देखे हों और उनके बारे में लिखा हो। अच्छी बात है कि ऐसे कई लोग हैं जो पिछले 500 सालों में अयोध्या आए, ख़ासकर विदेश से और उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में उस दौर में राम के नाम से जुड़े विश्वासों के बारे में लिखा है। आइए, एक-एक करके उनके बारे में जानते हैं।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश