मध्य प्रदेश में मतदान तो हो गया, पर सरकार किसकी बनेगी? यदि आप कमलनाथ के उत्साह और सरकार विरोधी लहर से अंदाज़ा लगा रहे हैं तो ठहरिए ज़रा। आपका अंदाज़ा ग़लत भी हो सकता है! यक़ीन न हो तो 1998 में दिग्विजय और 2008 में शिवराज सिंह चौहान सरकार के वक़्त के चुनावी नतीजे देख लीजिए। 

साल 1998 के लहर और मुद्दाविहीन चुनाव में वोटिंग के ठीक पहले दिग्विजय सिंह सरकार के 5 साल के शासन के ख़िलाफ़ आक्रोश का ‘अंडरकरंट’ महसूस किया जा रहा था, लेकिन जब परिणाम आए थे तो कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई थी। 2008 के चुनाव में शिवराज सरकार के जाने की संभावनाएँ बताई गई थीं, मगर वे शानदार बहुमत के साथ सत्ता में लौट आए थे। मौजूदा चुनाव भी लहरविहीन और घिसे-पिटे एवं पुराने मुद्दों वाला ही रहा है। प्रदेश की 15 साल पुरानी बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ ऐंटी-इन्कंबेंसी और एक जैसे चेहरों को लेकर गुस्से की भारी फुसफुसाहट पूरे समय बनी रही।

प्रदेश में बीजेपी की सरकार को 15 और लगातार मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान को 13 साल हो रहे हैं। मौजूदा समय में सरकार विरोधी माहौल की सुगबुगाहट रही है। बीजेपी के बाग़ी भी पार्टी को परेशानियाँ पेश करते नजर आते रहे हैं। पहले बीजेपी संकेत दे रही थी कि जिन विधायकों का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं है उन्हें बदला जाएगा। पार्टी क़रीब 90 के टिकट काटने की ताल भी ठोकती रही थी, लेकिन टिकट 50 के क़रीब ही काट सकी।