उत्तर प्रदेश के नतीजों पर अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया आ गई और उसके साथ ही ईवीएम की गड़बड़ी या बारीक धांधली के आरोप भी शांत से होने लगे हैं। हो सकता है कि बीजेपी के चुनाव प्रबंधन और अपनी विफलताओं को छुपाने की रणनीति के कुछ और पेंच बाद में सामने आएं।


बीएसपी और ओवैसी की पार्टी द्वारा बीजेपी की जीत या सपा की पराजय में निभाई भूमिका के प्रमाण या फल (जैसे राष्ट्रपति चुनाव या आगे कभी मदद के लेन-देन) अभी आ सकते हैं। लेकिन यह चुनाव निश्चित रूप से बीजेपी के हक में गया जबकि पांच राज्यों के कुल विधायकों में बीजेपी के जीते विधायक पिछली बार से लगभग बीस फीसदी कम हैं। यह बीजेपी के पक्ष में हिंदुओं (खासकर अगड़ों और गैर यादव- गैर जाटव समाज के ध्रुवीकरण के साथ हुआ है) की एकजुटता और मजबूत नेतृत्व के चलते हुआ, और इसके चलते मोदी और योगी का कद बढ़ा है। यह चुनाव बताता है कि अगर हिंदुत्व जैसी गोंद और मोदी-योगी जैसा नेतृत्व (इसे इंदिरा गांधी के नेतृत्व जैसा मानना चाहिए) हो तो लोग शासन की काफी विफलताओं को भुलाकर दोबारा मौका देने को तैयार रहते हैं।