असम विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के साथ गठबंधन करने वाली कांग्रेस शायद बीजेपी के एआईयूडीएफ को सांप्रदायिक पार्टी के रूप में प्रचारित करने से थोड़ा आशंकित है। इसलिए कांग्रेस ने कहा है कि उसने सांप्रदायिक रूख़ को लेकर एआईयूडीएफ के सामने ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है।
असम में कांग्रेस की प्रचार कमेटी के अध्यक्ष और सांसद प्रद्युत बोरदोलोई ने एनडीटीवी से कहा कि एआईयूडीएफ हमारे सहयोगियों में से एक है और हमारे साथ कुछ और सहयोगी भी जुड़ रहे हैं। अगर हमने किसी सांप्रदायिक ताक़त के साथ गठबंधन किया होता तो वे हमारे साथ नहीं आते। उन्होंने कहा कि अगर एआईयूडीएफ भविष्य में किसी तरह का सांप्रदायिक रूख़ अख़्तियार करती है तो हम उसके साथ नहीं रहेंगे और इसलिए ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी गई है।
ये समझना ज़रूरी है कि कांग्रेस ने ये बयान क्यों दिया है। ट्विटर ने हाल ही में लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी और वॉइस ऑफ़ एक्सॉम नाम के ट्विटर अकाउंट्स को सस्पेंड कर दिया था। ट्विटर ने यह कार्रवाई असम पुलिस की शिकायत पर की थी। शिकायत में कहा गया था कि बीते मंगलवार को इन दो अकाउंट्स ने एक फर्जी वीडियो को शेयर किया था।
इस फर्जी वीडियो में एआईयूडीएफ के मुखिया बदरूद्दीन अजमल को यह कहते हुए दिखाने की कोशिश की गई थी कि कांग्रेस-एआईयूडीएफ का गठबंधन भारत को इसलामिक राष्ट्र में तब्दील कर देगा। कांग्रेस ने इसी संदर्भ में ‘लक्ष्मण रेखा’ वाली बात कही है।
असम चुनाव पर देखिए चर्चा-
हालांकि बोरदोलोई ने अजमल का बचाव भी किया। बोरदोलोई ने एनडीटीवी से कहा, “हमने कभी नहीं कहा कि एआईयूडीएफ सांप्रदायिक पार्टी है। अजमल, बीजेपी की तरह धार्मिक ज़हर नहीं उगलते। एआईयूडीएफ ने हमेशा अपने समुदाय के कमज़ोर लोगों के हक़ की बात की है लेकिन इसमें उसके नेताओं ने किसी तरह की नफ़रत नहीं फैलाई है।”
बोरदोलोई ने कहा कि एआईयूडीएफ के नेताओं ने कभी हिंदुओं के लिए कुछ नहीं कहा, कभी मंदिर नहीं तोड़े। उन्होंने कहा कि एआईयूडीएफ के नेता अपने समुदाय की बेहतरी के लिए काम करते रहे हैं और यह सांप्रदायिकता नहीं है।
बता दें कि बीजेपी बदरूद्दीन अजमल को सांप्रदायिक कहती रही है और जब से कांग्रेस ने उससे गठबंधन किया है, वह कांग्रेस से भी सवाल पूछ रही है।
असम में हैं 34 फ़ीसदी मुसलमान
असम में 34 फ़ीसदी आबादी मुसलमानों की है और इनमें मूल असमिया और बांग्लादेश से आए मुसलमान शामिल हैं। अजमल की असम की राजनीति में मजबूत पकड़ है और मुसलमानों के वोटों पर लगभग उनका ही कब्जा है। 2005 में बनी उनकी पार्टी एआईयूडीएफ ने बहुत तेजी से राज्य में अपना आधार मजबूत किया है। एआईयूडीएफ ने 2006 में हुए असम विधानसभा चुनाव में पहली बार लड़ते हुए 10, 2011 में 18 और 2016 में 13 सीटें जीती थीं। अजमल इत्र के बड़े कारोबारी हैं।
कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने पिछले चुनाव में गठबंधन नहीं किया था। अब जब वे एक साथ लड़ रहे हैं तो इससे बीजेपी-विरोधी वोटों के बंटवारे के रुकने की संभावना है।
बीजेपी, अजमल पर आरोप लगाती है कि वह सिर्फ़ मुसलमानों के नेता हैं और सांप्रदायिक राजनीति करते हैं। बीजेपी नेता अजमल को जिन्ना बताते रहे हैं।
कई और दल भी शामिल
असम में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के साथ सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल), आंचलिक गण मोर्चा और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ़) भी गठबंधन में शामिल हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 26 सीटें मिली थीं। इससे पहले लगातार 15 साल तक असम में उसकी सरकार रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री तरूण गोगोई की कमी पार्टी को ज़रूर खलेगी।
2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 60 सीटें मिली थीं जबकि 2011 में यह आंकड़ा 5 था। तब बीपीएफ़ बीजेपी के साथ थी और उसने 12 सीटें जीती थी। इस बार चुनाव में बीपीएफ कांग्रेस के साथ आ गयी है। बीपीएफ़ प्रमुख हगरामा मोहिलारी ने कहा है कि बीजेपी उनके बिना चुनाव नहीं जीत सकती और वे बीजेपी को असम से बाहर कर देंगे।
बीजेपी इस बार असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।
इसके अलावा ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) ने असम जातीय परिषद (एजेपी) नाम से राजनीतिक दल बनाया है और यह चुनाव भी लड़ रहा है। एजेपी और राइजर दल (आरडी) ने गठबंधन बनाया है लेकिन 9 सीटों पर ये दोनों एक-दूसरे के ख़िलाफ़ भी लड़ रहे हैं।
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