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जगनमोहन रेड्डी (दाएं) और चंद्रबाबू नायडू (बाएं)

आंध्र प्रदेशः क्या सहानुभूति लहर पर सवार होकर लौटे चंद्रबाबू नायडू

चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने 2024 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करते हुए दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में सत्ता में वापसी की और वर्तमान में 175 सदस्यीय विधानसभा में 132 सीटों पर आगे चल रही है/जीत रही है। टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में वापसी के लिए पूरी तरह तैयार हैं और उनका शपथ ग्रहण समारोह 9 जून को होने वाला है।

ये वही चंद्रबाबू हैं, जिन्हें हाल ही में करप्शन के एक पुराने मामले में जेल भेज दिया गया था। उनके साथ राज्य पुलिस ने जिस तरह का व्यवहार किया, उसे सभी लोगों ने देखा। कुल मिलाकर चंद्रबाबू की छवि को खराब करने की कोशिश हुई। रणनीति यह थी कि छवि खराब करके उन्हें चुनाव लड़ने लायक न छोड़ा जाए। लेकिन चंद्रबाबू ने सारी रणनीति पर पानी फेर दिया।
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चंद्रबाबू नायडू जब 8 महीने पहले जेल गए, तो लग रहा था कि 74 साल के चंद्रबाबू और उनकी टीडीपी हताश हैं। राजनीतिक पंडित चंद्रबाबू के लिए धुंधली संभावनाएं देख रहे थे। आरोपी के रूप में चंद्रबाबू को 52 दिनों के लिए जब जेल भेजा गया तो उनके खिलाफ कई मामले थे, जो उन्हें लंबे समय तक जेल में रखने के लिए पर्याप्त थे।

चंद्रबाबू की कैद को उनके परिवार ने टीडीपी के लिए सहानुभूति लहर में बदल दिया। टीडीपी की इस बड़ी जीत के पीछे नायडू के अलावा उनके बेटे लोकेश और पत्नी भुवनेश्वरी की कोशिशों को झुठलाया नहीं जा सकता। नायडू ने जेल से बाहर आने के बाद अपनी पार्टी का जो घोषणापत्र जारी किया, उसमें आंध्र प्रदेश के मुसलमानों से आरक्षण का वादा किया। यह गेमचेंजर हुआ। चंद्रबाबू पहले भी राज्य के सीएम रहे हैं और उन्हें विकास के लिए जाना जाता है। उनकी वो छवि बरकरार रही। युवाओं ने उनका बहुत समर्थन किया।

यह चुनाव वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और मौजूदा मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के लिए एक बड़ा झटका है। उनके प्रदर्शन में महत्वपूर्ण गिरावट हुई है। 2019 के विधानसभा चुनावों में वाईएसआरसीपी 151 विधायकों के मजबूत बहुमत के साथ आंध्र प्रदेश में सत्ता में आई थी।

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चंद्रबाबू नायडू के लिए, 2024 में हार का मतलब था उनकी 50 साल की राजनीतिक पारी का अंत हो जाना। लेकिन वो एक सूझबूझ वाले राजनेता साबित हुए। हालांकि उनकी पार्टी का भाजपा से समझौता हुआ लेकिन चंद्रबाबू ने उस समझौते को बहुत तवज्जो नहीं दी। देखा जाए तो यह समझौता मजबूरी का समझौता लग रहा है। क्योंकि न तो चंद्रबाबू नायडू को ऐसे नतीजे की उम्मीद थी और न ही भाजपा को यह उम्मीद थी कि चंद्रबाबू इतना बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे। वैसे भी चंद्रबाबू के चुनावी वादे भाजपा की नीतियों से मेल नहीं खाते हैं। जिसमें मुस्लिमों से आरक्षण का वादा प्रमुख है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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