आजादी के अमृतवर्ष में यानी स्वतंत्रता के 75 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ट्वीन टावर विध्वंस की जो घटना घटी है वह सदैव याद रखी जाएगी। विधायिका और कार्यपालिका की चुप्पी समेत विपक्ष की खामोशी भी इस विध्वंस को यादगार बनाती है। यह प्रश्न खड़ा होता है कि इस विध्वंस को सामूहिक स्वीकृति मानते हुए इसे सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय विवेक का ही विध्वंस क्यों न माना जाए?