आजादी के अमृतवर्ष में यानी स्वतंत्रता के 75 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ट्वीन टावर विध्वंस की जो घटना घटी है वह सदैव याद रखी जाएगी। विधायिका और कार्यपालिका की चुप्पी समेत विपक्ष की खामोशी भी इस विध्वंस को यादगार बनाती है। यह प्रश्न खड़ा होता है कि इस विध्वंस को सामूहिक स्वीकृति मानते हुए इसे सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय विवेक का ही विध्वंस क्यों न माना जाए?
ट्विन टावर - आज़ादी के अमृतकाल में सामूहिक विवेक का विध्वंस
- विश्लेषण
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- 29 Aug, 2022

नोएडा में करोड़ों रुपये की लागत से बने ट्विन टावर को ढहाने के बाद एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या इन इमारतों को गिराना ही एक विकल्प रह गया था? इन्हें किसी काम में नहीं लाया जा सकता था?
देश में कितनी इमारतें होंगी जो नक्शे के हिसाब से बनी होंगी? कितनी बस्तियां होंगी जो वैध करार दिए जाने से पहले अवैध होंगी? और, इसी तरह कितनी बस्तियां होंगी जो वैध करार दिए जाने का इंतज़ार कर रही होंगी? क्या ऐसी बस्तियों का भी विध्वंस कर दिया जाना चाहिए? वैध के अस्तित्व की शर्त क्या अवैध का विध्वंस हो सकता है?
इमारतें गिराना ही विकल्प रह गया था?
अवैध को वैध करने का तरीका क्या होता है? नोएडा प्राधिकरण जब नक्शे से इतर बनी इमारत के बाद बिल्डर से हर्जाना वसूल लेता है तो वह इमारत भी वैध हो जाती है। जब सरकार किसी अवैध रूप से बनी बस्तियों को मान्यता दे देती है तो वही बस्तियां वैध हो जाती हैं। ऐसे में सुपरटेक की ट्वीन इमारतें वैध हों, इसके क्या सारे विकल्प खत्म हो गये थे?