जब हम ये पंक्तियां लिख रहे हैं, विपक्षी एकता की कोशिशें स्वाभाविक ही अपने चरम पर पहुंची हुई हैं और सच्चे लोकतंत्र का आकांक्षी कोई भी देशवासी शायद ही इन कोशिशों की विफलता चाहता हो। अफसोस कि इसके बावजूद वे साफ नहीं कर पा रहीं कि उन्हें विपक्ष के नेताओं की एकता, वह जैसे भी सम्भव हो, अभीष्ट है या फिर वैकल्पिक नीतियों की एकता, जो भारतीय जनता पार्टी, उसके नायकों व सरकारों की ‘दिग्विजयी’ मंसूबों से भरी प्रतिगामी व पोंगापंथी {राजनीतिक शब्दावली में साम्प्रदायिक व विघटनकारी वगैरह} नीतियों की वास्तविक विकल्प बन सके?