जब हम ये पंक्तियां लिख रहे हैं, विपक्षी एकता की कोशिशें स्वाभाविक ही अपने चरम पर पहुंची हुई हैं और सच्चे लोकतंत्र का आकांक्षी कोई भी देशवासी शायद ही इन कोशिशों की विफलता चाहता हो। अफसोस कि इसके बावजूद वे साफ नहीं कर पा रहीं कि उन्हें विपक्ष के नेताओं की एकता, वह जैसे भी सम्भव हो, अभीष्ट है या फिर वैकल्पिक नीतियों की एकता, जो भारतीय जनता पार्टी, उसके नायकों व सरकारों की ‘दिग्विजयी’ मंसूबों से भरी प्रतिगामी व पोंगापंथी {राजनीतिक शब्दावली में साम्प्रदायिक व विघटनकारी वगैरह} नीतियों की वास्तविक विकल्प बन सके?
विपक्षी एकता: नेताओं के बजाय नीतियों पर एकता ज़रूरी
- विश्लेषण
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- 30 Aug, 2023

विपक्ष की एकता से भाजपा तब तक क्यों भयभीत हो, जब तक विपक्ष साफ़ नीयत और वैकल्पिक नीतियों के साथ सामने न आए? यदि वैकल्पिक नीतियाँ हों तो क्या कर्नाटक की तरह बिना विपक्षी एकता के भी नहीं हराया जा सकता?
बेहतर होगा कि ये कोशिशें जितनी जल्दी सम्भव हो, समझ लें कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में उसकी सरकार या सत्तारूढ़ दल को सबसे ज्यादा डर अपने नीति आधारित विपक्ष से लगता है, क्योंकि वही जनता के बीच उनकी पोल खोलकर चुनाव में उन्हें सच्ची चुनौती दे पाता है। अन्यथा मौके और दस्तूर के हिसाब से नेताओं की एकता होती, टूटती और निराश करती रहती है।