अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में भाजपा का वोट शेयर इस चुनाव में गिरा है। यह गिरावट उन्हीं राज्यों में दर्ज हुई है, जहां 2019 के आम चुनाव के बाद लोगों की आमदनी पहले के मुकाबले नहीं बढ़ी। यानी कहा जा सकता है कि अगर हमारी आमदनी नहीं हो रही है तो हम सत्तारूढ़ पार्टी को वोट क्यों दें। इंडियन एक्सप्रेस ने यह विश्लेषण केंद्रीय चुनाव आयोग और राज्यों में प्रति व्यक्ति शुद्ध घरेलू उत्पाद (एनएसडीपी) के डेटा के आधार पर किया है। किसी राज्य में लोगों की प्रति व्यक्ति आय घटने-बढ़ने को आर्थिक संकेत के रूप में लिया जाता है।
इस डेटा को समझने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने राज्यों में लोगों की कुल सालाना आमदनी को तीन हिस्सों में बांटा। जहां आमदनी 2 फीसदी तक बढ़ी उन्हें सबसे निचली श्रेणी में रखा। फिर 2.1 से 4.00 फीसदी वालों को मध्यम और 4 फीसदी वालों को उच्च श्रेणी में रखा। सभी राज्यों और यूटी में प्रति व्यक्ति एनएसडीपी की सीमा 6.1 रखी गई थी। कुछ यूटी जो एनएसडीपी डेटा नहीं रखते, उन पर विचार नहीं किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश डेटा तो यही बता रहा है कि कम-विकास वाले राज्यों में प्रति व्यक्ति राज्य आय और भाजपा के वोट शेयर में संबंध है। लेकिन मध्य और उच्च श्रेणी वाले राज्यों और यूटी में यह प्रवृत्ति उतनी साफ नहीं है। इसकी वजह और भी हो सकती हैं।
जहां प्रति व्यक्ति एनएसडीपी आय 4 फीसदी से ज्यादा थी, ऐसे 9 में से 5 राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में भाजपा ने 2019 के स्तर से वोट शेयर में थोड़ा वृद्धि दर्ज की है। हालांकि चार राज्यों - गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और अरुणाचल प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय में अपेक्षाकृत उच्च बढ़ोतरी के बावजूद भाजपा के वोट शेयर में गिरावट देखी गई। यहां भी विरोधाभास है। राजस्थान में भाजपा की लोकसभा सीटें कम हुईं है, जबकि गुजरात में सिर्फ एक सीट का नुकसान हुआ है।
इसी तरह एनएसडीपी वृद्धि दर 2.1 फीसदी से 4 फीसदी वाले नौ राज्यों और यूटी में से पांच में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा। इन पांच राज्यों में मध्य प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, त्रिपुरा और मिजोरम शामिल हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भाजपा के वोट शेयर में गिरावट देखी गई।
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