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चाबहार पोर्ट को विकसित करने पर भारत-ईरान ने सोमवार को दस साल का समझौता किया। लेकिन इस समझौते पर अमेरिका की नजरें टेढ़ी हो गईं हैं। उसने प्रतिबंधों की धमकी दी है। हालांकि अमेरिका खुद को भारत का अच्छा मित्र बताता रहा है लेकिन उसे चाबहार पर भारत-ईरान समझौता हजम नहीं हो रहा है। भारत ने यह रणनीतिक समझौता ऐसे समय में किया है जब पाकिस्तान कराची और ग्वादर पोर्ट को विकसित करने के लिए चीन की मदद काफी समय से ले रहा है। ग्वादर और चाबहार कारोबार की नजर से बहुत महत्वपूर्ण बंदरगाह हैं। ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों में माल ट्रांसपोर्ट के लिए ओमान की खाड़ी के साथ-साथ ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट पर चाबहार महत्वपूर्ण केंद्र है। इसीलिए भारत की दिलचस्पी इस पोर्ट में है।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने चाबहार बंदरगाह के विकास को धीमा कर दिया है। भारत लंबे समय से इसमें दिलचस्पी दिखा रहा था। भारत-ईरान समझौते पर अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और चेतावनी दी कि वाशिंगटन उन्हें और सख्ती से लागू करना जारी रखेगा। अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा- "कोई भी देश, कोई भी व्यक्ति जो ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रहा है - उन्हें उन संभावित जोखिमों और प्रतिबंधों को लेकर जागरूक होने की जरूरत है। वे खुद को उस तरफ ले जा रहे हैं।"
भारत और ईरान के अधिकारियों का कहना है कि इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच यह समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, आईपीजीएल यानी भारत लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश चाबहार में करेगा, जबकि फाइनेंस फंडिंग में अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर होंगे, जिससे अनुबंध का मूल्य 370 मिलियन डॉलर हो जाएगा। भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि आईपीजीएल ने पहली बार 2018 के अंत में बंदरगाह का ऑपरेशन संभाला था और तब से 90,000 से अधिक टीईयू के कंटेनर यातायात और 8.4 मिलियन टन से अधिक के थोक और सामान्य कार्गो को संभाला है।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है चाबहारः पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए चाबहार पोर्ट के जरिए भारतीय माल अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधे पहुंच सकेगा। आने वाले समय में इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनने पर सड़क और रेल परियोजना के जरिए इसका तालमेल बैठाया जाएगा और भारत को इसका सीधा लाभ होगा। भारत ने पिछले साल चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को 20,000 टन गेहूं की मदद भेजी थी। भारत ने 2021 में भी इसी बंदरगाह के दिए ईरान को पेस्टीसाइड्स की सप्लाई भी भेजी थी।
चाबहार का ऑपरेशन भारत के संभालने पर देश के कांधला पोर्ट का महत्व बढ़ जाएगा। गुजरात में कांधला बंदरगाह 550 समुद्री मील की दूरी पर चाबहार बंदरगाह के सबसे करीब है जबकि चाबहार और मुंबई के बीच की दूरी 786 समुद्री मील है। कुल मिलाकर मध्य एशिया तक भारत की सीधी पहुंच हो जाएगी। यह आर्थिक नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है।
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