डोनाल्ड ट्रम्प ने चार साल पहले यूएस कैपिटल पर हमला करने वाले अपने लगभग 1,500 समर्थकों को माफ कर दिया। अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि राष्ट्रपति पद पुनः प्राप्त करने के कुछ ही घंटों बाद अमेरिकी सरकार पर अपनी इच्छा थोपने के लिए ट्रम्प तेजी से आगे बढ़े। ट्रम्प ने इमीग्रेशन (दूसरे देशों से आवाजाही) पर अंकुश लगाने और पर्यावरण नियमों, नस्लीय और लिंग विविधता (एलजीबीटीक्यू) पहल को वापस लेने के लिए कई कार्यकारी कार्रवाइयों पर हस्ताक्षर किए। हालांकि टैरिफ बढ़ाने के लिए फौरन कोई आदेश नहीं दिया, जो उनका एक प्रमुख वादा है। लेकिन कहा कि वह फरवरी में कनाडा और मेक्सिको पर 25% शुल्क लगा सकते हैं।
सजा माफी का विवादित फैसला
6 जनवरी, 2021 को यूएस कैपिटल पर हमला करने वाले समर्थकों को माफ करने के उनके फैसले से पुलिस, कानून निर्माता और अन्य लोग नाराज हो जाएंगे। इन लोगों की जान इस अभूतपूर्व प्रकरण के दौरान खतरे में पड़ गई थी।
उस दौरान लगभग 140 पुलिस अधिकारियों पर हमला किया गया, कुछ पर केमिकल पदार्थों का छिड़काव तक किया गया और अन्य पर पाइप, डंडे और अन्य हथियारों से हमला किया गया। अराजकता के दौरान चार लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक ट्रम्प समर्थक भी शामिल था जिसे पुलिस ने गोली मार दी थी। ट्रम्प ने दूर-दराज़ ओथ कीपर्स और प्राउड बॉयज़ आतंकवादी समूहों के 14 नेताओं की जल्दी जेल से रिहाई का आदेश था।
अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम और पुनर्वास पर हमला
ट्रम्प ने अवैध इमीग्रेशन पर सख्ती से रोक लगाने के लिए तेजी दिखाई है। उनके पद की शपथ लेने के कुछ ही समय बाद, अमेरिकी बॉर्डर अधिकारियों ने उस कार्यक्रम को बंद कर दिया, जिसने स्मार्टफोन के जरिये अपॉइंटमेंट शेड्यूल करके सैकड़ों हजारों प्रवासियों को कानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति दी थी। मौजूदा नियुक्तियाँ रद्द कर दी गईं।
लगभग 1,660 अफगानी, जिन्हें अमेरिकी सरकार ने अमेरिका में पुनर्वास के लिए मंजूरी दे दी थी, उन पर रोक लग गई है। उनमें ड्यूटी पर सक्रिय अमेरिकी सैन्य कर्मियों के परिवार के सदस्य भी शामिल है। अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम और पुनर्वास को ट्रम्प ने निलंबित कर दिया है। ट्रम्प के आदेश के बाद उन सभी को लाने की फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं। ट्रम्प ने उस आदेश पर भी हस्ताक्षर किए, जिसमें अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई है। इससे फंडिंग अनलॉक हो जाएगी और उन्हें वहां सेना भेजने की अनुमति मिल जाएगी।
ट्रम्प ने जन्मजात नागरिकता छीनी
उन्होंने एक ऐसे आदेश पर हस्ताक्षर किए जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदा हुए लोगों को नागरिकता प्रदान करने वाली नीति को समाप्त कर देगा। जिससे एक लंबी अदालती लड़ाई शुरू होना तय है। अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता नीति 150 से अधिक वर्षों से लागू है। यह निर्णय अमेरिकी इमीग्रेशन नीति में एक नाटकीय बदलाव का प्रतीक है और इसका अमेरिका में पैदा हुए लाखों बच्चों, विशेष रूप से बड़े और बढ़ते भारतीय-अमेरिकी समुदाय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
ट्रम्प का कहना है कि इस सिस्टम का शोषण किया जा रहा है, खासकर भारत और चीन सहित अमेरिका में बड़े पैमाने पर लोग यूएस आ रहे हैं। यह कार्यकारी आदेश प्रभावी रूप से उन माता-पिता से पैदा हुए बच्चों को दी गई ऑटोमैटिक नागरिकता को रद्द कर देता है जो अस्थायी कार्य वीजा (जैसे एच -1 बी) पर हैं या जो ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।
भारतीयों पर सीधा असर
भारतीय-अमेरिकी समुदाय, जो अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ती इमीग्रेशन आबादी में से एक है, इस बदलाव से बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा। अमेरिकी जनगणना के अनुसार, अमेरिका में 4.8 मिलियन से अधिक भारतीय-अमेरिकी रहते हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा अमेरिका में पैदा हुआ है और जन्मसिद्ध अधिकार के आधार पर अमेरिकी नागरिकता रखता है।
यदि कार्यकारी आदेश में उस नीति में बदलाव होता है, तो अस्थायी कार्य वीजा (जैसे एच-1बी वीजा) पर या ग्रीन कार्ड की प्रतीक्षा कर रहे भारतीय नागरिकों के बच्चे अमेरिकी नागरिकता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इससे हर साल अमेरिका में भारतीय प्रवासियों से पैदा होने वाले हजारों बच्चों पर असर पड़ने की संभावना है।
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मौजूदा समय में, भारतीय माता-पिता के अमेरिका में पैदा हुए बच्चे - चाहे वे एच-1बी वीजा पर हों, ग्रीन कार्ड पर हों, या यहां तक कि बिना दस्तावेज के हों - को अमेरिकी नागरिकता मिलती है। हालाँकि, नए आदेश के तहत, कम से कम एक अमेरिकी नागरिक या स्थायी निवासी माता-पिता से पैदा हुए बच्चों को ही नागरिकता मिलेगी।
पेरिस क्लाइमेट डील से फिर हटा यूएस
ट्रम्प ने एक बार फिर पेरिस जलवायु समझौते से संयुक्त राज्य अमेरिका को वापस ले लिया। एक दशक में ऐसा दूसरी बार हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के ग्लोबल प्रयासों को इससे धक्का लगेगा। इस कदम से अमेरिका अब ईरान, लीबिया और यमन के साथ आ गया है। जो 2015 के समझौते से बाहर हैं। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए तमाम देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर समझौते किये थे। ट्रम्प ने इसे एकतरफा डील कहा है। ट्रम्प जब इससे पहले राष्ट्रपति बने थे, तब भी उन्होंने इस डील से अमेरिका के हटने की घोषणा की थी। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन पेरिस क्लाइमेट समझौते के बहुत बड़े पैरोकार थे। संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस का शीर्ष उत्पादक है। यानी ग्लोबल वार्मिंग के लिए अमेरिका भी कम जिम्मेदार नहीं है।एलजीबीटीक्यू समुदाय का यह ग्लोबल झंडा है
ट्रम्प ने LGBTQ, विविधता अधिकारों में कटौती की
अमेरिका अब सिर्फ दो लिंगों पुरुष (Male) और महिला (Female) को मान्यता देगा, जो अपरिवर्तनीय हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने नस्लीय समानता को बढ़ावा देने और एलजीबीटीक्यू + लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के मकसद से बनी कई नीतियों को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए पहल कर दी है।
आदेश में कहा गया है कि सरकार "लिंग" शब्द का इस्तेमाल करे। अमेरिका में अब पासपोर्ट और वीजा या अन्य पहचान दस्तावेज पर अपरिवर्तनीय जैविक वर्गीकरण दर्ज किया जाएगा। यानी सिर्फ मेल या फीमेल के रूप में दर्ज किया जाएगा।नागरिक और मानवाधिकार समूहों ने इसका विरोध करते हुए ट्रम्प के आदेश को चुनौती देने की कसम खाई।
सबसे बड़े एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों की वकालत करने वाले समूह मानवाधिकार अभियान के अध्यक्ष केली रॉबिन्सन ने कहा, "हम पीछे हटने या भयभीत होने से इनकार करते हैं। हम कहीं नहीं जा रहे हैं, और हम अपने पास मौजूद हर चीज के साथ इन नुकसानदेह प्रावधानों के खिलाफ लड़ेंगे।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी हटा यूएस
राष्ट्रपति ट्रम्प ने सोमवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से संयुक्त राज्य अमेरिका को अलग करने की प्रक्रिया शुरू करने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। यह भी दूसरी बार है जब अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से अलग होने की पहल की है। WHO से हटने का ट्रम्प का निर्णय संगठन की COVID-19 महामारी से निपटने की उनकी लगातार आलोचनाओं के बाद आया है, जो उनके पहले कार्यकाल के दौरान सामने आई थी।कार्यकारी आदेश में अन्य देशों, विशेष रूप से चीन की तुलना में अमेरिका से की गई है। कहा गया कि डब्ल्यूएचओ असमान रूप से यूएस से ज्यादा फंड मांगता है। जबकि अमेरिका की तुलना में चार गुना से अधिक आबादी होने के बावजूद चीन ने काफी कम फंड दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा पैसा देता है। वो डब्ल्यूएचओ की कुल फंडिंग का लगभग 18% पैसा देता है। अमेरिका की वापसी के साथ, संगठन को करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा, जिससे टीबी, एचआईवी/एड्स और अन्य संक्रामक रोगों से निपटने के प्रयासों सहित महत्वपूर्ण ग्लोबल स्वास्थ्य कार्यक्रम खतरे में पड़ सकते हैं।
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