यूक्रेन संकट ने अब पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है और मिंस्क समझौते को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है। यूक्रेन से जुड़े मिंस्क समझौते को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि यह किन हालात में बना था? मिंस्क समझौते की जड़ 2014 में हुए डोनबास युद्ध में ढूंढा जा सकता है। यह युद्ध मुख्य तौर पर यूक्रेन और यूक्रेन के अलगाववादी विद्रोही रूस समर्थित समूह के बीच में हुआ था और इसमें रूस का भी हाथ था।
दरअसल, डोनबास के दो क्षेत्रों- दोनेत्स्क और लुहान्स्क को अलगाववादी यूक्रेन से अलग करना चाहते हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रूसी भाषी लोग रहते हैं। ये वही क्षेत्र हैं जिसको लेकर डोनबास युद्ध भी हुआ था और यूक्रेन और रूस के बीच 2014 से इस तरह का संघर्ष चलता रहा है।
2014 के बाद से ही यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र में रूस समर्थित विद्रोही पनपे और बढ़ते रहे। उस वक़्त यूक्रेन के अधिकारियों और पश्चिमी देशों ने आरोप लगाया था कि इन क्षेत्रों में रूसी सैनिकों ने हमले किये थे और यूक्रेन के अलगाववादी विद्रोहियों का साथ दिया था। हालाँकि, डोनबास में रूसी सैनिकों की मौजूदगी को लेकर रूस की आधिकारिक स्थिति अस्पष्ट रही है। आधिकारिक तौर पर तो रूसी सैनिकों की मौजूदगी से इनकार किया गया था, लेकिन कई मौकों पर यह दलील दी गई कि रूसी भाषा बोलने वालों की सुरक्षा के लिए रूस 'मिलिट्री विशेषज्ञों' को तैनात करने के लिए मजबूर हुआ।
दोनों देशों के बीच उसी संघर्ष को रोकने को लेकर बेलारूस की राजधानी मिंस्क में समझौता भी हुआ था कि वे एक-दूसरे के मामले में दखल नहीं देंगे। इसे मिंस्क समझौता के तौर पर जाना जाता है। यह समझौता दो बार- पहला 2014 में और दूसरा 2015 में हुआ।
2014 का मिंस्क समझौता
यूक्रेन और रूस समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी में 12-सूत्रीय संघर्ष विराम समझौते पर सहमति व्यक्त की। इसके प्रावधानों में कैदी का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता की डिलीवरी और भारी हथियारों को वापस लेना शामिल था। लेकिन यह समझौता जल्दी टूट गया क्योंकि दोनों पक्षों ने इसका उल्लंघन किया।
2015 का मिंस्क II समझौता
रूस, यूक्रेन, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (ओएससीई) के प्रतिनिधियों और दो रूस समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं ने फ़रवरी 2015 में 13-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। उसी समय मिंस्क में इकट्ठे हुए फ्रांस, जर्मनी, रूस और यूक्रेन के नेताओं ने सौदे के लिए समर्थन की घोषणा जारी की।
समझौते के 13 बिंदु
- एक तत्काल और व्यापक युद्धविराम।
- दोनों पक्षों द्वारा सभी भारी हथियारों को वापस लेना।
- ओएससीई द्वारा निगरानी और सत्यापन।
- यूक्रेनी कानून के अनुसार दोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों के लिए अंतरिम स्वशासन पर बातचीत शुरू करने के लिए, और संसदीय प्रस्ताव द्वारा उनकी विशेष स्थिति को स्वीकार करना।
- लड़ाई में शामिल लोगों के लिए क्षमा और माफी।
- बंधकों और कैदियों का आदान-प्रदान।
- मानवीय सहायता का प्रावधान।
- पेंशन सहित सामाजिक-आर्थिक संबंधों की बहाली।
- यूक्रेन सरकार द्वारा राज्य की सीमा पर पूर्ण नियंत्रण की बहाली।
- सभी विदेशी सशस्त्र संरचनाओं, सैन्य उपकरणों और भाड़े के सैनिकों की वापसी।
- दोनेत्स्क और लुहान्स्क के विशिष्ट उल्लेख के साथ विकेंद्रीकरण सहित यूक्रेन में संवैधानिक सुधार।
- दोनेत्स्क और लुहान्स्क में उनके प्रतिनिधियों के साथ सहमत होने की शर्तों पर चुनाव।
- रूस, यूक्रेन और ओएससीई के प्रतिनिधियों वाले त्रिपक्षीय संपर्क समूह के काम को तेज करना।
मिंस्क समझौते ने सैन्य और राजनीतिक कदम निर्धारित किए जो अभी तक लागू नहीं हुए हैं। एक बड़ी रुकावट रूस का आग्रह रहा है कि वह संघर्ष का पक्ष नहीं है और इसलिए उसकी शर्तों से बाध्य नहीं है।
मिसाल के तौर पर 10वां बिंदु दोनों विवादित क्षेत्रों से सभी विदेशी सशस्त्र संरचनाओं और सैन्य उपकरणों की वापसी की बात करता है, इसमें यूक्रेन का कहना है कि यह रूसी बलों को लेकर है, लेकिन मास्को ने इनकार किया कि वहां रूस का कोई सैनिक नहीं है। हालाँकि कई मौकों पर यह दलील दी गई कि रूसी भाषा बोलने वालों की सुरक्षा के लिए रूस 'मिलिट्री विशेषज्ञों' को तैनात करने के लिए मजबूर हुआ।
अपनी राय बतायें