ब्राज़ील में राष्ट्रपति जईर बोसोनारो के ख़िलाफ़ हज़ारों लोग सड़कों पर हैं। इसलिए कि वे लोग देश में कोरोना संकट के लिए राष्ट्रपति को ज़िम्मेदार मानते हैं। जईर बोसोनारो की कोरोना पर ढुलमुल रवैये रखने, कोरोना को लेकर ओछी टिप्पणी करने के लिए ज़बरदस्त आलोचना होती रही है। कोरोना से सबसे ज़्यादा मौत के मामले में ब्राज़ील दुनिया में दूसरे स्थान पर है और वहाँ क़रीब 4 लाख 61 हज़ार लोगों की मौत दर्ज की गई है। सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले में भी वह तीसरे स्थान पर है और वहाँ अब तक 1 करोड़ 64 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं।
महिला विरोधी, समलैंगिक विरोधी बयान देने और यंत्रणा को समर्थन करने के लिए विवादों में रहे ब्राज़ील के राष्ट्रपति जईर बोसोनारो पिछले साल जून में तो कोरोना वायरस के आँकड़ों में हेरफेर को लेकर चर्चा में थे। उन्होंने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को लेकर इकट्ठे किए गए आँकड़ों को हटवा दिया था। वह पहले भी कोरोना वायरस के ख़तरों को कम कर आँकते रहे थे। वह लॉकडाउन पर दिए बयान को लेकर भी विवादों में रहे थे। राष्ट्रपति होते हुए भी वह देश में लॉकडाउन के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में भी शामिल हुए थे।
हाल के दिनों में राष्ट्रपति बोसोनारो के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा है। इसी का नतीजा है कि रियो डे जेनेरो में क़रीब 10 हज़ार लोगों ने मास्क पहनकर सड़कों पर मार्च किया। उनमें से कई 'बोसोनारो जेनोसाइड' (बोसोनारो नरसंहार) और 'गो अवे बोसोवायरस' (बोसोवायरस भाग जाओ) के नारे लगाते चल रहे थे। ऐसे ही प्रदर्शन देश के कई शहरों में हुए हैं।
'द गार्डियन' की रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति जईर बोसोनारो के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाकर उनको हटाने की मांग की है। एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार एक व्यवसायी ने कहा कि 'हमें इस सरकार को रोकना ही होगा, हमें कहना ही होगा कि अब बहुत हो गया'।
प्रदर्शन करने वाले लोगों में ग़ुस्सा इस बात को लेकर है कि बोसोनारो घर पर रहने व मास्क पहनने के नियमों का विरोध करते रहे, वैक्सीन को खारिज करते रहे और ऑक्सीजन की कमी का अंदाज़ा लगाने में नाकाम रहे जिससे मरीज़ों के मरने की नौबत आ गई।
ये वही बोसोनारो हैं जिन्होंने इस माहामारी की शुरुआत में कोरोना को 'ए लिटल फ्लू' कहकर मामूली फ्लू यानी सर्दी-जुकाम क़रार दिया था। उन्होंने पिछले साल अप्रैल महीने में देश की राजधानी ब्रासीलिया में लॉकडाउन हटाने की माँग कर रहे प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित किया था और उनका समर्थन किया था। यानी वह ख़ुद लॉकडाउन के ख़िलाफ़ हुई रैली में शामिल रहे थे। यदि किसी देश का राष्ट्रपति अपने ही देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन का समर्थन करे, उसमें शामिल हो जाए या वहाँ लोगों के बीच भाषण देने पहुँच जाए तो आप क्या कहेंगे?
अपनी राय बतायें