श्रीलंका में गुरुवार का आकस्मिक चुनाव जरूरी हो गया है क्योंकि अनुरा डिसनायके के पास निवर्तमान संसद में केवल तीन सांसद है, जिनका पांच साल का कार्यकाल अगस्त 2025 में समाप्त होने वाला है। उन्हें अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए नए जनादेश की आवश्यकता है। पड़ोसी देश में 17.1 मिलियन पात्र मतदाता हैं, जिनमें से लगभग 10 लाख अपना पहला वोट डाल रहे हैं।
श्रीलंका की संसद में 225 सीटें हैं। सभी संसद सदस्य पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। लेकिन 225 में से 29 सीटें अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय सूची के माध्यम से तय की जाती हैं। संसद में जीत हासिल करने के लिए किसी भी पार्टी को 113 सीटें हासिल करने की जरूरत होती है। मतदाताओं के पास अपनी पसंदीदा पार्टी के उम्मीदवारों के लिए तीन प्रीफ्रेंस वोट देने का विकल्प होता है। चुनाव आयोग शायद शुक्रवार को विजेता पार्टी की औपचारिक घोषणा करेगा। इसके बाद, तुरंत सरकार बनने की उम्मीद है, और 21 नवंबर को स्पीकर चुनने के लिए नई संसद की बैठक होगी।
क्या है दांव पर
डिसनायके, जो "पुरानी सरकार" के कड़े आलोचक रहे हैं, ने देश के कार्यकारी राष्ट्रपति पद को खत्म करने का वादा किया है। यह एक ऐसा सिस्टम है जिसके तहत सत्ता काफी हद तक राष्ट्रपति के अधीन केंद्रीकृत होती है। कार्यकारी राष्ट्रपति पद, जो पहली बार 1978 में राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के जरिए अस्तित्व में आया था, वर्षों से श्रीलंका में कड़ी आलोचना का शिकार रहा है। लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने इसे खत्म नहीं किया है। हाल के वर्षों में आलोचकों ने देश के आर्थिक और राजनीतिक संकटों के लिए इस सिस्टम को दोषी ठहराया था।
श्रीलंका के वामपंथी विचारों वाले राष्ट्रपति डिसनायके ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बेलआउट समझौते के हिस्से के रूप में भ्रष्टाचार से लड़ने और अपने पूर्ववर्ती रानिल विक्रमसिंघे द्वारा लगाए गए फिजूलखर्ची उपायों को समाप्त करने का वादा किया है।
अल जजीरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डिसनायके की उस महत्वाकांक्षी एजेंडे को आगे बढ़ाने की क्षमता दांव पर है जिसके तहत उन्होंने सितंबर में चुनाव जीता था। डिसनायके के एनपीपी गठबंधन को कानून पारित करने के लिए संसदीय बहुमत की आवश्यकता है और संवैधानिक संशोधन लाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है।
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के शासन के खिलाफ 2022 के विरोध प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उस समय श्रीलंका में महंगाई आसमान छूने लगी थी और विदेशी मुद्रा संकट के कारण ईंधन और भोजन की कमी हो गई तो हजारों लोग सड़कों पर उतर आए।
राजपक्षे को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद संभाला। उन्होंने देश को दिवालियापन से बाहर निकाला लेकिन आम लोगों की कीमत चुकाकर। विक्रमसिंघे के 2.9 अरब डॉलर के आईएमएफ सौदे के कारण श्रीलंकाई लोगों के जीवनयापन की लागत में वृद्धि हुई। यानी विक्रमसिंघे भी महंगाई कम नहीं हो पाई और श्रीलंका में रोजमर्रा की जिंदगी आज भी भारी मुसीबत वाली बनी हुई है। विक्रमसिंघे ने एक हरकत और भी की। उन्होंने भ्रष्ट राजपक्षे परिवार की रक्षा की। हालांकि इस आरोप से उन्होंने इनकार किया है।
अल जजीरा को श्रीलंका के अर्थशास्त्री देवका गुणवर्धने ने बताया कि “लोगों को भ्रष्टाचार के लिए राजनेताओं को जवाबदेह ठहराने सहित ‘सिस्टम परिवर्तन’ की बहुत उम्मीदें हैं। लेकिन आर्थिक हालात के बारे में भी एक बड़ी बहस हो रही है।” उन्होंने कहा, "सवाल यह है कि क्या श्रीलंका लोगों की आजीविका की रक्षा करते हुए खुद को कर्ज के जाल से बाहर निकाल सकता है, जो संकट और फिजूलखर्ची से तबाह हो गई है।"
हालांकि डिसनायके आईएमएफ सौदे के आलोचक थे और उन्होंने सौदे के पुनर्गठन के लिए अभियान चलाया था। लेकिन आईएमएफ की विजिटिंग टीम के साथ अक्टूबर की बैठक के बाद वो इस सौदे पर टिके हुए हैं यानी उनका रुख अब बदल गया है। वैसे, उन्होंने विक्रमसिंघे द्वारा शुरू किए गए गंभीर फिजूलखर्ची उपायों के लिए "वैकल्पिक साधन" की तलाश की है, और आईएमएफ टीम से कहा है कि उनकी सरकार का लक्ष्य उन श्रीलंकाई लोगों को राहत प्रदान करना होगा जो बढ़े हुए टैक्स से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
अल जजीरा के मुताबिक राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि डिसनायके की एनपीपी बहुमत हासिल करेगी, जिसने राष्ट्रपति चुनाव के बाद लोकप्रियता हासिल की है। एक विश्लेषक ने कहा- “एनपीपी का अच्छा प्रदर्शन करना लगभग तय है - एकमात्र सवाल यह है कि कितना अच्छा। अधिकांश ने सीमित सर्वे के जरिए बताया कि डिसनायके की पार्टी बहुमत हासिल कर लेगी।"
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