loader
नेपाल में राजशाही के लिए हिंसा

नेपाल में राजशाही के लिए हिंसा क्यों, ज्ञानेंद्र समर्थक टकराव के रास्ते पर

नेपाल की राजधानी काठमांडू में शुक्रवार को हिंसक प्रदर्शनों ने देश को हिलाकर रख दिया। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थकों और पुलिस के बीच हुई झड़प में कम से कम दो लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक टीवी कैमरामैन भी शामिल है, जबकि दर्जनों घायल हुए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए नेपाल सरकार ने सेना को तैनात किया और काठमांडू के कुछ हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया। ये प्रदर्शन राजशाही की बहाली की मांग को लेकर हुए, जो 2008 में समाप्त कर दी गई थी। दूसरी ओर, गणतंत्र समर्थकों ने भी एक अलग रैली निकाली, जिससे तनाव और बढ़ गया।

नेपाल में 240 साल पुरानी राजशाही को 2008 में संसद के एक फैसले से खत्म कर दिया गया था, जिसके बाद देश एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय गणतंत्र बन गया। इसके पीछे माओवादी विद्रोह (1996-2006) की बड़ी भूमिका थी, जिसने राजशाही को उखाड़ फेंकने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, हाल के वर्षों में देश में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या राजशाही की वापसी स्थिरता ला सकती है।

ताजा ख़बरें

शुक्रवार को ज्ञानेंद्र समर्थकों ने काठमांडू के तिनकुने इलाके में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी "राजा आओ, देश बचाओ" और "भ्रष्ट सरकार को हटाओ" जैसे नारे लगा रहे थे। स्थिति तब बिगड़ गई जब कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेड पर हमला किया। जवाब में पुलिस ने आंसू गैस, वाटर कैनन और रबर बुलेट्स का इस्तेमाल किया। हिंसा में एक फोटो जर्नलिस्ट की भी मौत हो गई, जो एक जलते हुए भवन में फंस गया था।

पिछले 16 सालों में नेपाल में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है। भ्रष्टाचार और आर्थिक बदहाली ने जनता का गुस्सा भड़का दिया है। प्रदर्शनकारी मीना सुबेदी (55) ने कहा, "देश को विकास करना चाहिए था। लोगों को नौकरियां, शांति और अच्छा शासन मिलना चाहिए था, लेकिन हालात बद से बदतर होते गए।" कई लोगों का मानना है कि राजशाही एक स्थिर शासन का प्रतीक थी, जो मौजूदा संकट को हल कर सकती है।

हाल ही में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सक्रियता ने भी इस भावना को हवा दी है। फरवरी में लोकतंत्र दिवस पर जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने जनता से समर्थन मांगा था। इसके बाद 9 मार्च को उनकी काठमांडू वापसी पर हजारों समर्थकों ने उनका स्वागत किया था। कुछ प्रदर्शनकारियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें भी लहराईं, जो नेपाल की राजशाही के समर्थक माने जाते हैं।

दूसरी ओर, माओवादी और वामपंथी दलों के नेतृत्व में गणतंत्र समर्थकों ने भी काठमांडू में एक रैली निकाली। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल और माधव कुमार नेपाल ने इसमें हिस्सा लिया। दहाल ने ज्ञानेंद्र को चेतावनी दी कि सत्ता की महत्वाकांक्षा उनके लिए महंगी पड़ सकती है। उन्होंने कहा, "लोगों की उदारता को कमजोरी न समझें।" उनका दावा है कि राजशाही की वापसी असंभव है और गणतंत्र ही देश का भविष्य है।

प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने हिंसा के बाद एक आपातकालीन बैठक बुलाई। वामपंथी नेताओं ने ओली पर कुशासन का आरोप लगाया और कहा कि उनकी नीतियों ने ही राजशाही समर्थकों को प्रोत्साहन दिया। उधर, ज्ञानेंद्र ने अभी तक हिंसा या मांगों पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

हालांकि राजशाही समर्थकों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इसे बहाल करना आसान नहीं होगा। नेपाल की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन गणतंत्र के पक्ष में है। फिर भी, यह हिंसा और प्रदर्शन देश में गहरे असंतोष को दर्शाते हैं, जिसे नजरअंदाज करना सरकार के लिए मुश्किल होगा।

दुनिया से और खबरें

फिलहाल काठमांडू में तनाव बरकरार है और सेना सड़कों पर गश्त कर रही है। भारत का नाम बार-बार राजशाही के समर्थन में आ रहा है। वहां के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तक आरोप लगा चुके हैं लेकिन भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही है। आखिर भारत ने सारे मामले में चुप्पी क्यों साधे रखी है। नेपाल में चीन की बढ़ती रुचि किसी से छिपी नहीं है। लेकिन भारत की प्रतिक्रिया न आना कई सवाल खड़े कर रहा है।

रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें