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ईरानः क्या परमाणु हथियारों की कीमत राष्ट्रपति रईसी ने चुकाई?

19 मई को हेलीकाप्टर दुर्घटना में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रिआसी की मौत की घटना को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यथोचित स्थान मिला। जिनमे उनके जज रहने के दौरान अत्यधिक मौत की सजायें देना। उनके सुप्रीम लीडर बनने की संभावनाएं। राष्ट्रपति रहने के दौरान सऊदी अरब से कूटनीतिक रिश्ते बनाना। चीन और रूस के साथ यूक्रेन युद्ध में ड्रोन,टैंक और तोप के गोले को उपलब्ध कराना। परमाणु हथियारों के लिए यूरेनियम का संशोधन। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बातचीत से समाधान का रास्ता छोड़ टकराव की नीति अपनाना। 
13-14 अप्रैल 2024 को इजराइल पर ड्रोन एवं ब्लॉस्टिक मिसाइल्स से अभूतपूर्व हमला करना। उनकी अंतिम यात्रा में पश्चिमी देशों की गैरहाज़िरी के बावजूद 40 से अधिक अंतरराष्ट्रीय राजनयिकों की मौजूदगी रईसी के अल्प अवधि के राष्ट्रपति पद के दौरान ईरान को मध्य पूर्व एशिया में मजबूत क्षेत्रीय शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर एवं सक्षम देश के रूप में उभरने का ही संकेत है। भारत के उप राष्ट्रपति ने उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होकर दोनो देशों के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों को और भी मजबूत किया। 

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इन सभी खबरों में तीन सुर्खियां अलग सी  दिखाई दीं।
  • पहलीः इजराइल ने 19 मई को उनके इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद के इस दुर्घटना कराने में शामिल नहीं होने का बयान जारी किया | राष्ट्रपति की हत्या एक युद्ध की स्थति पैदा कर रहीथी। क्योंकि ईरान अपनी भूमि पर जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या ( 03 जनवरी 2020 ) झेल चुका है।
दूसरीः अमेरिकी व्हाइट हाउस ने इब्राहिम रईसी के लिए कठोर शब्द इस्तेमाल करते हुए कहा कि मध्य पूर्व में चरमपंथी समूहों का समर्थन करने के लिए उनके हाथों पर खून लगा है। मई महीने की शुरुआत में ईरान और अमेरिका के प्रतिनिधि जिसका नेतृत्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के वरिष्ठ सलाहकार ब्रेट मैकगर्क और ईरान के अली बघेरी कानी कर रहे थे के बीच बातचीत अच्छी चल रही थी और किसी तरह सहमति तक पहुँचने के बिंदु के करीब थे। पर अब रईसी की मौत ने इस पर  विराम लगा दिया है | उनके बातचीत के एजेंडे में  इजराइल के राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन  होने पर ही हमास के संघर्ष का अंत के साथ साथ  ईरान के परमाणु कार्यक्रम और  तेल बिक्री प्रतिबंधों में छूट शामिल था | परन्तु अब अमेरिका अपने राष्ट्रीय चुनाव के कारण  ईरान के साथ बातचीत को आगे नहीं बढ़ाने को इच्छुक नहीं है | इसका संकेत ईरान के रईसी के हेलीकाप्टर को खोजने में सहायता  के अनुरोध को ठुकरा कर दिया |  इससे निष्कर्ष तो निकलता ही है की रईसी के नेतृत्व वाला ईरान इजराइल के अस्तित्व पर सैन्य खतरा तो बन ही गया था। 

  • तीसरीः दुर्घटनाग्रस्त हेलिकाप्टर में सवार  ईरान के विदेश मंत्री, होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन, साथ ही पूर्वी अजरबैजान प्रांत के गवर्नर, मालेक रहमती और तबरिज़ के इमाम-ए-जुमा अयातुल्ला मोहम्मद अली अल-ए हशेम, एक वरिष्ठ शिया धर्मगुरु, जो सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के अधिकारी भी थे, शामिल थे। अयातुल्ला मोहम्मद अली अल-ए हशेम कुछ मिनटों तक जिन्दा रहकर मोबाइल फ़ोन पर बातें भी की | उनका तीन हेलिकाप्टर वाले काफिले में राष्ट्रपति के साथ सफर बहुत चौंका देने वाला है। क्योंकि तबरिज़ में ईरान के ख़ुफ़िया मिसाइल के भूमिगत सिलोस हैं। 13 -14 अप्रैल को इजराइल पर मिसाइल हमले का यह प्रमुख केंद्र था।

अब जब ईरान एक कार्यवाहक राष्ट्रपति की नियुक्ति कर अपनी दिनचर्या पर वापस आकर 28 जून को नए राष्ट्रीपति के चुनाव की घोषणा कर चुका है, दुर्घटना के कारणों की जांच की भी शुरुआत हो गयी है | ब्रिटिश लेखक सर आर्थर कॉनन डॉयल ने अपने प्रसिद्ध चरित्र शार्लक होम्स के माध्यम से अपने उपन्यास, साइन ऑफ फोर (1890) में किसी भी जटिल आपराधिक घटना की जांच के दिशा को स्थापित करने के लिए के एक प्रसिद्ध सिद्धांत को उद्धृत किया है जो आज भी इस्तेमाल किया जाता है। 
उनका कहना है कि अन्य सभी संभावित कारणों को हटा दें, तो जो बचेगा वही सत्य होगा। एक बार जब आप असंभव को ख़त्म कर देते हैं, तो जो कुछ भी बचता है, चाहे वह कितना भी असंभव या नामुमक़िन क्यों न हो या कुछ ऐसा जिसके घटित होने की हम कल्पना भी नहीं करते हों, वह सत्य होना चाहिए। हेलीकाप्टर के ब्लैक बॉक्स से दुर्घटना के समय के मौसम, तकनीकी खराबी या फिर पायलट से चूक के विषय में ही जानकारी मिलेगी। पर इसके साथ की जांच अमेरिका एवं इजराइल से जुड़े एजेंसीज अथवा आंतरिक साजिश की भी होगी |

 फिलहाल अमेरिका निर्मित बेल 212  हेलीकाप्टर के ब्लैकबॉक्स के डेटा को पढ़ने के लिए ईरान को रूस या फिर चीन की सहायता लेनी पड़ेगी, जो निरपेक्ष नहीं होगी। और फिर हेलीकाप्टर के इंजन से छेड़छाड़ के लिए बहुत ही बारीकी से उसके टेक्निशयन की जांच करना पड़ सकता है | इसमें वक़्त लगेगा और उतने समय में विदेशी एजेंसीज के लिए अपना पद चिह्न मिटा देने के लिया काफी हैं। इजराइल का मोसाद इस तरह के खुफिया ऑपरेशन अंजाम देने के लिए कुख्यात है। 

(लेखक रक्षा विशेषज्ञ हैं। उनके इस लेख का अगला हिस्सा कल पेश किया जाएगा)

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राजीव कुमार श्रीवास्तव
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