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भारतीय मूल की नर्स लीलम्मा

यूएस में नस्लीय हमले का सामना क्यों कर रहे हैं भारतीय, आंकड़े भयावह हैं

ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में नफ़रत और नस्ली हिंसा बढ़ती जा रही है। भारतीय मूल की नर्स के साथ एक मरीज ने जो सलूक किया वह दिल दहलाने वाला है। उसने उनके चेहरे पर इतने मुक्के बरसाए कि सारी हड्डियाँ टूट गईं और उन्हें पहचानना मुश्किल हो गया। उसकी आँखों की रोशनी भी चली गई। इस रिपोर्ट में आगे जिक्र करेंगे कि आखिर अमेरिका में भारतीयों पर हमले क्यों बढ़ रहे हैं। पहले जानिये की वो घटना क्या है।
67 साल की भारतीय मूल की लीलम्मा अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाम्स वेस्ट हॉस्पिटल में 20 साल से अधिक समय से काम करती आ रही थीं।  19 फरवरी को भी लीलम्मा अपनी ड्यूटी निभा रही थीं। वे स्टीफन स्कैंटलबरी की मेडिकल जांच के लिए उनके पास पहुंचीं। स्टीफन स्कैंटलबरी, बेकर एक्ट के तहत भर्ती था। बेकर एक्ट मतलब उसे मानसिक संकट की वजह से जबरन हॉस्पिटल में रखा गया था। लीलम्मा उसकी हालत देखने गईं, लेकिन अचानक वो शख्स भड़क गया। 
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लीलम्मा ने अभी जांच शुरु की ही थी कि उनकी नाक पर  स्टीफन ने मुक्का मारा और मारता ही चला गया। लगभग दो मिनट तक चले इस हमले में लीलम्मा के चेहरे की लगभग सारी हड्डियाँ टूट गईं। लीलम्मा को मारते हुए स्टीफन लगातार चिल्ला रहा कि “इंडियंस आर बैड।“ यानि भारतीय बुरे होते हैं। इस हमले के बाद लीलम्मा को तुरंत आई सी यू में भर्ती करवाया गया। हमला करने के बाद स्कैंटलबरी अस्पताल से भाग गया, लेकिन पुलिस ने उसे जल्द ही गिरफ्तार कर लिया। 
लीलम्मा की हालत बेहद गंभीर है। डॉक्टरों का कहना है कि उनके चेहरे की लगभग हर हड्डी टूट चुकी है, और इस हमले के कारण उनकी दोनों आँखों की रोशनी भी जा सकती है। वो इस समय सेंट मैरी मेडिकल सेंटर के आईसीयू में भर्ती हैं।
इस घटना को अमेरिकी अधिकारियों ने नस्लीय घृणा से प्रेरित अपराध बताया। स्टीफन के खिलाफ दर्ज किये गये केस में ‘हेट क्राइम एनहांसमेंट’ जोड़ा गया। इसका दोष साबित होने पर उसे कड़ी सज़ा हो सकती है। नस्लीय हिंसा के मामलों में ये कानून पीड़ित समुदाय को न्याय दिलाने के लिए अहम भूमिका निभाते हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब अमेरिका में किसी गैर अमेरिकी को नस्लीय हिंसा झेलनी पड़ी हो। एफ बी आई की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले 2022 में अमेरिका भर में साढ़े 11 हज़ार से अधिक मामले नस्लीय हिंसा के आए थे। इससे पहले वाले साल भी जब कोविड की वजह से लोग घरों में लगभग बंद थे, दस हज़ार से ऊपर नस्लीय हिंसा का मुकदमा झेलना पड़ा था।
  • 2020 से 2022 के तीन सालों में खास तौर पर भारतीयों के खिलाफ नस्लीय हिंसा के लगभग 2,800 मामले हुए।  

2024 की इस एफ बी आई रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में बीते कुछ सालों में नस्लीय हिंसा में काफी बढ़ोतरी हुई है। यह हिंसा अधिकतर लोगों के मूल स्थान की वजह से हुई है। अकेले 2022 में नस्लीय हिंसा के शिकार लोगों की संख्या 13,000 से अधिक थी।

एफ बी आई कीइस रिपोर्ट के अनुसार वाशिंगटन, पेन्सिलवानिया, न्यू यॉर्क और मिशिगन उन अमेरिकी राज्यों में हैं जहाँ सबसे अधिक नस्लीय हिंसा होती है। हालांकि इस रिपोर्ट के मुताबिक फ्लोरिडा इन राज्यों के मुकाबले अधिक सहिष्णु नजर आ रहा है पर हालिया घटना के बाद भारतीय मूल के लोगों में गुस्सा और डर दोनों है।
इस लगातार बढ़ती नस्लीय हिंसा का कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा है। अमेरिकी समाज में बाहरी मूल के लोगों के प्रति हिंसा बढ़ रही है। जबकि ठीक इसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प अमीर प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की योजनाएं ला रहे हैं। अभी हाल में ही उन्होंने 43 करोड़ी गोल्ड कार्ड भी लांच किया है? पाने वालों को तमाम सुविधा और सुरक्षा की गारंटी भी दी है।

सवाल यहउठता है कि क्या अमेरिका में सुविधा और सुरक्षा केवल अमीरों के लिए हैं। वेअप्रवासी जो लगातार अपनी  मेहनत से अमेरिकाकी अर्थ व्यवस्था में योगदान दे रहे हैं, वे क्या यूँ ही नस्लीय भेद भाव और हिंसा का शिकार होते रहेंगे?

क्यों शिकार हो रहे हैं भारतीय

अमेरिका में बढ़ते नस्लीय हमलों की जड़ें विदेशी-विरोधी भावना, सांस्कृतिक गलतफहमी और बढ़ते राष्ट्रवादी विचारों में हैं। अमेरिका में सबसे सफल प्रवासी समुदायों में से एक होने के बावजूद, भारतीय अक्सर अपनी जातीयता, त्वचा के रंग और सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण रूढ़िवादिता और भेदभाव का सामना करते हैं। कोविड 19 महामारी के बाद से हेट क्राइम में वृद्धि ने तनाव को और बढ़ा दिया है, क्योंकि कुछ लोग गलत तरीके से एशियाई लोगों, जिनमें भारतीय भी शामिल हैं, को उस वायरस से जोड़ते हैं। इसके कारण जुबानी अपमान, शारीरिक हमले और यहां तक कि घातक घटनाएं भी हुई हैं, जिससे भारतीय समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है।
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इन हमलों का एक और कारण अमेरिका में भारतीय संस्कृति और विविधता के बारे में जागरूकता और शिक्षा की कमी है। कई अमेरिकी विभिन्न दक्षिण एशियाई समुदायों के बीच अंतर नहीं कर पाते, जिससे पूर्वाग्रह पैदा होते हैं। इसके अलावा, अमेरिकी मीडिया में वहां के भारतीयों को अत्यधिक शिक्षित और आर्थिक रूप से सफल वर्ग के रूप में दर्शाता है। इससे कभी-कभी नाराजगी और ईर्ष्या बढ़ जाती है। जिससे उन्हें और अलग-थलग महसूस होता है। हालांकि अमेरिकी वहां रह रहे भारतीयों की मेहनत को अक्सर नहीं सराहते हैं। निम्न-आय वर्ग या कमजोर क्षेत्रों में काम करने वालों के संघर्षों को वहां नजरन्दाज किया जाता है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि अमेरिका में रह रहे ब्लैक लोग भी नस्लीय हिंसा का शिकार होते हैं। 
(रिपोर्टः अणु शक्ति सिंह, संपादनः यूसुफ किरमानी)
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