अकेले जीना मुश्किल है और मरने के वक़्त अकेले रहना शायद और भी पीड़ादायक। कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे ने यह अहसास दिला दिया है। कल्पना भर कीजिए कि आपकी उम्र 80-85 के पार है। ज़िंदगी के आख़िरी पलों में आप क्या चाहेंगे? क्या हो जब उस वक़्त चाहकर भी आपके क़रीबी आपके पास न जा पाएँ? क्या हो जब आप चाहकर भी उन्हें पास नहीं बुलाना चाहें? क्या मरने के वक़्त अकेले होने का डर इस कोरोना वायरस से कम होगा?
कोरोना से मरने का डर नहीं, डर है कोरोना से अकेले में मरने का!
- दुनिया
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- 8 Apr, 2020

अकेले जीना मुश्किल है और मरने के वक़्त अकेले रहना शायद और भी पीड़ादायक। कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे ने यह अहसास दिला दिया है। क्या मरने के वक़्त अकेले होने का डर इस कोरोना वायरस से कम होगा?
इसी खौफ में अमेरिका में लाखों बुजुर्ग हैं। वे भी जो कोरोना से संक्रमित हो गए हैं और वे भी जो संक्रमित नहीं हैं। सिर्फ़ न्यूयॉर्क शहर में ही क़रीब 17 लाख बुजुर्ग हैं। उनमें से अधिकतर के लिए अकेले मरने का खौफ दूसरी महामारी बन गया है। ऐसे ही एक बुजुर्ग से 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने बात की है। इसके अनुसार, 89 वर्षीय शत़्जी वीज़बर्गर को दिल के दौरे पड़ने के लक्षण दिखे। उनके सीने में दर्द उठा। एक सेवानिवृत्त नर्स वीज़बर्गर अपने अपार्टमेंट में अकेले मरना नहीं चाहती थीं। लेकिन अगर वह अस्पताल जातीं तो उन्हें डर था कि वह कोरोनो वायरस की चपेट में आ जाएँगी और अजनबियों के बीच मर जाएँगी, उन लोगों के बीच नहीं जिनको वह बहुत चाहती हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे पता है कि मैं असुरक्षित हूँ क्योंकि मैं क़रीब 90 साल की हूँ। मैं किसी भी परिस्थिति में अस्पताल नहीं जाऊँगी।'