अकेले जीना मुश्किल है और मरने के वक़्त अकेले रहना शायद और भी पीड़ादायक। कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे ने यह अहसास दिला दिया है। कल्पना भर कीजिए कि आपकी उम्र 80-85 के पार है। ज़िंदगी के आख़िरी पलों में आप क्या चाहेंगे? क्या हो जब उस वक़्त चाहकर भी आपके क़रीबी आपके पास न जा पाएँ? क्या हो जब आप चाहकर भी उन्हें पास नहीं बुलाना चाहें? क्या मरने के वक़्त अकेले होने का डर इस कोरोना वायरस से कम होगा?