मॉडर्ना वैक्सीन के प्रभावी होने की रिपोर्ट भले ही उम्मीद जगाए, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने दुनिया के सामने चिंता बढ़ा दी है। इसमें भी अमेरिका और यूरोप तो गंभीर संकट में हैं। अमेरिका में एक दिन पहले ही 1 लाख 66 हज़ार नये मामले आए।
अमेरिका में जब राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के बाद वोटों की गिनती चल रही है तब कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं। एक दिन में एक लाख से भी ज़्यादा। दुनिया के किसी भी देश में एक दिन में इतने ज़्यादा पॉजिटिव केस नहीं आए हैं।
चीन आजकल हमारी ख़बरों के केंद्र में है। दरअसल, यह अमेरिकी ख़बरों के केंद्र में है और हमारे यहाँ उसकी कॉपी हो रही है। अमेरिका में यह चुनावी साल है और पश्चिम के लिये मौजूदा विलेन चीन है! हांगकांग में बैठे समर अनार्य से यह प्रसंग डिकोड करा रहे हैं शीतल पी सिंह।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प मार्च से ही लॉकडाउन हटाने का हट कर रहे थे, मगर मेडिकल एक्सपर्ट ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। लेकिन अब वे किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं और लॉकडाउन हटाने का फ़ैसला थोपने पर आमादा हैं। लगता है अपने चुनाव का डर उन पर इतना हावी हो गंया है कि वे अब अमरीकियों की जानों की चिंता नहीं कर रहे।
कोरोना वायरस की चपेट में जिस तरह से अमेरिका है, वह काफ़ी भयावह है। इस वायरस से मरने वालों की संख्या अब दुनिया में सबसे ज़्यादा अमेरिका में हो गई है और यह 20 हज़ार से भी ज़्यादा हो गई है।
दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका इस वक्त बीमारी की मार के आगे लाचार नज़र आ रहा है। दुनिया की आर्थिक राजधानी कहलानेवाले न्यूयार्क का हाल बेहाल है। ऐसे में छोटे, शांत शहरों में रहनेवाले खुद को ख़ुशक़िस्मत मान रहे हैं। शिकागो के नज़दीक मिसूरी के शहर सेंट लुइस में पढ़ाई कर रहे जे सुशील हैं आलोक अड्डा पर आलोक जोशी के मेहमान। बता रहे हैं अपने शहर का हाल।
अकेले जीना मुश्किल है और मरने के वक़्त अकेले रहना शायद और भी पीड़ादायक। कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे ने यह अहसास दिला दिया है। क्या मरने के वक़्त अकेले होने का डर इस कोरोना वायरस से कम होगा?
अमेरिका में कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि यूरोप के बाद अब कोरोना महामारी का केंद्र अमेरिका हो सकता है।