अमेरिका में जब राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के बाद वोटों की गिनती चल रही है तब कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं। एक दिन में एक लाख से भी ज़्यादा। दुनिया के किसी भी देश में एक दिन में इतने ज़्यादा पॉजिटिव केस नहीं आए हैं। भारत में भी जब संक्रमण अपने शिखर पर था तब भी यह क़रीब 98 हज़ार ही आया था। लेकिन अमेरिका में जब चुनाव प्रचार ख़त्म हुआ तो ऐसी स्थिति आ गई है। जब डोनल्ड ट्रंप की रैलियों में भारी भीड़ उमड़ रही थी तब भी ऐसी आशंका जताई जा रही थी। उनके विरोधी उम्मीदवार जो बाइडेन ने कोरोना संक्रमण के फैलने से रोकने के लिए जनसभाएँ नहीं कीं।
'रायटर्स' की टैली के अनुसार अमेरिका में बुधवार को कम से कम 102,591 नए संक्रमण के मामले आए हैं। यह एक दिन का रिकॉर्ड है। हालाँकि वर्ल्ड ओ मीटर की रिपोर्ट के अनुसार बुधवार को 1 लाख 8 हज़ार 389 संक्रमण के मामले आए हैं और क़रीब 1200 लोगों की मौत हुई है।
कई राज्यों के अस्पतालों में मरीज़ों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। नौ राज्यों- कोलोराडो, इडाहो, इंडियाना, मेन, मिशिगन, मिनेसोटा, रोड आइलैंड, वाशिंगटन और विस्कॉन्सिन में बुधवार को पॉजिटिव मामलों में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में अब तक 94 लाख 87 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के मामले आ चुके हैं और 2 लाख 33 हज़ार से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं।
जॉन्स हॉपकिन्स के अनुसार, कम से कम 36 राज्य पिछले सप्ताह की तुलना में अधिक नए मामले आए हैं। केवल तीन राज्य - अलबामा, मिसिसिपी और टेनेसी में स्थिति नियंत्रित लग रही है।
अमेरिका में यह एक तरह से कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर है। पहली लहर जब आई थी तब जुलाई के महीन में एक दिन में सबसे ज़्यादा मामले सामने आए थे। 24 जुलाई को देश में क़रीब 79 हज़ार संक्रमण के मामले आए थे। इसके बाद से संक्रमण के मामले कम होने शुरू हो गए थे। सितंबर आते-आते तो लगने लगा था कि वहाँ कोरोना नियंत्रित हो गया। सात सितंबर को कोरोना के 26 हज़ार से भी कम नये मामले सामने आए थे। लेकिन इसके बाद से संक्रमण के मामले बढ़ने लगे।
यही वह समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का ज़ोर पकड़ रहा था। डैमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन ने अपनी रैलियाँ इंटरनेट के ज़रिए या कारों में बैठे हुए लोगों के सामने कीं ताकि लोग महामारी से बचे रहें। इसके विपरीत राष्ट्रपति ट्रंप ने महामारी के ख़तरे की परवाह न करते हुए शहर-शहर जाकर खुली रैलियाँ की जिनमें हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ती रही।
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कोरोना के इलाज के लिए मलेरिया की दवा को लेकर भी ट्रंप ने अजीबोगरीब तर्क दिए थे। उन्होंने बिना मास्क के चुनाव प्रचार किया। उन्हें कोरोना हुआ तो अस्पताल से उठकर आ गए और चुनाव प्रचार करते रहे।
हालाँकि, यह कहा जाता रहा है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आना कोई अजूबा नहीं है, लेकिन इसका बड़ा कारण असावधानी बरतना भी रहा है। ऐसा ही यूरोप में भी हुआ था।
यूरोप फिर से कोरोना की चपेट में है। यानी महाद्वीप में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो गई है। कई देशों में लॉकडाउन लगाना पड़ा है, स्कूल, बार-रेस्तराँ बंद करने पड़े हैं। कई जगहों पर आपात स्थिति घोषित करनी पड़ी है। अब फिर से लोगों में डर का माहौल है। ऐसा उन देशों में है जहाँ कोरोना संक्रमण फैलना बेहद कम हो गया था।
उन देशों में स्थिति इतनी सुधर गई थी कि कुछ देशों में स्कूल-कॉलेज, बार-रेस्तराँ आदि तक खोल दिए गए और कई देशों में स्कूलों को खोलने की बात होने लगी थी। लोग सामान्य ज़िंदगी जीने लगे थे और लोगों ने मास्क उतार फेंका था और सार्वजनिक जगहों पर उस तरह की एहतियात नहीं बरती गई जिस तरह की कोरोना को फैलने से रोकने के लिए होनी चाहिए। यानी लोगों ने ढिलाई बरतनी शुरू कर दी थी।
तो क्या अब अमेरिका में जो रिकॉर्ड मामले आ रहे हैं वह भी इसी तरह की लापरवाही का नतीजा है?
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