ईरान के आला जनरल क़ासिम सुलेमानी की ड्रोन हमले में पिछले सप्ताह अमेरिका द्वारा की गई हत्या के बाद अमेरिकी राजनीति में घमासान छिड़ गया है। अमेरिकी राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरानी जनरल को मरवा कर अमेरिका को और असुरक्षित बना दिया है। अमेरिकी जन प्रतिनिधि सभा की डेमोक्रेटिक नेता नैंसी पेलोसी ने ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाई की घोर निंदा की है। ग़ौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ख़िलाफ़ इन दिनों महाभियोग की कार्रवाई चल रही है और इसमें नैंसी पेलोसी की अहम भूमिका बतायी जा रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के विवेक पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। पूछा जा रहा है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति के सनकीपन की वजह से दुनिया में बर्बादी का एक और मंजर देखने को मिलेगा? इसीलिए अमेरिकी राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति ट्रंप को 1973 के वार पावर्स एक्ट की ओर ध्यान दिला रहे हैं जिसमें अमेरिकी कांग्रेस को अधिकार दिया गया है कि वह अपने विवेक से युद्ध छेड़ने के राष्ट्रपति ट्रम्प के अधिकारों पर लगाम लगा सकेगी। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान के साथ नये शांति समझौता के लिए यूरोप और चीन से जो निवेदन किया उसे इन देशों ने भी नकार दिया। साफ़ है कि ईरान के ख़िलाफ़ युद्ध का उन्माद पैदा करने की कोशिशों की वजह से राष्ट्रपति ट्रम्प घरेलू और विश्व स्तर पर अलग-थलग पड़ गए हैं।
अमेरिकी राजनयिक हलकों में माना जा रहा है कि महाभियोग की कार्रवाई से अमेरिकी मीडिया और अमेरिकी जनता का ध्यान हटाने के इरादे से ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान के साथ तनाव मोल लिया है। अमेरिकी राजनीतिज्ञों को शंका है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों की खातिर ईरान के साथ सैनिक तनाव मोल ले रहे हैं ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति के आगामी चुनावों के पहले डोनाल्ड ट्रम्प अपनी राष्ट्रवादी छवि मज़बूत कर सकें। उनके ख़िलाफ़ चल रहे महाभियोग के आरोप अपने चुनावी भविष्य के लिये अमेरिकी सामरिक हितों से समझौता करने का ही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति सनकी स्वभाव के हैं इसलिये अमेरिकी सैन्य हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि उनके सनकीपन की वजह से कहीं तीसरा विश्व युद्ध नहीं छिड़ जाए। उन्होंने तीन साल के अब तक के अपने कार्यकाल में दर्जनों कैबिनेट मंत्री बर्ख़ास्त किए हैं जिनमें विदेश व रक्षा मंत्री भी शामिल हैं। लेकिन अमेरिकी राजनीतिज्ञ अब देश के हितों के साथ और खिलवाड़ होने देने को तैयार नहीं। राजनयिक हलकों में कहा जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान के साथ नया समझौता करने और शांति की जो पेशकश की है उसके पीछे मुख्य वजह अमेरिकी कांग्रेस के आला सदस्यों और अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का भारी दबाव था। इन्हीं दबावों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने निकट के सलाहकारों के साथ दिन भर गहन मंथन कर दो अमेरिकी सैन्य अड्डों पर ईरानी मिसाइलों के हमले का जवाब शांति संदेश से दिया।
इसी घटनाक्रम के बीच अमेरिकी जन प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा अपने दम पर ईरान या किसी और के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने की शक्ति छीनने वाला प्रस्ताव 194 के मुक़ाबले 224 वोटों से पारित किया है।
इस प्रस्ताव में अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा गया है कि किसी के ख़िलाफ़ युद्ध जैसी कार्रवाई करने के पहले अमेरिकी कांग्रेस से अनुमति ले। हालाँकि इस प्रस्ताव को व्यवहार में लाने के लिये अमेरिकी सीनेट से भी पारित करवाना होगा जहाँ राष्ट्रपति ट्रम्प की सत्तारुढ़ रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है लेकिन कहा जा रहा है कि रिपब्लिकन पार्टी के कई समझदार सीनेटर नहीं चाहते कि ऐसे मौक़े पर जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का माहौल है अमेरिका खाड़ी के इलाक़े में युद्ध का बिगुल बजा दे। ट्रम्प के दो साथी रिपब्लिकन सीनेटर उटा के माइक ली और कैंटुकी के रैंड पाल ने विद्रोह के तेवर अपना लिए हैं। सीनेट में रिपब्लिकन का 53-47 का बहुमत है। लेकिन दो सदस्यों के विद्रोही तेवर अपनाने से यह बहुमत घट कर 51-49 का रह जाएगा। माना जा रहा है कि अमेरिकी सीनेट में जब यह प्रस्ताव जाएगा तो कम से कम एक दो सीनेटर और विद्रोह कर सकते हैं। ऐसी हालत में अमेरिकी राष्ट्रपति पर अपने विवेक से युद्ध छेड़ने के अधिकार छिन जाएँगे।
शांति की बात क्यों कर रहे ट्रंप?
यही वजह है कि सीनेट में वोट के पहले राष्ट्रपति ट्रम्प ईरान के भड़काने वाले क़दमों को नज़रअंदाज़ किया है। राष्ट्रपति ट्रम्प के बुधवार रात को दिये शांति वाले बयान के बाद भी ईरान ने बग़दाद में अमेरिकी ठिकानों पर कुछ रॉकेट से हमले किये हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि वास्तव में यदि राष्ट्रपति ट्रम्प की चले तो वह ईरान को भड़का कर पूरे खाड़ी के इलाक़े को युद्ध की ज्वाला में धधका सकते हैं। प्रेक्षकों के मुताबिक़ भले ही अमेरिका खनिज तेल के मामले में आत्मनिर्भर हो गया हो और उसे खाड़ी से तेल सप्लाई की ज़रूरत नहीं है लेकिन अमेरिका के साथी देशों की खाड़ी के तेल पर निर्भरता ख़त्म नहीं हुई है। खनिज तेल के मामले में आत्मनिर्भर हो जाने का मतलब यह नहीं कि अपने राजनीतिक स्वार्थ की ख़ातिर राष्ट्रपति ट्रम्प पूरी दुनिया को परेशान कर दें।
खाड़ी के इलाक़े में अमेरिका के कई देशों में सैन्य अड्डे हैं जहाँ हज़ारों अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। इन देशों में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, कतर, ओमान आदि प्रमुख हैं। इन देशों में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों पर जब ईरानी बैलिस्टिक मिसाइलें बरसने लगेंगी तब खाड़ी का पूरा इलाक़ा धधक उठेगा। इसका प्रतिकूल असर तत्काल खाड़ी में खनिज तेल का उत्पादन बंद होने का रहेगा।
भारत के लिए तो यह स्थिति काफ़ी भयावह होगी इसीलिए भारतीय नेताओं ने अमेरिकी नेताओं से सम्पर्क कर संयम बरतने की अपील की। जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति से बात की, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अमेरिकी रक्षा मंत्री एस्पर और जापानी रक्षा मंत्री तारो कोनो से फ़ोन पर बात कर युद्ध से पैदा सम्भावित हालात और भारत की गम्भीर शंकाओं को ज़ाहिर किया। इन घरेलू और विदेशी दबावों के बीच राष्ट्रपति ट्रम्प ने आत्मसंयम बरतने का जो संकेत दिया है उस पर राहत महसूस की जा रही है।
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