loader

जेहादीकरण रोकने के लिये क्या भारत चीन का मॉडल अपनाए?

चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत ने भारतीय विदेश मंत्रालय और विचार संस्था ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित रायसीना डायलॉग्स में कश्मीरी युवकों को उग्रवादी विचारों से मुक्त करने यानी उन्हें जेहाद से दूर करने के लिए डिरैडिकलाइजेशन कैम्पों में भेजने और इसके अस्तित्व में रहने का खुलासा कर विवाद और बहस का एक नया मसला छेड़ दिया है।
कश्मीरी युवकों को इसलाम के प्रति अंधभक्त होने और पाकिस्तान में ही रह कर अपना उज्ज्वल भविष्य देखने को लेकर निश्चय ही लम्बे अर्से से कोशिशें  पाकिस्तान प्रायोजित तत्वों द्वारा चलती रही हैं।
सवाल यह उठता है कि मुसलिम युवकों को जेहादी बनने से कैसे रोका जाए? क्या इसके लिये चीन का शिनच्यांग मॉडल अपनाना उचित रहेगा, जहाँ उइगुर मुसलमानों को क़ैदखाने की तरह रखा जाता है।

कैसे रोकेंगे रेडिकलाइजेशन?

या फिर इन युवकों को आधुनिक शिक्षा और रोज़गार के समुचित मौके देकर,  सामाजिक भेदभाव और बहुसंख्यक समाज के आक्रामक रुख और सुरक्षा बलों के उत्पीड़क रवैये से बचाकर जेहादी बनने से रोकने की रणनीति लागू की जाए?

पिछले कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि सोशल मीडिया के जरिये न केवल मुसलिम बल्कि हिंदू युवकों को भी चरमपंथी बनाने की कोशिशें चल रही हैं। ट्विटर, फ़ेसबुक,  इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर दोनों समुदायों द्वारा एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काने वाली बातें काफी लिखी जाती हैं। सोशल मीडिया के जरिये ही कई मुसलिम युवक अल क़ायदा और इसलामिक स्टेट में भर्ती होने को प्रेरित होते देखे गए हैं। अल क़ायदा ने वेब मैगेजिन ‘इंस्पायर’ का इस्तेमाल युवकों को आकर्षित करने के लिये किया है और इसकी चपेट में ब्रिटेन जैसे विकसित और समृद्ध समाज के मुसलिम युवक भी आए हैं। इस आलोक में 2014 के नवम्बर में भारत के खुफ़िया ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आसिफ़ इब्राहीम ने जेहादीकरण रोकने के उपायों पर एक  रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आला पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों के सामने पेश की थी। वह आज छह साल बाद भी उतनी ही प्रासंगिक  है, जिसका यहाँ जिक्र जनरल रावत के बयान के मद्देनज़र करना उचित होगा।

डीरैडिकलाइजेशन

निदेशक इब्राहीम के मुताबिक़ प्रतिजेहादी अभियान को सात स्तरों पर चलाना होगा ताकि युवकों को आतंकवादी गुटों में भर्ती होने से रोका जाए। इसके लिये उन्होंने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक,  नियोक्ता और मीडिया, सरकार और सुरक्षा बलों और अंतरराष्ट्रीय समुदायों के स्तर पर काम करने की रणनीति बताई थी।

इसके साथ ही परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। परिवारों को अपने बेटे बेटियों के हावभाव और व्यवहार  पर नजर रखने को कहना होगा, माताओं, पत्नियों और बहनों की भी भूमिका इसमें अहम होगी। इसके अगले यानी सामुदायिक स्तर पर हमें आपसी सम्पर्क में रहना होगा।
मुसलिम उलेमाओं को साथ लेना अहम होगा। कई मुसलिम उलेमाओं ने खुलेआम हिंसा का विरोध किया है और युवकों से सार्वजनिक अपील की है कि वे जेहादी विचारों का त्याग करें औऱ आतंकवादी तत्वों से दूर रहें।

पाठ्यक्रम 

लेकिन आसिफ़ इब्राहीम का जो सबसे अहम सुझाव है वह शैक्षणिक स्तर पर है, जहाँ छात्रों को ऐसे पाठ्यक्रम पढाने होंगे जो सहनशीलता, समानता, धर्मनिरपेक्षता और बहुसंख्यकवाद को सामाजिक जीवन का मौलिक आधार अपनाने की बात करता हो। यहाँ पर सामाजिक और धार्मिक संगठनों की भूमिका भी अहम हो जाती है।

नियोक्ताओं को भी देखना होगा कि वे अपने कर्मचारियों के साथ भेदभाव का रवैया नहीं अपना  रहे हैं। शेक्षणिक संस्थानों को भी देखना होगा कि वे निर्धारित पाठ्यक्रमों और पुस्तकों का ही अनुपालन करें।  इसके अलावा शिक्षण संस्थानों को अपने छात्रों पर बारीक निगाह रखनी होगी। मीडिया को आतंकवादी तत्वों द्वारा किये गए अत्याचारों को भी उजागर करना होगा और ऐसी रिपोर्टें देनी होगी, जिसमें आत्मसमर्पण कर लौटने वाले आतंकवादियों की आपबीती  लोगों को बताई जाए ताकि उग्रवादी सोच विकसित कर रहे युवक इससे प्रेरणा लें।
आसिफ़ इब्राहीम के मुताबिक युवकों को जेहाद के रास्ते जाने से रोकने के लिये समाज और सरकार को साथ आना होगा ताकि निर्दोष युवक आतंकवाद की ओर आकर्षित नहीं हों।

भारत जैसे बहुधार्मिक, बहुभाषाई, बहुसांस्कृतिक समाज में किसी भी समुदाय को ऐसा महसूस नहीं हो कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। 

अल्पसंख्यक समाज और इसके युवकों को यह भरोसा हो कि एजेंसियां निष्पक्ष रवैया अपनाएंगी। सामाजिक और सरकारी भेदभाव और उत्पीड़न ही किसी समुदाय को हिंसक रुख अपनाने को बाध्य करता है।
सवाल यह उठता है कि क्या केन्द्र और राज्य सरकारें जेहादीकरण को रोकने के लिये किसी समन्वित रणनीति पर काम करने को लेकर गम्भीर हैं या केवल डंडे या बंदूक के ज़ोर पर उन्हें काबू में करने की कोशिश होगी।
निश्चय ही ऐसे हालात का नाजायज़ फाय़दा कट्टरपंथी तबका और पड़ोसी पाकिस्तान उठाने की कोशिश करता है। लेकिन जब हम जेहादीकरण रोकने के लिये युवकों को  कैम्पों में भेजने की बात करेंगे तो हमें उसी तरह की अंतरराष्ट्रीय निंदा का शिकार होना पडेगा जैसा कि चीन अपने शिन्चयांग प्रदेश में लाखों उइगुर मुसलमानों को क़ैद कर उन्हें शिक्षित करने की असफल  कोशिश कर रहा है।  

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
रंजीत कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

इंडिया गठबंधन से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें