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चीनी कंपनी ज़ेनहुआ के पास हैं 24 लाख लोगों के डेटा, निशाने पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया भी

चीन पर डेटा चुराने का आरोप पहले भी लग चुका है। पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिका में पढ़ रहे या शोध कर रहे एक हज़ार चीनियों के वीज़ा रदद् कर दिए। इन लोगों पर आरोप है कि वे वहां शोध कार्य चुराने के मकसद से गए है। वे वहां के विश्वविद्यालयों से तमाम तरह की बौद्धिक संपदा चुरा लेते हैं और भाग कर अपने देश वापस चले आते हैं।
प्रमोद मल्लिक
चीन ने भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों को निशाना बनाया है और लाखों लोगों के ख़ुफ़िया डेटा चुराए हैं। उसके निशाने पर समाज के हर वर्ग के लोग हैं, राजनेता से लेकर पॉप सिंगर और सेना प्रमुख से लेकर तस्कर तक, हर तरह के लोगों के ख़ुफ़िया डेटा वह एकत्रित कर रहा है।
ब्रिटेन से छपने वाले अख़बार 'द गार्जियन' ने एक ख़बर में कहा है कि चीनी कंपनी ज़ेनहुआ डेटा इनफ़ॉर्मेशन लिमिटेड के पास 24 लाख लोगों की खुफ़िया जानकारियाँ हैं। इनमें भारत के 10 हज़ार लोगों के अलावा ऑस्ट्रेलिया के 35 हज़ार लोगों की जानकारियां भी शामिल हैं।
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साइबर जासूसी!

इस अख़बार के मुताबिक़, ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा स्थित इंटरनेट 2.0 नामक साइबर कंसलटेन्सी कंपनी ने कहा है कि उसने ज़ेनहुआ के लीक हुए डेटाबेस में से 2.50 लाख लोगों के डेटा निकाल लिए हैं। इनमें 52 हज़ार अमेरिकी, 35 हज़ार ऑस्ट्रेलियाई और 10 हज़ार ब्रिटिश हैं। 
ऑस्ट्रेलिया मीडिया हाउस एबीसी न्यूज़ के मुताबिक इसके अलावा इंडोनेशिया के 2,100, मलेशिया के 1,400, न्यूजीलैंड के 734 और पापुआ न्यू गिनीया के 138 लोगों के डेटा चुराए गए। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक इसके अलावा 10 हज़ार भारतीय तो हैं ही।

डेटा चोरी!

दरअसल हुआ यह कि यह डेटाबेस क्रिस्टोफ़र बॉल्डिंग को लीक कर दिया गया, जो पहले चीन के शेनज़ेन शहर में पढ़ाते थे। यह शहर गुआंगदांग प्रांत में है और हॉन्ग कॉन्ग के पास है।  बॉल्डिंग ने इंटरनेट 2.0 के साथ मिल कर इस डेटाबेस से जानकारियां निकालीं।

बॉल्डिंग ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' समेत 5 अख़बारों को यह जानकारी लीक कर दी।

बॉल्डिंग ने 'द गार्जियन' से कहा कि 'डेटा एकत्रित करने की यह प्रक्रिया बेहद जटिल और उन्नत है, इसमें बहुत ही उन्नत भाषा और क्लासीफ़ाइड टूल्स का प्रयोग किया गया है।'

चीन पर शोध करने वाली एन-मेरी ब्रैडी ने द गार्जियन से कहा, 

'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीन के आतंरिक सुरक्षा मंत्रालय ने मिल कर अलग-अलग देशों की विदेश नीति और आर्थिक स्थितियों से जुड़े खुफ़िया डेटा चुराए हैं और यह काम काफी पहले से चल रहा है।'


एन-मेरी ब्रैडी, चीन शोधकर्ता, ऑस्ट्रेलिया

निजी कंपनी 

उन्होंने कहा कि 'पहले यह काम सरकारी मशीनरी और उनकी एजंसियां किया करती थीं, पर अब यह काम निजी कंपनियों को दिया जाने लगा है, यह आश्चर्य की बात है।'  

कैनबरा के रॉबर्ट पॉटर ने 'द गार्जियन' से कहा कि डेटा एकत्रित करने का यह काम 'बेहद महात्वाकांक्षी' है, जासूसी के लिहाज से यह 'बहुत ही मूल्यवान है।'

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी

ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीच्यूट के साइबर सेंटर की सामंथा हॉफमैन ने द गार्जियन से कहा, 'हो यह रहा है कि चीन और चीन की कंपनियां पूरी दुनिया से बहत बड़ी मात्र में डेटा इकट्ठा कर रही हैं और चीनी सरकार को दे रही है ताकि वे उसके हिसाब से अपनी सैन्य नीतियां बनाएं, सुरक्षा की तैयारियां करें और प्रचार करें।'

निशाने पर ऑस्ट्रेलिया

दूसरी ओर ऑस्ट्रेलियाई मीडिया कंपनी एबीसी न्यूज़ ने कहा है कि जिन 35 हज़ार ऑस्ट्रियाइयों के खुफ़िया डेटा एकत्रित किए गए हैं, वे सैन्य अधिकारी, राजनयिक, प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े लोग, व्यवसाय जगत, पत्रकार, वकील वगैरह हैं, राजनेता तो हैं ही। इससे यह हुआ है कि पूरे ऑस्ट्रेलियाई समाज का सारा सबकुछ चीन को पता है, उसकी पूरी तैयारियां, उसकी कमजोरियां, उसकी ताकत, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति वगैरह, सबकुछ का पूरा कच्चा चिट्ठा इस चीनी कंपनी के पास है।
लेकिन 656 ऑस्ट्रेलियाइयों पर विशेष रूप से नज़र रखी गई है, उनमें अधिक दिलचस्पी ली गई है। ऐसा क्यों किया गया है, इन्ही लोगों पर ख़ास ध्यान क्यों दिया गया है, यह पता नहीं चल सका है। इस सूची में रिटायर्ड नौसेना प्रमुख और लॉकहीड मार्टिन के पूर्व प्रमुख रेडॉन गेट्स, चीन में राजदूत ज्यॉफ़ रेबी, तसमानिया के प्रधानमंत्री टॉन रंडल और पूर्व विदेश मंत्री बॉब कॉर शामिल हैं।

गायिका भी!

लेकिन गायिका नताली इंब्रग्लिया, न्यूज़ कॉर्प के पत्रकार एलन विनेट और एबीसी के निदेशक जॉर्जी सॉमरसेट पर भी ख़ास नज़र रखी गई।लेकिन पहले कभी अपराध किए हुए लोगों पर चीन की नज़र क्यों है, पता नहीं। ज़ुनैद थोर्न, धोखाधड़ी करने वाले रॉबर्ट एंड्रयू और बेईमानी के लिए अदालत में पेश किए गए गेविन मूर की भी जासूसी की गई।

वीज़ा रद्द

चीन पर डेटा चुराने का आरोप पहले भी लग चुका है। पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिका में पढ़ रहे या शोध कर रहे एक हज़ार चीनियों के वीज़ा रदद् कर दिए। 
अमेरिका में काम कर रहे चीनी शोधकर्ताओं पर आरोप लगता है कि वे वहां शोध कार्य चुराने के मकसद से जाते है। वे वहां के विश्वविद्यालयों से तमाम तरहे की बौद्धिक संपदा चुरा लेते हैं और भाग कर अपने देश वापस चले आते हैं।
इसका एक सनसनीखेज मामला पिछले महीने सामने आया जब एक चीनी शोधकर्ता अपने विश्वविद्यालय से भाग कर फिलाडेल्फिया स्थित वाणिज्य दूतावास की शरण में चला गया जब अमेरिकी पुलिस उसे तलाश रही थी।
ऐसे में चीनी कंपनी पर यह आरोप आश्चर्यजनक नहीं है। लेकिन उसकी जाँच होनी बाकी है।
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