सीएए-एनआरसी का विरोध करने वाले लोगों को दंगों का अभियुक्त बनाने, उन पर यूएपीए और राजद्रोह का मुकदमा लगाने से कई सवाल खड़े होते हैं। राजनीतिक विरोधियों से राजनीतिक तरीकों से निपटने के बजाय राज सत्ता का दुरुपयोग करते हुए विरोध की आवाज़ को दबाया जा रहा है। यह भारत तक सीमित नहीं है। दुनिया के कई देशों में है।
यह भी संयोग नहीं है कि यह प्रवृत्ति उन जगहों पर ज़्यादा साफ दिख रही है जहां सत्ता में बहुत ही लोकप्रिय, ताक़तवर व्यक्ति बैठा हो, जिसके पास समर्थकों का एक बहुत ही बड़ा और लगभग 'भक्त' बन चुका समूह हो, जो उसकी तमाम ग़लतियों को अनदेखी तो करता ही हो, उसके विरोध को ही राष्ट्र का विरोध मान लेता हो और उसे अक्षम्य अपराध समझता हो।
इसके कुछ ताज़ा उदाहरण हैं, जो चिंतित करने के लिए काफी हैं।
चीन
चाइनीज़ पीपल्स पोलिटिकल कंसलटेटिव कॉन्फ्रेंस के सदस्य और रियल स्टेट टाइकून समझे जाने वाले रेन झिचियांग को जब भ्रष्टाचार के मामलों में 18 साल की सज़ा सुनाई गई तो लोग चौंके। अदालत ने उन पर 6 लाख डॉलर का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने फ़ैसले में कहा कि झिचियांग ने पद पर रहते हुए सरकारी कोष से 1.63 करोड़ डॉलर का घपला किया, उन्होंने सरकारी कोष को 1.72 करोड़ डॉलर का चूना भी लगाया।झिचियांग चीनी सरकार की एक रियल स्टेट कंपनी के पूर्व प्रमुख हैं, वह चीन के एलीट कम्युनिस्ट समाज से आते हैं, बेहद लोकप्रिय थे और चीनी सोशल मीडिया सीना वीबो पर उनके 3.70 करोड़ फॉलोअर थे।
राष्ट्रपति की आलोचना
लेकिन झिचियांग ने एक ब्लॉग में कथित तौर पर चीनी राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग की कोरोना से लड़ने के उनके उपायों की आलोचना कर दी। उन्होंने किसी का नाम लिए बग़ैर कहा,
“
'मैंने एक सम्राट को अपने नए कपड़े लोगों को दिखाते हुए नहीं देखा, मैंने देखा कि एक जोकर अपने कपड़े उतार कर खड़ा है और फिर भी ख़ुद को सम्राट समझ रहा है।'
रेन झिचियांग, चीनी कम्युनिस्ट नेता
इसके बाद ही मार्च महीने में उन्हें उनकी बहन के घर से पुलिस उठा ले गई, वे 5 महीने तक गायब रहे और जुलाई में उन्हें बीजिंग की अदालत में पेश किया गया।
बीजिंग की एक अदालत ने कहा कि रेन झिचियांग ने अपना अपराध माना है फ़ैसले को स्वीकार कर लिया है। झिचियांग अभी 69 साल के हैं, सज़ा खत्म होगी तो वह 87 के होंगे।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
चीन के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपने संपादकीय में लिखा कि किस तरह झिचियांग ने अपने पद का दुरुपयोग किया और ऐसे लोगों को सज़ा मिलनी ही चाहिए ताकि दूसरे ऐसा न करें।
सच तो यह है कि रेन झिचियांग के बहाने चीनी व्यवस्था ने यह संकेत दे दिया है कि किसी तरह की आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी, राष्ट्रपति का मामूली विरोध भी नहीं सहा जाएगा, भले ही वह ताक़तवर और पार्टी का ही आदमी क्यों न हो।
रूस
सोवियत संघ के पतन के बाद रूस को अपने पाँव पर खड़ा करने वाले सबसे बड़े और सबसे लोकप्रिय नेता व्लादिमीर पुतिन को चुनौती देने वाले अलेक्सेई नैवलनी के साथ तो इससे भी बुरा व्यवहार हुआ। सर्बिया के एक घरेलू उड़ान में उनकी तबियत ऐसी खराब हुई कि उन्हें जर्मनी ले जाया गया। वहां वह 32 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद बीते दिनों बाहर आए हैं।
जर्मनी, फ्रांस और स्विटज़रलैंड के डॉक्टरों ने कहा कि नैवलनी को ज़हर दिया गया, उन्हें नर्व एजेंट नोविचोक के ज़रिए मारने की कोशिश की गई। यह आरोप गंभीर इसलिए भी है कि इसके पहले 2018 में रूस के डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिपल और उनकी 33 साल की बेटी यूलिया की लंदन में संदेहास्पद स्थितियों में मौत होने के बाद डॉक्टरों ने कहा था कि मौत की वजह नर्व एजेंट नोविचोक है। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि यूरोपीय देशों ने रूस के 130 राजनयिकों को बाहर निकाल दिया था।
पुतिन को दी थी चुनौती
सर्गेई नैवलनी ने जब पुतिन का विरोध किया और प्रदर्शन किया तो तो एक बार उन्हें 15 दिन जेल की सज़ा हुई, दूसरी बार भ्रष्टाचार के मामले में 5 साल की सज़ा सुनाई गई। रेन झिचियांग की तरह नैवलनी पर भी किरोव प्रांत के लेनिनस्की ज़िले में सरकारी पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। बाद में वह जेल से छूटे और पुतिन के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की घोषणा की। मास्को में उनकी पहली सभा में ही 1 लाख 20 हज़ार लोग मौजूद थे। रूस जैसे देश के लिए यह बहुत बड़ी संख्या है। बाद में उन्हें एक बार फिर गिरफ़्तार किया गया, उन पर कई तरह के आरोप लगाए गए। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव का बॉयकॉट करने की अपील की और गिरफ्तार हुए। पुतिन ने जब राष्ट्रपति का पदभार 2018 में लिया तो नैवलनी जेल में थे।
रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
नर्व एजेंट हमले के पीछे कौन?
इसके बाद उन पर कथित रूप से नर्व एजेंट से हमला हुआ। यह अहम है कि नर्व एजेंट सिर्फ रूसी सेना और सुरक्षा की एजंसियों के पास ही है, वह आम जनता तक नहीं पहुंच सकता।
चीन और रूस, इन दोनों ही देशों में एक समानता यह है कि दोनों के राष्ट्रपति बेहद लोकप्रिय हैं, वे एक तरह से आइकॉन बन चुके हैं, कोई उनका विरोध नहीं करता, कोई उनके खिलाफ़ मुंह नहीं खोल सकता।
ताक़तवर नेता की तानाशाही!
पुतिन इतने मजबूत हैं कि 2000 से 2004 और 2004 से 2008, दो बार राष्ट्रपति रहने के बाद संविधान को चकमा देने के लिए वह प्रधामंत्री बन गए और अपने सहयोग दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनवा दिया। प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने संविधान संशोधन करवाया और फिर राष्ट्रपति बन गए।बीते साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में प्रस्ताव पारित कर दिया कि शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति पद पर बने रह सकते हैं, कोई समय सीमा नहीं होगी, बस पार्टी की मुहर लगनी चाहिए।
माओ त्सेतुंग के बाद जिनपिंग अकेले नेता हैं जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव, चीन के राष्ट्रपति और चीन की केंद्रीय मिलिटरी कमीशन के प्रमुख, तीनों पद पर एक साथ बने हुए हैं। माओ के बाद अब तक के सबसे ताकतवर नेता देंग शियाओ पिंग पार्टी महासचिव और मिलिटरी कमीशन के प्रमुख थे, लेकिन वह राष्ट्रपति नहीं थे।
क्या ये घटनायें भारत के लिये कोई संदेश है! क्या विपक्ष के इस आरोप में दम है कि भारत में राजनीतिक विरोध के दिन गए, आन्दोलन के दिए गए, अब नया भारत बन रहा है? या फिर भारत में लोकतंत्र नई करवट ले रहा है?
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