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पाकिस्तान के हाथों होगी तालिबान सरकार की डोर?

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत उस अनस हक्क़ानी ने की है जो पाकिस्तान में लंबे समय तक रहे हैं, क्वेटा शूरा के प्रमुख रहे हैं और उनके भाई सिराजुद्दीन हक्क़ानी अभी भी पाकिस्तान में ही हैं। क्या है इसका मतलब? क्या उनकी नकेल पाकिस्तान के हाथों नहीं होगी?

प्रमोद मल्लिक

क्या अफ़ग़ानिस्तान में बनने वाली तालिबान सरकार की डोर पाकिस्तान के हाथों में होगी? क्या पाक ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई अपने लोगों को इस तालिबान सरकार में शामिल करवा लेगा?

बुधवार को जब तालिबान नेता अनस हक्क़ानी सरकार बनाने के लिए बातचीत शुरू करने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई से मिलने उनके घर गए तो इन अटकलों को पर लग गये। 

अनस हक्क़ानी का सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू करने से ही साफ है कि वे तालिबान के बड़े नेता तो हैं ही, वे सरकार में अहम ज़िम़्मेदारी लेंगे।

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कौन हैं अनस हक्क़ानी

अनस हक्क़ानी उस जलालुद्दीन हक्क़ानी के बेटे हैं, जिन्होंने रूसी फ़ौज के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ी थी और जो सीआईए के विशेष चहेते थे। उनकी पहुँच तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तक थी, जो उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मानते थे।

लेकिन अमेरिकी खुफ़िया एजेन्सी सीआईए के एजेंटों ने अनस हक्क़ानी को 2014 में बहरीन में पकड़ लिया था और अफ़ग़ानिस्तान के हामिद करज़ई सरकार के हवाले कर दिया था।

afghanistan: taliban govt in pakistan hands - Satya Hindi
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रेगन के साथ ह्वाईट हाउस में जलालुद्दीन हक्क़ानीasian lite

नवंबर 2019 में अनस हक्क़ानी को अफ़ग़ानिस्तान के अशरफ़ ग़नी प्रशासन ने दो दूसरे लोगों - अब्दुल अजीज अब्बासिन और हाजी माली ख़ान के साथ जेल से रिहा कर दिया था।

उसके बदले तालिबान ने दो अमेरिकी बंधकों को रिहा किया था। ये बंधक वे लोग थे जो अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान में पढ़ाते थे और जिन्हें तालिबान ने अगस्त 2016 में अगवा कर लिया था।

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हक्क़ानी नेटवर्क के सिराजुद्दीन हक्क़ानी पाकिस्तान में रहते हैं।historica wiki

हक्क़ानी नेटवर्क

जलालुद्दीन हक्क़ानी के दोनों बेटे अनस हक्का़नी और सिराज़ुद्दीन हक्क़ानी पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई के चहेते हैं और हक्क़ानी नेटवर्क के सर्वेसर्वा हैं।

हक्क़ानी नेटवर्क एक आतंकवादी संगठन है और पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान में है, इसके लड़ाकों में स्थानीय ज़दरन क़बीले के लोग हैं। यह क़बीला पश्तून की ही एक शाखा है।

सिराज़ुद्दीन हक्क़ानी को अगस्त 2015 में तालिबान के तत्कालीन नेता मौलाना अख़्तर मुहम्मद मंसूर का सहायक बनाया गया था। यह आईएसआई ने किया था क्योंकि आाईएसआई हक्क़ानी नेटवर्क को तालिबान में स्थायी व ठोस जगह दिलवाना चाहता था।

सिराज़ुद्दीन हक्क़ानी अभी भी पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान में ही हैं।

जलालुद्दीन हक्क़ानी की मौत 2015 में अफ़ग़ानिस्तान में हो गई।

जलालुद्दीन खुद अफ़ग़ानिस्तान में ही रहे, लेकिन उनके बेटे सिराज़ुद्दीन हक्क़ानी ने उनके जीवन काल में ही पाकिस्तान का रुख किया, जहाँ उन्होंने आईएसआई की मदद से आतंकवादियों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया।

पाक मदद

इस नेटवर्क का आधार पाकिस्तान में था, यह आईएसआई की मदद से, उसके दिशा-निर्देश पर काम करता था और अमेरिकी व नेटो सैनिकों को निशाना बनाता था।

'न्यूयॉर्क टाइम्स' और 'अल जज़ीरा' के अनुसार,  2010 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख अशरफ़ परवेज़ क़यानी और आईएसआई के मुखिया अहमद शुजा पाशा ने तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करज़ई पर दबाव डालने की कोशिश की थी कि ऐसी सरकार बनाई जाए, जिसमें हक्क़ानी नेटवर्क को शामिल किया जाए। उनका तर्क था कि ऐसा किए जाने से हक्क़ानी नेटवर्क के लोग करज़ई का विरोध करना बंद कर देंगे।

लेकिन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और सीआईए प्रमुख लियोन पेनेटा को इस योजना के कामयाब होने पर संदेह था। यह बात आगे नहीं बढ़ी।

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मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर

मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर तालिबान के संस्थापकों में एक हैं, उन्होंने मुल्ला उमर के साथ मिल कर 1994 में तालिबान की नींव रखी थी।

ओसामा बिन लादेन को तलाशती अमेरिकी सेना 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पहुँची और तालिबान सरकार को उखाड़ फेंका तो बरादर के बुरे दिन शुरू हुए।

बरादर थक हार कर 2001 के अंतिम दिनों में पाकिस्तान चले गए और बलोचिस्तान की राजधानी क्वेटा के आसपास का इलाका चुना।

मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर ने 2001 में मुल्ला उमर के साथ मिल कर क्वेटा शूरा की स्थापना की। उन्होंने पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफ़िया एजेन्सी आईएसआई का सहारा लिया, 2003 में क्वेटा शूरा का विस्तार किया।

क्वेटा शूरा

आईएसआई ने उत्तरी वज़ीरिस्तान के झोब इलाक़े में क्वेटा शूरा के प्रशिक्षण वगैरह की व्यवस्था की।

साल 2004 में आईएसआई की मदद से क्वेटा शूरा इतना बड़ा और ताक़तवर हो गया था कि उसके लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान में घुस कर कार्रवाई को अंजाम दे लेते थे।

मुल्ला बरादर को 8 फ़रवरी 2010 को कराची से गिरफ़्तार किया गया। पर्यवेक्षकों का कहना है कि आईएसआई ने जानबूझ कर मुल्ला बरादर को गिरफ़्तार करवाया था।

इसकी वजह यह थी कि बरादर 2004 से ही लड़ाई बंद कर अफ़ग़ानिस्तान सरकार में शामिल होना चाहते थे। उन्होंने 2009 में एक बार फिर हामिद करज़ई से संपर्क किया था और गुपचुप बातचीत शुरू कर दी थी।

आईएसआई यह नहीं चाहता था कि मुल्ला बरादर सीधे हामिद करज़ई से बात करें। उसकी मंशा थी कि उसकी इच्छा और उसके चाहे समय पर हामिद करज़ई से बात की जाए ताकि वह दबाव बना सके।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ज़लमे खलीलज़ाद को अफ़ग़ानिस्तान के लिए विशेष दूत नियुक्त किया। खलीलज़ाद ने अशरफ़ ग़नी पर दबाव डाला और बरादर को पाकिस्तानी जेल से अक्टूबर 2018 में रिहा करवाया। बरादर उसके बाद दोहा चले गए।

इसलिए यह साफ है कि तालिबान के सैन्य दस्ते के प्रमुख और अफ़ग़ानिस्तान के संभावित राष्ट्रपति मुल्ला बरादर भी पाकिस्तान के ही आदमी हैं। वे 2001 में सत्ता से हटने के बाद से ही आईएसआई के साथ रहे हैं, लंबे समय तक क्वेटा शहर में रहे हैं, उत्तरी वज़ीरिस्तान में प्रशिक्षण शिविर चलाया है।

तालिबान की पूरी लीडरशिप के सारे लोग किसी न किसी समय पाकिस्तान में रहे हैं, किसी न किसी रूप में आईएसआई के साथ रहे हैं। इनमें बरादर और हक्क़ानी नेटवर्क पर आईएसआई का प्रभाव ज़्यादा रहा है।

ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान में जो सरकार बनेगी, उसमें पाकिस्तान की क्या भूमिका होगी और उस सरकार शामिल लोगों का पाकिस्तान से अतीत में क्या संबंध रहा है, यह बिल्कुल स्पष्ट है।

यह निश्चित तौर पर पाकिस्तान की जीत तो है ही, भारत के लिए ख़तरे की घंटी भी है।

भारत को रोकने के लिए चीन और तालिबान का इस्तेमाल करेगा पाकिस्तान?
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