अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने के क़रीब पहुंच चुके तालिबान के लिए आगे की राह इतनी आसान नहीं है। सरकार चलाने के लिए उसे दुनिया के बाक़ी मुल्क़ों से मान्यता तो चाहिए ही, पैसा भी चाहिए और शायद इसे वह समझ चुका है और इस बार काफ़ी नरम रूख़ दिखा रहा है। लेकिन उसका यह नरम रूख़ सिर्फ़ दिखावा ही है क्योंकि वह अफ़ग़ानिस्तान से मुहब्बत करने वाले और उसके झंडे को शान से फहराने वाले अफ़ग़ानों की जान का दुश्मन बना हुआ है।
ख़ैर, तालिबान के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है पंजशिर प्रांत। पूरे मुल्क़ में यही एक प्रांत है, जहां पर तालिबान तो छोड़िए, सोवियत संघ से लेकर अमेरिका तब कब्जा नहीं कर पाए और इस बात के लिए पंजशिर की मिसाल दी जाती रही है।
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अफ़ग़ानिस्तान के कई शहरों को तेज़ी से फ़तेह करता हुआ तालिबान आख़िर पंजशिर की ओर क्यों नहीं बढ़ रहा है, यह एक बड़ा सवाल है।
ख़ुद को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरूल्लाह सालेह ने एलान किया है कि पंजशिर पर किसी का कब्जा नहीं होने दिया जाएगा। काबुल से 150 किमी. दूर स्थित इस प्रांत में ताजिक समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। सालेह भी इसी समुदाय से आते हैं और वे पंजशिर में ही हैं। इसके अलावा हजारा सहित बाक़ी समुदायों के लोग भी यहां रहते हैं।
अमहद शाह मसूद
पंजशिर का जिक्र अमहद शाह मसूद के नाम के बिना अधूरा है। अहमद शाह मसूद तालिबान के ख़िलाफ़ बनी मिलिशिया के नेता थे और उन्हें पंजशिर का शेर भी कहा जाता था। अहमद शाह मसूद ने ही तालिबान के ख़िलाफ़ नॉर्दन एलायंस बनाया था। मसूद की मौत के बाद उनके बेटे अहमद मसूद ने मिलिशिया की कमान संभाली और तालिबान को चुनौती देते रहे।
अब अहमद मसूद और सालेह ने पंजशिर के इन लड़ाकों की कमान संभाली हुई है। अहमद मसूद कहते हैं कि वे अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र को बचाने, महिलाओं और आम लोगों के हक़ों की हिफ़ाजत के लिए लड़ेंगे। मसूद ने इस बार भी दुनिया के देशों से मदद मांगी है। इन दिनों पंजशिर में नॉर्दन एलायंस के झंडे लहराते दिखते हैं। अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत ने भी कहा है कि पंजशिर लगातार तालिबान का विरोध करता रहेगा।
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ताक़तवर हुआ तालिबान
अब सवाल यही खड़ा होता है कि क्या अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध होगा क्योंकि तालिबान इस बार बहुत ताक़तवर हो चुका है। उसके पास अमेरिकी फ़ौज़ों की तोप, गोले, विमान सहित युद्ध का अच्छा-खासा सामान है। इसके अलावा तालिबान अभी सरकार में भी है, ऐसे में अगर तालिबान बनाम पंजशिर के लड़ाकों के बीच युद्ध हुआ तो क्या होगा, क्या पंजशिर के लड़ाके इस बार भी भारी पड़ेंगे या फिर तालिबान जीत जाएगा।
दोनों के बीच जंग हुई तो कौन से देश तालिबान के साथ खड़े होंगे और कौन से पंजशिर के लड़ाकों के साथ। सालेह कह चुके हैं कि पाकिस्तान ने अफ़ग़ान फौजों के ख़िलाफ़ लड़ रहे तालिबान को पूरी मदद दी है, ऐसे में पाकिस्तान की फौज़ अप्रत्यक्ष रूप से और वहां सक्रिय आतंकी संगठन तालिबान की मदद कर सकते हैं।
भारत क्या करेगा?
ऐसे हालात में भारत क्या करेगा, क्या वह पंजशिर के लड़ाकों को तालिबान के ख़िलाफ़ जंग होने पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई का नाम देकर समर्थन देगा, इस बारे में कुछ कह पाना अभी मुश्किल है। जंग होने पर दुनिया के बाक़ी देश क्या करेंगे, उनके सामने भी यही मुश्किल है क्योंकि तालिबान अब केवल एक आतंकवादी संगठन नहीं है बल्कि सरकार की कमान उसके हाथ में है, ऐसे में बाहरी मुल्क़ उसके ख़िलाफ़ जाएंगे या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है।
तालिबान की मुसीबत
तालिबान की मुखालफ़त करने वाले अफ़ग़ान फौज़ के सैनिक भी लड़ने के लिए बड़ी संख्या में पंजशिर पहुंच चुके हैं। तालिबान के ख़िलाफ़ कई शहरों में अफ़ग़ानिस्तान के झंडे के साथ प्रदर्शन हो रहे हैं और यहां पंजशिर के लड़ाके उसे चुनौती दे रहे हैं, अगर वह बर्बरता जारी रखेगा तो अंतरराष्ट्रीय दबाव उस पर बढ़ेगा, ऐसे में तालिबान के लिए सत्ता में बने रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा और हो सकता है कि इसके बाद मुल्क़ में गृह युद्ध हो जाए।
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