पश्चिम बंगाल उपचुनाव का परिणाम चौंकाने वाला रहा। इसमें 4 में से 3 सीटों पर बीजेपी की जमानत क्यों जब्त हो गई? उसे सिर्फ़ 14.5 फ़ीसदी वोट क्यों मिले? वह भी तब जब कुछ महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में उसे 38 फ़ीसदी से भी ज़्यादा वोट मिले थे। उससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में तो उसे 40 फ़ीसदी से भी ज़्यादा वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव के बाद यानी छह महीने में बीजेपी का वोट प्रतिशत क़रीब 24 फ़ीसदी कैसे खिसक गया और इसका क्या संकेत है?
पश्चिम बंगाल उपचुनाव का यह परिणाम चौंकाने वाला सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि 4 में से 4 सीटें बीजेपी हार गई और चारों सीटों पर ममता बनर्जी की टीएमसी का कब्जा हो गया। यह चौंकाने वाला इसलिए भी है कि छह महीने पहले तक बीजेपी इसी पश्चिम बंगाल को फतह करने का दावा कर रही थी। तृणमूल कांग्रेस के सफाए के दावे किए जा रहे थे। बीजेपी द्वारा पेश की गई ऐसी तसवीर को भी मुख्यधारा के मीडिया में भी काफ़ी जगह मिल रही थी और हवा का रुख कुछ इस तरह दिखाया गया था कि एक के बाद एक तृणमूल नेता बीजेपी में शामिल होने लगे थे। चुनाव पूर्व कुछ सर्वे रिपोर्टों और कुछ एग्जिट पोल में भी बीजेपी का पलड़ा भारी दिखाया गया था।
हालाँकि जब परिणाम आया तो बीजेपी को निराशा हाथ लगी। 292 सीटों वाली विधानसभा में 77 सीटें बीजेपी को मिलीं। 38 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले। बीजेपी ने इस परिणाम को लेकर संतोष जताया कि उसे पाँच साल पहले सिर्फ़ 3 सीट थी इसलिए उसे 74 सीटों का फ़ायदा हुआ।
इससे 2 साल पहले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को पश्चिम बंगाल में जबरदस्त सफलता मिली थी। बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में क़रीब 40 फ़ीसदी वोट मिले थे। टीएमसी को तब इससे कुछ ज़्यादा क़रीब 43 फ़ीसदी वोट मिले थे। समझा जा सकता है कि बीजेपी की उम्मीदें कितनी ज़्यादा रही होंगी!
लेकिन इस बार चार सीटों के उपचुनाव में बीजेपी को उन उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका इसलिए भी है कि चारों सीटों पर जीत का अंतर काफ़ी ज़्यादा है। दिनहाटा और शांतिपुर सीटें बीजेपी से छीन गईं। टीएमसी ने खरदाह और गोसाबा विधानसभा सीटों को भी अपने पास बरकरार रखा।
दिनहाटा में बीजेपी उम्मीदवार के ख़िलाफ़ 1 लाख 64 हज़ार वोटों के अंतर से टीएमसी प्रत्याशी जीते। यह केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निसिथ प्रामाणिक का इलाक़ा है और यहाँ से बीजेपी उम्मीदवार की ज़मानत जब्त हो गई।
शांतिपुर में भी 64 हज़ार से ज़्यादा के अंतर से टीएमसी प्रत्याशी जीते। खरदाह में 93 हज़ार से ज़्यादा और गोसाबा में 1.43 हज़ार से ज़्यादा वोटों से टीएमसी प्रत्याशी की जीत हुई।
कुल मिलाकर इन चार सीटों पर हुए उपचुनाव में कुल 75 फ़ीसदी वोट तृणमूल कांग्रेस को मिले हैं और सिर्फ़ 14 फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा ही बीजेपी को।
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बीजेपी की ऐसी हालत क्यों हुई?
जानकारों का मानना है कि बीजेपी की ऐसी हालत होने के पीछे कई वजहें हैं। इनमें सबसे तात्कालिक कारण तो महंगाई को माना जा रहा है, लेकिन इसके अलावा भी कई कारणों से बीजेपी की हालत ख़राब हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो ख़ुद ममता बनर्जी जैसा नेतृत्व सामने है।
दरअसल, छह महीने पहले विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस ने बाजी ही पलट दी है। जो नेता तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे थे वे वापस टीएमसी में लौटने शुरू हो गए। यानी उनकी घर वापसी शुरू हो गई है। मुकल रॉय व राजीब बनर्जी से लेकर बिस्वजीत दास, तन्मय घोष, सौमेन रॉय तक टीएमसी में लौट चुके हैं। लंबे समय तक बीजेपी से जुड़े रहे बाबुल सुप्रियो भी टीएमसी में शामिल हो गए हैं।
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बीजेपी की जबरदस्त हार के कारणों के लेकर सवाल पर कोलकाता में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, "पहले तो 'अबकी बार 200 पार' का नारा नहीं चला। दो सांसदों ने इस्तीफ़ा दे दिया। पाँच विधायक टीएमसी में चले आए। बाबुल सुप्रीयो ने सांसद रहते छोड़ दिया और चले आए टीएमसी में। प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया गया अचानक। नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। संगठन में अंतर्कलह सामने आई। बीजेपी कई समस्याओं से जूझ रही थी और चुनाव नतीजे संकेत हैं उसी के।"
वह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ़्ट के जो वोट बीजेपी को गए थे वे अब फिर से लेफ़्ट की ओर जाने लगे हैं। लेफ्ट का जो वोट शेयर विधानसभा चुनाव में 4.7 था वह इस उपचुनाव में बढ़कर 8.5 फ़ीसदी हो गया है।
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