ज़फ़र आग़ा ने मुसलमानों में सामाजिक क्रांति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। उनके मुताबिक़ मुसलमानों पर मौलवियों का असर बहुत ज़्यादा है और वे उनकी तरक़्क़ी के रास्ते में रुकावट बन गए हैं। तरक़्क़ी और आधुनिकता का सीधा रिश्ता माना जाता है। मुसलमान आधुनिक नहीं हैं और इसका एक बड़ा कारण उनमें आधुनिक शिक्षा का अभाव है, ऐसा ज़फ़र साहब का कहना है। इस कारण वे समाज में पिछड़ गए हैं।
क्या मुसलमान आधुनिक नहीं हैं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 16 Jun, 2019

लोगों की खीझ यह है कि मुसलमान मर्द जहाँ देखिए दाढ़ी बढ़ाए और ख़ास क़िस्म की टोपी चिपकाए दिख जाते हैं और मुसलमान औरतों में बुर्क़े का चलन बेतरह बढ़ा है। इसके मायने यह निकलते हैं कि उनमें दक़ियानूसी भी उसी अनुपात में बढ़ी है। इसका क्या उत्तर है कि सरकारी अस्पतालों में मुसलमान बड़ी संख्या में आते हैं?
ज़फ़र साहब मानते हैं कि यह मुसलमानों का पतन है। यानी पहले ऐसे हालात न थे, ‘यह भी कहना ग़लत होगा कि भारतीय मुसलमान सदा ही पिछड़े रहे हैं, स्वयं भारत का इतिहास साक्षी है कि लगभग 800 वर्ष तक भारत पर मुसलिम वर्ग का वर्चस्व रहा। भारत में सदियों तक शान से शासक वर्ग की स्थिति में रहने के पश्चात यह समाज ऐसे पतन का शिकार हुआ कि अब तक नहीं उबर सका।’