अहमदाबाद की गर्मी की एक शाम। न्योता मुदिता विद्रोही का था। सौरभ वाजपेयी के व्याख्यान को सुनने का। उन्हें ‘जनतंत्र: तब और अब’ पर बोलना था। हमशहर से किसी और शहर में मिलने का आनंद तो कुछ और है ही, सुनने का उससे कहीं अलग। सो, तय किया कि जाना ही है। जगह का नाम ज़रा अटपटा था, अनक्यूबेट! इंक्युबेटर सुना है, हस्पताल में रहा करते हैं और शिक्षा संस्थानों में भी मिलते हैं। उसका उलटा अनक्यूबेट होगा।