अहमदाबाद की गर्मी की एक शाम। न्योता मुदिता विद्रोही का था। सौरभ वाजपेयी के व्याख्यान को सुनने का। उन्हें ‘जनतंत्र: तब और अब’ पर बोलना था। हमशहर से किसी और शहर में मिलने का आनंद तो कुछ और है ही, सुनने का उससे कहीं अलग। सो, तय किया कि जाना ही है। जगह का नाम ज़रा अटपटा था, अनक्यूबेट! इंक्युबेटर सुना है, हस्पताल में रहा करते हैं और शिक्षा संस्थानों में भी मिलते हैं। उसका उलटा अनक्यूबेट होगा।
महात्मा गाँधी के पुस्तकालय में जिंदा हैं आम्बेडकर के विचार
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 2 Jun, 2019

एक व्याख्यान के लिए अहमदाबाद में पहुँचा। यहाँ गाँधीजी की स्थापित की हुई लाइब्रेरी है। जागरूक और मानसिक रूप से फ़ुर्तीले नौजवानों ने कहा, हमने यहाँ आम्बेडकर को ज़िंदा रखा है। यहाँ हम मिलते हैं, पढ़ते हैं, बातचीत करते हैं।
जीपीएस में न सिर्फ़ जगह पहचानी गई बल्कि यह चेतावनी भी थी कि कहीं ऐसा न हो, आप पहुँचें और वह बंद हो जाए। यानी जहाँ से हम चले थे, वहाँ से लक्ष्य तक पहुँचने के वक़्त का अन्दाज़ कर वह हमें ज़हमत से बचाने की कोशिश ही कर रहा था। लेकिन हम निश्चिंत थे क्योंकि दावतनामे में वक़्त शायद काम का समय बीत जाने के बाद का ही था।