गाँधी फिर लौट आए हैं। इस बार अपने हत्यारे के साए में। हरिशंकर परसाई ने बहुत साल पहले एक लेखक की अंतर्दृष्टि से गाँधी की इस गति का अनुमान कर लिया था। उन्होंने लिखा था - ‘एक समय आएगा जब पूछा जाएगा : आखिर गाँधी कौन था? जवाब मिलेगा : अरे, वही जिसे गोडसेजी ने मारा था।’ ऐसा अनेक लोगों का ख्याल है कि गाँधी का जीवन अनेक पापों का इतिहास है और आज वे लोग सत्ता में हैं।
अपने जीवन के अंतिम चरण में उनके पाप सीमा पार कर गए। जैसे कृष्ण ने शिशुपाल के सौ गुनाह बर्दाश्त किए लेकिन जब वह उससे आगे बढ़ गया तब उनका चक्र उनके हाथ से छूट गया और शिशुपाल वध हुआ। गोडसे को कृष्ण और गाँधी को शिशुपाल मानने वालों की कमी नहीं!
गाँधी की हत्या में गाँधी की ज़िम्मेदारी
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 20 May, 2019

गोडसे को हत्या-स्थल से पकड़ा गया था। उसने ख़ुद अपना जुर्म क़बूल किया। इस वजह से इस पर शक करना संभव नहीं था कि वह गाँधी की हत्या नहीं करना चाहता था। लेकिन चालाकी से यह कहा गया कि जिस गोली से गाँधी मारे गए, वह गोडसे की नहीं थी। गोडसे ने अपना अपराध स्वीकार किया। इसे बहुत सारे लोग उसके साहस के रूप में पेश करना चाहते हैं। इस तरह कि क्या वह भगत सिंह की तरह ही बहादुर नहीं जो बम फेंककर भागे नहीं बल्कि वीरता से गिरफ़्तारी दी और मृत्यु का वरण किया?