क्या नफ़रत करनेवाला प्यार करनेवाले में बदल सकता है? क्या घृणा स्थायी भाव है? घृणा के बारे में व्यक्तियों के सन्दर्भ में और समूहों के सन्दर्भ में अलग-अलग बात करने की ज़रूरत है? क्या समूहगत घृणा का स्वरूप अलग होता है? क्या घृणा अपने आप में हिंसा है, क्या वह हिंसा को अनिवार्यतः जन्म देती है? क्या वह टाइम बम की तरह हम सबके भीतर है?