नागरिकता संशोधन विधेयक केंद्रीय सरकार के मंत्रिमंडल ने पारित कर दिया है। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने इसका विरोध किया है। लेकिन बाक़ी बड़े दल, अगर वे बड़े और राजनीतिक अभी भी हैं, चुप या अस्पष्ट हैं। यह बात बिना लाग लपेट के कही जानी चाहिए कि यह विधेयक पूरी तरह से भारत के संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है और विभाजनकारी है।
भारत के संविधान पर कुठाराघात है नागरिकता संशोधन विधेयक
- वक़्त-बेवक़्त
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- 9 Dec, 2019

भारत की नागरिकता को नए ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है। यह परिभाषा सबसे पहले सावरकर ने दी थी। संविधान ने उसे ठुकरा दिया था। इसी कारण भारत में जो जनतंत्र क़ायम हुआ, उसकी बुनियाद में धर्मनिरपेक्षता है। लेकिन अब नागरिकता संशोधन विधेयक लाया जा रहा है जो पूरी तरह से भारत के संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है और विभाजनकारी है।
विधेयक के मक़सद में ही उसकी बेईमानी साफ़ झलकती है। वह पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न झेल रहे लोगों को राहत देने के मानवीय उद्देश्य से परिचालित है, ऐसा बताया जाता है। लेकिन पड़ोसी देशों में वह सिर्फ़ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान को गिनता है। क्या बाक़ी पड़ोसी देशों, श्रीलंका, म्यांमार, चीन में किसी आबादी को धार्मिक आधार पर उत्पीड़न नहीं झेलना पड़ रहा? सिर्फ़ ये तीन ही क्यों?