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स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको

स्लोवाकिया के कवि ने अपने प्रधानमंत्री पर गोली क्यों चलाई होगी?

यूरोपीय राष्ट्र स्लोवाकिया के 56 वर्षीय प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको पर बुधवार, 15 मई की शाम चहल- पहल भरे सार्वजनिक स्थल पर ताबड़तोड़ पांच गोलियां दागी गयीं। गोली दागने वाला कोई पेशेवर हत्यारा या किसी आतंकी गिरोह का सदस्य नहीं, वरन सिंटुला पकी उम्र का एक स्लोवाक कवि है। नाम जुराज सिंटुला। आयु 71 वर्ष। खाते में कविताओं की तीन किताबें...।
स्लोवाकिया मध्य यूरोप का छोटा-सा राष्ट्र हैं। क्षेत्रफल फकत 49035 वर्ग किमी और जनसंख्या तकरीबन 55 लाख। उसी छोटे से देश के कवि हैं जुराज सिंटुला। छमाही से कुछ ज्यादा अर्सा बीता है कि रॉबर्ट फिको चुनाव में विजयी हुये थे। उनके साथ यह अमंगल प्रसंग मंगल के अगले दिन तब घटा, जब राजधानी ब्रातिस्लाव से करीब 180 किमी दूर हांडीलोवा में वह सांस्कृतिक केंद्र के बाहर लोगों को संबोधित कर रहे थे। सिंटुला ने अपने लाइसेंसशुदा हथियार से उन पर नजदीक से गोलियां दागी, जिससे भगदड़ मच गयी, मगर सुरक्षाकर्मियों और लोगों ने हमलावर को दबोच लिया और उसकी मुश्कें कस दीं।
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घटना अप्रत्याशित है। सिंटुूला के कवि होने से कुछ ज्यादा ही हैरतअंगेज। कवि के लिए शब्द ही उसका कवच है और शब्द ही आयुध। राजनेताओं पर हमलों का सिलसिला नया नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के सार्वकालिक महान राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या थियेटर में हुई थी। आज से करीब 60 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी दिनदहाड़े गोलियों का शिकार हुए। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने गोलियों से बींध दिया था। राजीव गांधी को लिट्टे के आत्मघाती दस्ते ने मारा। मगर स्लोवाकिया का वाकया अलहदा है कि इसमें हमलावर एक कवि है, जो अपनी चिंताएं, अपनी हताशा, अपना क्षोभ और अपना स्वप्न शब्दों में व्यक्त करता है। हिंसा, रक्तपात और अराजकता उसके सरोकारों में नहीं होते। 
वह भले ही गोली दागो पोस्टर (आलोक धन्वा) या राजा का बाजा बजा (मनमोहन) जैसी कविताएं लिखे अथवा 'देवी तुम तो कालेधन की बैसाखी पर टिकी हुई हो' (नागार्जुन) जैसे पद रचे और मंच पर गाये, मगर व्यवस्था विरोध की रौ के बावजूद वह हथियार नहीं उठाता। इतिहास में कविता लिखने और हथियार उठाकर लाम पर जूझने वाले कवि भी हुए हैं। जैसे कि लंबी कविताओं के विलक्षण रूसी कवि येगोर इसायेव उस पहली फौजी टुकड़ी में शरीक थे, जिसने नात्सी फौज को मात देकर बर्लिन में प्रवेश किया था। नात्सी या फासी ताकतों के विरुद्ध सशस्त्र अभियान को क्या खारिज किया जा सकता है?
सुखद है कि रॉबर्ट फिको की प्राणरक्षा हो गयी। राष्ट्रपति जुजाना कॅपितोवा ने इसकी निंदा की। गृहमंत्री माटुस सुताज ने इसे राजनीति प्रेरित बताया। उपप्रधानमंत्री थामस तराबा ने तस्दीक की कि साढ़े तीन घंटे की सर्जरी के बाद फिको खतरे से बाहर हैं। विश्व-नेताओं ने घटना पर दु:ख व्यक्त किया। सदमा स्वाभाविक था। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दु:ख और चिंता का इजहार किया।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवयित्री विश्वावा शिंबार्स्का का कहना सही है कि हम राजनीतिक समय की संताने हैं। राजनीति आज नियंता है। व्यवस्था जहां-तहां निरंकुश भी है। दमन और उत्पीड़न है और अभिव्यक्ति पर पहरे भी, मगर कायसिन कुलियेव का कहना सही है कि नेकी और बदी, सत और असत, और अंधकार और प्रकाश की मुसलसल जंग में कविता नेकी, सत और प्रकाश के साथ खड़ी होती है। सिंटुला स्लोवाकिया में दूहा लिटरेरी क्लब के संस्थापक है। दूहा का अर्थ है इंद्रधनुष । सिंटुला के गृह नगर में लाइब्रेरी की इंचार्ज व्लास्ता कलारोवा के मुताबिक सिंटुला विद्रोही जरूर था, मगर आक्रामक नहीं। कवि के पुत्र का कहना है कि उसे अपने पिता के इरादों की कतई भनक नहीं थी।
कवि कारा में है। हत्या का अभियुक्त। अपराधी। उसे सजा मिलेगी। हर गुनाह दंड को न्यौता देता है। सिंटुला ने अपनी भावनाओं का इजहार कभी इस तरह किया था : 'दुनिया हिंसा और हथियारों से भरी पड़ी है और लोग उसके प्रति आकर्षित हैं।' वह अवैध आव्रजन से चिंतित था और घृणा और उग्रवाद से भी। वह घृणा और हिंसा की रोकथाम के लिए उपजे आंदोलन से भी जुड़ा था। ऐसे में ताज्जुब है कि उसने हिंसा का सहारा लिया। क्या वह अवसादग्रस्त था अथवा उसके विक्षोभ ने हदें पार कर लीं? कुछ अरसा पहले प्रधानमंत्री फिको ने उक्राइना (यूक्रेन) को सैन्य सहायता देने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने राजकीय टीवी पर भी पाबंदी लगाई थी। क्या इस वाकये में इन घटनाओं का हाथ है?
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छोटे देश स्लोवाकिया का यह वाकया कई बड़े सवाल खड़े करता है। दुश्चिंताओं से भरे दौर में वह एक और चिंता जगाता है। यहीं हमें गांधी- दर्शन की प्रासंगिकता और महत्ता समझ में आती है। युद्ध और हिंसा किसी  भी समस्या का हल नहीं है। एक युद्ध के गलियारे दूसरे युद्ध में खुलते हैं।  घृणा घृणा को पोसती है। यह अकारण नहीं है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में हिरोशिमा पर बम गिराने वाला पायलट पार्ल बर्जमान पश्चाताप में आत्महत्या कर लेता है। आंद्रेई वाज्नेसेस्की की कविता आज भी कानों में गूंजती है: डू वी रशियंस वान्ट वॉर? घृणा से बड़ा कोई गंदा हथियार नहीं और प्रेम से बड़ा कोई रसायन नहीं। याद करें कि चौरीचौरा कांड के बाद गांधी ने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया था। दुनिया को जरूरत घृणा, वैमनस्य, हिंसा और युद्ध की नहीं, वरन प्रेम, सद्भाव, सहिष्णुता और सामंजस्य की है। प्रेम एक ऐसा छल्ला है, जिसका कोई छोर नहीं होता।
जुराज सिंटुला मयार के कवि हैं। उनकी पंक्तियाँ है: सिर्फ ख्वाबों में ही आजाद था मैं। कवि सपनों में ही पराई औरतों से पागलपन की हद तक प्यार करता है। वह सपने में ही ठंडी वाइन पीता है। वह कहता है : मेरे सपनों में पुलिस मुझे ढूंढ़ रही थी। केवल सपने में ही मेरे बाजुओं को लगी थी बेड़ियों से चोट।
ये पंक्तियां सिंटुला की मनस्थिति दर्शाती हैं। वहीं घटना बताती है कि सब्र का भी क्वथनांक हुआ करता है।
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सुधीर सक्सेना
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