इस साल आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई कुछ वैज्ञानिक करिश्मों का सबब बन सकती है। इसकी झलक 2024 के नोबेल पुरस्कारों में देखने को मिल गई थी, जब भौतिकी का नोबेल अमेरिकी और कनाडाई भौतिकशास्त्रियों जॉन जे. हॉपफील्ड और ज्यॉफ्री हिंटन को एआई और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (एएनएन ) में बुनियादी काम के लिए हासिल हुआ। रसायनशास्त्र का हाल भी वैसा ही रहा। वहाँ नोबेल का आधा हिस्सा अमेरिकी वैज्ञानिक डेविड बेकर को मिला, कंप्यूटेशनल मॉडलिंग के ज़रिए ऐसे प्रोटीन तैयार करने के लिए, जो प्रकृति में नहीं पाए जाते। बाकी आधा गूगल डीपमाइंड से जुड़े दो ब्रिटिश वैज्ञानिकों डेनिस हैसबिस और जॉन जंपर में बराबर-बराबर बँटा, जिन्होंने एआई के ही इस्तेमाल से 20 करोड़, यानी लगभग सारे ही ज्ञात जैविक प्रोटीनों की पूरी बनावट उधेड़ कर रख दी थी।