इक्कीसवीं सदी में पैदा होकर जवान हुई पीढ़ी रोजमर्रा की ज़िंदगी में कुछ ऐसी चीजें देखती-आजमाती बड़ी हुई है, जो बीसवीं सदी में जवान हुए लोगों की कल्पना से भी परे थीं। आप फोन या पैड की टचस्क्रीन को ही लें। अभी बीस साल पहले तक कौन सोचता था कि लोगबाग सिर्फ़ एक शीशे को छू-छूकर दूर बैठे लोगों से लंबी-लंबी बातें कर लेंगे। मैटीरियल साइंस, पदार्थ विज्ञान की एक अद्भुत खोज है टचस्क्रीन। मैटीरियल साइंस यानी कुछ ऐसी नई चीजें जड़ से बनाने का विज्ञान, जो अब तक कहीं रही ही न हों। देखें तो टचस्क्रीन एक सीधी-सादी चीज है। शीशे पर पड़ी दो धातुओं, इंडियम और टिन के साझा ऑक्साइड की एक बहुत पतली परत, जिसमें नाम मात्र का करेंट दौड़ता है। इस स्क्रीन को जहां-जहां आप छूते हैं, वहां-वहां सर्किट टूटता है और फोन के कंप्यूटर को इनपुट मिलता जाता है।