इक्कीसवीं सदी में पैदा होकर जवान हुई पीढ़ी रोजमर्रा की ज़िंदगी में कुछ ऐसी चीजें देखती-आजमाती बड़ी हुई है, जो बीसवीं सदी में जवान हुए लोगों की कल्पना से भी परे थीं। आप फोन या पैड की टचस्क्रीन को ही लें। अभी बीस साल पहले तक कौन सोचता था कि लोगबाग सिर्फ़ एक शीशे को छू-छूकर दूर बैठे लोगों से लंबी-लंबी बातें कर लेंगे। मैटीरियल साइंस, पदार्थ विज्ञान की एक अद्भुत खोज है टचस्क्रीन। मैटीरियल साइंस यानी कुछ ऐसी नई चीजें जड़ से बनाने का विज्ञान, जो अब तक कहीं रही ही न हों। देखें तो टचस्क्रीन एक सीधी-सादी चीज है। शीशे पर पड़ी दो धातुओं, इंडियम और टिन के साझा ऑक्साइड की एक बहुत पतली परत, जिसमें नाम मात्र का करेंट दौड़ता है। इस स्क्रीन को जहां-जहां आप छूते हैं, वहां-वहां सर्किट टूटता है और फोन के कंप्यूटर को इनपुट मिलता जाता है।
एआई से नई जान पा गया है नए मैटीरियल बनाने का विज्ञान!
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- 14 Jan, 2025

क्या आपको पता है कि मोबाइल के टचस्क्रीन में कौन सा मैटीरियल साइंस है? 2000 डिग्री सेल्सियस से भी ऊंचे तापमान पर न पिघले, ऐसे धातु कैसे बनते हैं? जानिए, एआई कैसे बड़ा बदलाव ला सकता है मैटीरियल साइंस में।
इंडियम एक महंगी धातु ज़रूर है लेकिन एक इंडियम टिन ऑक्साइड खुद में कोई बहुत जटिल रसायन नहीं है। चीजों पर लग जाने वाली जंग की शक्ल में हमारा पाला किसी एक धातु के ऑक्साइड से अक्सर पड़ता है। यह दो धातुओं का साझा ऑक्साइड है। असल बात है, इस कमाल की चीज तक पहुँचने की प्रोसेस, जिसे हासिल करने में कई सारे नए पदार्थ बनाने, आजमाने और खारिज करने पड़े। आगे हम देखेंगे कि कुछ बिल्कुल नई ज़रूरतों के लिए जिन मैटीरियल्स की मांग दुनिया में बनी है, वे ज्यादा जटिल हैं और उनतक पहुंचने का रास्ता काफी टेढ़ा-मेढ़ा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कृत्रिम बुद्धि अभी ऐसे रास्तों को थोड़ा-बहुत सीधा करने में बड़ी भूमिका निभा रही है।