उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनका सम्मान अब तक नहीं मिला है। औरत बच्चे को जन्म देती है, लेकिन बच्चे के नाम के साथ उसका नाम कहीं नहीं लिखा जाता है। बच्चे के साथ सिर्फ पिता का नाम जोड़ा जाता है। उस्ताद ख़ान की ये टिप्पणी महिला अधिकार पर बहस को एक नया आयाम देता है।
तार से दर्द की झंकार
उस्ताद ख़ान ने सरोद के तारों को छेड़ा तो जैसे औरत का दर्द बह निकला। पारंपरिक राग दुर्गा में दर्द के लिए जगह नहीं है। उस्ताद की ये अपनी अनोखी रचना थी। उसकी धुन दर्शकों के दिलों में उतर गयी। राग दुर्गा हिंदी फ़िल्म संगीतकारों का भी एक प्रिय धुन है। आशा भोसले का गया “फ़िल्म गीत गया पत्थरों ने” का टाइटिल गीत इसी राग पर आधारित है। “होगा तुमसे प्यारा कौन”, (जमाने को दिखाना है) और “वृंदावन के कृष्ण कन्हैया” (मिस मेरी) जैसे लोकप्रिय गीत इसी राग पर आधारित हैं।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की हाल ही में असमय मृत्यु हो गयी। तबला बातें करता है, वो संतूर के सवालों का जवाब देता है। ज़ाकिर हुसैन ने तबला से संवाद की अनोखी शैली शुरू की थी। उनके शिष्यों ने इस परंपरा को बरक़रार रखा है।
अवसर था पंडित सी आर व्यास जन्म शताब्दी का। दिल्ली के कमानी हाल में दर्शकों की भीड़ ये साबित कर रही थी कि व्हाट्स एप और रील पर फैले फूहड़ नाच गाना के दौर में भी गंभीर संगीत की दीवानगी कम नहीं हुई है। कार्यक्रम की शुरुआत सी आर व्यास के बेटे सुहास व्यास के गायन से हुई। सुहास के सुरों में सी आर व्यास की गूंज बरकरार है। उन्होंने सी आर व्यास की तीन रचनाओं को पेश किया।
अपनी राय बतायें