उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि चार धाम यात्रा पर राज्य में आने वालों का सत्यापन किया जाएगा ताकि शांति के लिए ख़तरा पैदा करने वालों को बाहर रखा जा सके। तो क्या उत्तराखंड में किसका ख़तरा है? क्या गुप्तचर एजेंसियों से ऐसी किसी गड़बड़ी का इनपुट मिला है? ऐसे सवालों का जवाब तो नहीं मिला है, लेकिन इतना ज़रूर है कि कुछ धार्मिक नेता हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए ग़ैर-हिंदुओं को चार धाम क्षेत्र से प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे थे।
चार धाम क्षेत्र में ग़ैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध की मांगों के बारे में पूछे जाने पर धामी ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा कि राज्य में शांति होनी चाहिए और इसके धर्म और संस्कृति की रक्षा की जानी चाहिए।
तो सवाल है कि ऐसा क्या होने की आशंका है कि धर्म और संस्कृति की रक्षा की ज़रूरत आन पड़ी? मुख्यमंत्री धामी सत्यापन की बात का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, 'इसके लिए सरकार अभियान चलाएगी... हम कोशिश करेंगे कि जो लोग राज्य में पहुंच रहे हैं, उनका सही तरीके से सत्यापन हो। जो कोई भी शांति के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है, उसे राज्य में प्रवेश नहीं करना चाहिए…।'
उन्होंने आगे कहा, 'हमारा राज्य एक शांतिपूर्ण राज्य और धर्म और संस्कृति का केंद्र है। यहाँ सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण या कब्जा करने की कोई जगह नहीं है। धर्म के नाम पर दंगे करने, दुश्मनी पैदा करने या नफरत फैलाने वालों की भी यहां कोई जगह नहीं है।'
पुष्कर धामी के इस बयान का क्या मतलब है? क्या सत्यापन इसलिए किया जा रहा है कि वहाँ की सरकारी ज़मीन पर कब्जा किया जा रहा है और यदि ऐसा हो रहा है तो कौन कर रहा है? धर्म के नाम पर दंगे कौन करेगा और नफ़रत फैलाएगा?
इन सवालों का जवाब तो साफ़ नहीं दिया गया है, लेकिन हाल की घटनाओं से इस बारे में कुछ संकेत मिलते हैं। शनिवार रात हरिद्वार में हनुमान जयंती समारोह के दौरान हिंसा हुई थी और पथराव हुआ था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हिंसा और पथराव की उस घटना पर धामी ने कहा कि उचित जांच की जाएगी और क़ानून सख्ती से अपना काम करेगा।
रिपोर्ट के अनुसार स्वामी आनंद स्वरूप ने दावा किया था कि देश के कुछ हिस्सों में धार्मिक जुलूसों के दौरान हिंसा के हालिया उदाहरणों से पता चलता है कि चार धाम तीर्थयात्रा को उन लोगों की पहुँच से बाहर रखा जाना चाहिए जो हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करते। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने यह भी दावा किया कि 1980 तक इस क्षेत्र में कोई चर्च या मसजिद नहीं थी, जबकि वे अब बड़ी संख्या में हैं।
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