अगर यह कहा जाए कि मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करके उन अति दलित और अति पिछड़ी जातियों को भी अपने विरुद्ध कर लिया है, जिन्हें बीजेपी का समर्थक माना जाता था, तो ग़लत न होगा। अब ये जातियाँ सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में वोट डालकर आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती हैं। क्या ऐसा होगा?
क्या सिर्फ़ गठबंधन से ही सपा-बसपा जीत जाएँगी चुनाव?
- उत्तर प्रदेश
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- 20 Jan, 2019

सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण के बाद अति दलित और अति पिछड़ी जातियाँ सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में वोट डालकर आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती हैं। लेकिन क्या यही काफ़ी है?
सपा-बसपा गठबंधन अभी घोषणा में है, जो सीटों के बँटवारे के बाद अमल में आएगा। पर, आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के आरक्षण के मुद्दे को लेकर दोनों का मत एक-दूसरे के विपरीत है। जहाँ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसका विरोध किया है, वहीं बीएसपी मुखिया मायावती इसकी माँग करती रही हैं और राज्यसभा में उसके सांसदों ने उसके पक्ष में मतदान किया है। इसलिए यदि यह गठबंधन होता है, तो सपा को फ़ायदा होगा और बीएसपी को नुक़सान हो सकता है। इसका कारण यह है कि सपा के साथ यादव और मुस्लिम वोटों का बड़ा ज़खीरा है। इसके विपरीत बीएसपी वोट बैंक दलित जातियों में केवल जाटव और चमार जाति तक सिमटा हुआ है। उसके साथ न मुसलमान है, और न पिछड़ी जातियाँ हैं। मायावती ने न कभी मुसलमानों और पिछड़ी जातियों के मुद्दे उठाए और न उनके हक़ के बारे में बात की है। इसलिए इन चुनावों में मायावती को ज़्यादा फ़ायदा होने वाला नहीं है।
एक बात मायावती के सम्बन्ध में और है।