हाथरस जाते हुए 4 मुसलिम युवकों की 'देशद्रोह के आरोप में' गिरफ़्तारी के सिलसिले में मथुरा पुलिस द्वारा दायर एफ़आईआर में कहा गया है कि इन युवकों की वेबसाइट की ओर से तैयार पैम्फलेट जिसमें 'बलात्कार की शिकार हाथरस की मृत लड़की सवाल करती है - 'क्या मैं भारत की बेटी नहीं हूँ' और इसी प्रकार के पैम्फलेट से हिंसा भड़क सकती थी और यह वेबसाइट जातीय हिंसा व युवाओं में 'राष्ट्रविरोधी भावनाएँ भड़काने का काम कर सकती थीं। इसको लिए एफ़आईआर में उदाहरण देते हुए कहा गया है कि इन पैम्फलेट में 'मॉब लिन्चिंग’, 'मज़दूरों का पलायन', और 'कश्मीर में विध्वंसक तत्वों' को समर्थन जैसे शब्द शामिल हैं। -'इंडियन एक्सप्रेस' (नई दिल्ली, 8 अक्टूबर 2020 )
हाथरस पीड़िता को न्याय दिलाने का नैरेटिव आरोपियों को ‘इंसाफ़’ में किसने बदला?
- उत्तर प्रदेश
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- 9 Oct, 2020

मीडिया ने गाँव के लोगों से 'ध्वनि मत' कराना शुरू कर दिया। हर संवाददाता अपने-अपने लाइव टेलीकास्ट पर है। सबकी अपनी-अपनी 'ध्वनि मत सभाएँ' सजी हैं। 'जो आरोपियों को सजा दिए जाने के पक्ष में हैं, वे गर्दन झुका लें! गिनी-चुनी गर्दनें दिखीं। झटके से सब की सब झुक गईं। 'जो आरोपियों को सजा दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं, वे अपने जूते लहराएं!' जूतों की छाया में नीला आसमान लाल-काला हो गया।
30 सितंबर, 1 अक्टूबर, 2 अक्टूबर और 2 से लेकर 5 अक्टूबर जब मीडिया का एक बड़ा हिस्सा यूपी पुलिस और प्रशासन पर क्रूरता और दलित दमन में मिलीभगत के गंभीर आरोप लगा रहा था, जब पूरा देश जातिगत अमानवीयता और अत्याचार के आरोपों को लेकर यूपी पुलिस की थू-थू कर रहा था, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के चाबुक के नीचे उत्तर प्रदेश सरकार के तमाम बड़े-छोटे अधिकारियों के सिर आते दिख रहे थे, तब 'जातिगत तनाव', 'देशद्रोह', 'अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र' और 'पीएफ़आई' या 'सीएफ़आई' जैसे मुसलिम संगठनों की याद यूपी सरकार को नहीं आई।