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नवंबर के अंतिम शनिवार को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के हस्ताक्षरों से 'उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2020' जारी हुआ और रविवार को ही इस अध्यादेश के अंतर्गत पहला मुक़दमा बरेली में क़ायम हुआ। एडीजी (क़ानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने इसे प्रदेश में इस अध्यादेश से जुड़ा पहला केस बताया है लेकिन इसमें कुछ पेच हैं, जिसके चलते स्थानीय पुलिस की कार्रवाई संदेहास्पद बन जाती है।
स्थानीय पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) संसार सिंह द्वारा संवाददाताओं को दिए गए वक्तव्य के अनुसार बरेली ज़िले के थाना देवरनिया के अंतर्गत एक गाँव के निवासी निवासी टीकाराम राठौर ने शिकायत दर्ज करवाई है कि उनका पड़ौसी ओवैस अहमद (24) उनकी 20 वर्षीय विवाहित बेटी को धर्मान्तरण और पुनर्विवाह की धमकी देता है।
यद्यपि टीकाराम राठौर के पुत्र ने अपने पिता की ओर से इस आशय की रिपोर्ट से इनकार किया है। उधर, ओवैस के परिजनों ने भी पुलिस पर फ़र्ज़ी मामला बनाकर उसे व्यर्थ में परेशान किये जाने का आरोप लगाया है।
स्थानीय पुलिस के अनुसार, टीकाराम राठौर की बेटी और अभियुक्त स्कूल में 12वीं कक्षा तक एक साथ पढ़े हैं। अप्रैल, 2020 में उन्होंने अपनी बेटी का विवाह कर दिया। वह अब अपनी ससुराल उत्तराखंड में है। उसके बावजूद ओवैस न सिर्फ लड़की को विवाह करने के लिए धमकी भरे संदेश भेजता है बल्कि घरवालों को भी जान से मारने की धमकियाँ देता है। जब वह ससुराल से मायके आती है तो वह जबरन आ जाता है। शनिवार को भी वह देसी तमंचा लेकर हमारे यहाँ घुस आया था।
पुलिस ने 'विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम' की धारा 3 (किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन करवाने या करवाने की कोशिश करने) के अलावा आईपीसी की धारा 504 (उकसा कर लोकशांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के अंतर्गत मुक़दमा दर्ज़ किया है।
उधर, टीकाराम राठौर के बेटे ने जो कहानी बताई है वह किसी बने-बनाए खेल की ओर संकेत करती है। 'द हिंदू' अखबार के विशेष संवाददाता को दिए गए अपने वक्तव्य में केसरपाल राठौर ने अभियुक्त द्वारा उसके पिता या परिजनों को किसी प्रकार की धमकी देने से इनकार किया है। केसरपाल के अनुसार, शनिवार को देवरनिया थाने की पुलिस उसके घर आई और उसके पिता को यह कहकर थाने लिवा ले गई कि उनकी बेटी की पुराने केस की फ़ाइल के मामले में पूछताछ करनी है। केसरपाल का वक्तव्य और अभियुक्त की भाभी के बयान पूरी कहानी को खोखला साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
वस्तुतः अक्टूबर, 2019 में वह लड़की अपने घर से ग़ायब हो गई थी। पिता की शिकायत पर पुलिस ने लड़की को 4 दिन बाद ओवैस के साथ मध्य प्रदेश से ढूंढ निकाला था। इस सम्बन्ध में स्थानीय अदालत में लड़की ने ओवैस द्वारा अपहरण किये जाने के अपने पिता के आरोप से इनकार किया था और कहा था कि वह स्वेच्छा से घर से गई थी। इस मामले में कोर्ट ने ओवैस को बरी करके उक्त मुक़दमा बंद कर दिया गया था। अप्रैल, 2020 में टीकाराम राठौर ने अपनी इसी पुत्री का विवाह उत्तराखंड में कर दिया था।
देखिए, लव जिहाद को लेकर चर्चा-
'द हिंदू' को दिए गए अपने बयान में केसरपाल राठौर ने कहा कि उसके "पिता और परिजन स्वयं इस मामले को फिर से उभारने के पक्ष में नहीं थे।" उसका यह भी कहना है कि बहन के विवाह के बाद ओवैस और उसकी (बहन की) कोई बातचीत या मुलाक़ात नहीं हुई थी।
उधर, ओवैस के परिजनों ने पुलिस पर झूठा मामला गढ़ने का आरोप लगाया है। स्थानीय प्रमुख दैनिक 'अमर उजाला' से बातचीत में ओवैस की भाभी क़ुरैशा बी ने कहा कि उसका देवर रामपुर के बिलासपुर क़स्बे में रह कर कबाड़ का काम करता है। उन्होंने कहा, "ओवैस का उक्त लड़की से अब किसी प्रकार का कुछ भी लेना-देना नहीं है। काफी समय से वह हम लोगों से ही बात नहीं कर पाया है, लड़की की तो क्या बात।"
क़ुरैशा बी के अनुसार “नए क़ानून के चक्कर में पुलिस वाहवाही लूटने की ख़ातिर झूठा आरोप लगा रही है।” उसका कहना है कि अगर मामले की ईमानदारी से जांच होगी तो वह बेक़सूर साबित होगा।
लड़की के भाई का वक्तव्य और अभियुक्त की भाभी के आरोप बरेली की पुलिसिया कहानी में ज़बरदस्त पेच पैदा करते हैं। यदि मामले की जांच स्थानीय पुलिस ही करती है और इसे किसी अन्य एजेंसी को नहीं सौंपा जाता है तो यह मामला तो संदेहास्पद रहेगा ही, आने वाले समय में 'अधिनियम' के अंतर्गत दूसरे मुक़दमे भी आमजन के संदेह के घेरे में ही रहेंगे।
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