दिल्ली से सटे ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे मेरठ के 70 वर्षीय किसान ने एनडीटीवी के संवाददाता से कहा - ‘हम मोदी जी के बड़े शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने हिन्दू मुसलमान में बँट गए हम लोगों को इस आंदोलन के बहाने दोबारा जोड़ कर एक कर दिया।’
पश्चिम यूपी का किसान मोदी को क्यों शुक्रिया कह रहा है?
- विचार
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- 9 Dec, 2020

किसान आंदोलन' से जुड़े पश्चिमी यूपी के किसानों की एकता इस बात को भी दर्शाती है कि जब-जब जनतांत्रिक अधिकारों की बड़ी लड़ाई ज़ोर पकड़ेगी, समाज में व्याप्त सांप्रदायिक और जातिवादी उन्माद विलुप्त हो जायेंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पंजाब के किसानों से अलग राकेश टिकैत की सरकार के साथ बातचीत क्या रंग लाती है!
यह बयान अपने आप में पूरी कहानी कह गया। यह इस बात का सबूत दे गया कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन किसानों में एक नई राजनीतिक चेतना स्फुटित हुई है जो 2013 से अपने साझा 'किसान हितों' को भूलकर सांप्रदायिकता के बवंडर में घिर गए थे। इन 7 वर्षों (2013-2020) के बीच सम्प्रदायिकता के उन्माद ने 'प्रदेश' के इस पश्चिमी अंचल के समाज को हिंसा और घृणा में जिस तरह नष्ट किया, वह तो अपनी जगह है, उस किसान आंदोलन का कचूमर निकाल दिया था जो अपनी साझा संस्कृति और साझा विरासत के लिए पूरे उत्तर भारत में अपनी पहचान बना चुका था। 7 साल के सामाजिक एका का सन्नाटा अब आकर टूटा है। कृषि पर अध्यादेशों के बाद जब पंजाब में किसानों ने आंदोलन की राह पकड़ी तब पश्चिमी यूपी में उससे जनित सामाजिक दबाव था जिसने नेतृत्व पर सांप्रदायिक सौहार्द खड़ा करने को मजबूर किया।