क्या किसान आंदोलन को ‘अल्ट्रा लेफ़्ट’ द्वारा अगवा किये जाने के 'इंटेलिजेंस ब्यूरो' के आरोप में सचाई है? क्या सचमुच बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के इस आरोप में दम है कि इस समूचे ‘आंदोलन’ का केंद्र बने पंजाब के किसान आंदोलन पर लेफ़्ट हावी है? आज़ादी के बाद के दशकों में हुए देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन को घूम फिर कर लेफ़्ट के साथ जोड़कर क्यों देखा जा रहा है? क्या लेफ़्ट वाक़ई नए सिरे से प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभर रहा है?
भारत में लेफ़्ट का सूरज क्यों अस्त हो गया?
- राजनीति
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- 14 Dec, 2020

नये कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन में गाहे-बगाहे वामपंथियों का हाथ होने का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन मौजूदा दौर में वामपंथी दलों की जैसी हालत है उसमें क्या वे इतने सक्षम हैं कि इतने बड़े स्तर पर आंदोलन को खड़ा कर सकें?
ऐसे दौर में जब मोदी सरकार के बड़े पैमाने पर होने वाले निजीकरण, राष्ट्रीय परिसम्पत्तियों की बेधड़क बिक्री, श्रम क़ानूनों के निरस्तीकरण के विरुद्ध ‘ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच’ के आह्वान पर निजी और सरकारी क्षेत्रों के मज़दूर और कर्मचारी नवम्बर के आख़िरी हफ़्ते में एक दिन की देशव्यापी हड़ताल पर चले जाते हों तब भारत में ‘लेफ़्ट’ की प्रासंगिकता का आकलन ज़्यादा मुश्किल बात है?