यूपी में पुलिस मुठभेड़ टारगेट किलिंग के लिए मशहूर हो रही है। प्रयागराज में 8 दिनों में आज 6 मार्च को दूसरा एनकाउंटर हुआ। चार बार विधायक रहे अतीक अहमद इस समय सलाखों के पीछे है, लेकिन अब तक उनके दो करीबी लोग पुलिस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं। अतीक के दो बेटे जेल में हैं। उनके एनकाउंटर की आशंका अतीक के वकील ने जताई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 24 फरवरी को तमाम एनकाउंटरों को फर्जी बताते हुए पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि सपा सरकार आने पर तमाम अफसरों को जेल जाना पड़ेगा। दूसरी तरफ जाति विशेष के कथित अपराधियों को बचाने का आरोप भी लग रहा है।
अखिलेश के बयान से यूपी पुलिस पीछे नहीं हटी। उसने आज 6 मार्च को दूसरा एनकाउंटर कर दिया। 2020 में यूपी पुलिस ने बयान देकर स्वीकार किया था कि जिन कथित अपराधियों को उसने एनकाउंटर में मार गिराया, उसमें 37 फीसदी मुसलमान थे। यूपी पुलिस की सफाई दरअसल कानपुर के विकास दूबे एनकाउंटर के बाद आई थी। विकास दूबे एनकाउंटर के बाद बीजेपी के ब्राह्मण नेता नाराज हो गए थे और उन्होंने कथित तौर पर आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ की पुलिस सिर्फ ब्राह्मणों का एनकाउंटर कर रही है। उस समय स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का नाम ठाकुर टास्क फोर्स लिया जाने लगा था। सुल्तानपुर में लंभुआ के बीजेपी विधायक देवमणि द्विवेदी ने उस समय धमकी दी थी कि वो ब्राह्मणों को एनकाउंटर में मारे जाने का मामला विधानसभा में उठाएंगे। उसके बाद योगी सरकार की पुलिस ने आंकड़े जारी किए थे, जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम लोगों को बतौर अपराधी मारे जाने की बात कही गई थी।
इंडियन एक्सप्रेस की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी पुलिस ने अपने बयान में उस समय 42 महीनों का आंकड़ा दिया था। यानी 2017 से योगी के सत्ता में आने के बाद से एनकाउंटर शुरू हो गए थे। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 2020 में यूपी पुलिस ने एक बयान में कहा कि पिछले 42 महीनों के दौरान पुलिस के साथ एनकाउंटर में लगभग 124 अपराधियों को मार गिराया गया है। पुलिस ने खुलासा किया कि मुठभेड़ों में मारे गए कथित अपराधियों में 47 मुस्लिम, 11 ब्राह्मण, आठ यादव और 58 अन्य थे। अन्य में पिछड़े और दलित शामिल हैं।
आंकड़ों के अनुसार, 2017-18 में, योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले वर्ष के दौरान, 45 लोग पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए, जिनमें से 16 मुस्लिम थे। इनमें से ज्यादातर एनकाउंटर पश्चिमी यूपी के शामली, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिलों में हुए।
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हैरानी है कि यूपी पुलिस ने एनकाउंटर का इतना सटीक आंकड़ा जारी किया लेकिन किसी मानवाधिकार संगठन या जिम्मेदार विपक्षी दलों ने इस संदर्भ में कोई सवाल नहीं उठाया। यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल हैं लेकिन किसी भी एनकाउंटर पर इन दलों के नेताओं ने आवाज नहीं उठाई। इसके उलट जब विकास दूबे का एनकाउंटर हुआ तो पार्टी लाइन भूलकर सभी दलों के ब्राह्मण नेताओं ने योगी सरकार की खुलकर आलोचना की थी।
एक जैसा पैटर्नः ज्यादातर मामलों में, संदिग्धों को बाइक पर देखा गया। पुलिसकर्मियों ने रुकने का इशारा किया। आरोपी ने पुलिस पर फायरिंग कर भागने की कोशिश की। जवाबी फायरिंग में आरोपी या तो घायल हो गया या मारा गया। यही पैटर्न अतीक के दोनों नजदीकी अरबाज और उस्मान के मामले में भी अपनाया गया है।
योगी पर एक और गंभीर आरोपः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जनवरी 2022 में हिन्दुस्तान टाइम्स ने इंटरव्यू लिया था। उस इंटरव्यू में योगी से सवाल पूछा गया था कि क्या आप राजपूतों की पॉलिटिक्स करते हैं। जब लोग ये आरोप लगाते हैं तो क्या आपको तकलीफ होती है। इसके जवाब में योगी ने कहा था - नहीं कोई अफसोस नहीं होता है। क्षत्रिय जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं है। इस जाति में तो भगवान ने भी जन्म लिया है। हर शख्स को अपनी जाति पर स्वाभिमान होना चाहिए।
इस सूची का जाना-माना नाम उन्नाव के पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का है। जिन पर रेप और हत्या के आरोप हैं। सेंगर के खिलाफ 28 केस दर्ज हैं। विकास दूबे के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद यूपी पुलिस ने यही कहा था कि उस पर ढेरों मुकदमे थे। यानी विकास दूबे के एनकाउंटर को सही ठहराने की कोशिश की गई। वाराणसी के ब्रजेश सिंह पर 106 मामले, जौनपुर के धनंजय सिंह पर 46 केस, कुंडा (प्रतापगढ़) के राजा भैया पर 31 केस, गोंडा के ब्रजभूषण सिंह पर 84 केस हैं। इनमें हत्या के भी मामले हैं। इनके अलावा करीब एक दर्जन क्षत्रिय बाहुबली हैं, जिन पर केस हैं लेकिन वो इन नामों के मुकाबले ज्यादा चर्चित नहीं हैं।
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