देश में कोरोना की दूसरी लहर अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है। तीसरी लहर की जल्द आने की चेतावनी दी जा रही है। डेल्टा प्लस वायरस ने तेज़ी से अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं।
इस बीच बीजेपी ने अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश समेत पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोर-शोर से शुरू कर दी हैं। इसको लेकर बैठकों का दौर लगातार जारी है। कभी लखनऊ में मंथन हो रहा है तो कभी दिल्ली में।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या के विकास कार्यों की समीक्षा की। कोरोना काल की वजह से इस बैठक को वर्चुअल ही आयोजित किया गया।
बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और अन्य विकास कार्यों से जुड़े तमाम अधिकारी भी मौजूद रहे।
अयोध्या पर फ़ोकस
इस बैठक में पीएम मोदी के सामने अयोध्या का विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तुत किया गया। इस में बताया गया कि किस तरह से अयोध्या का आगामी एक वर्ष में कायाकल्प किया जाएगा।
अयोध्या के समग्र विकास को लेकर बैठक हुई। पीएम मोदी ने बैठक के दौरान मौजूद रहे सभी अधिकारियों और मंत्रियों से फीडबैक लिया। मोदी ने सुझाव दिया कि राम मंदिर बनने से पहले अयोध्या में सभी विकास कार्य पूरे कर लिए जाएँ।
अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है। इसे चुनाव से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए।
पीएम मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश समेत देश की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की है कि राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी के लिए आज भी सर्वोपरि है।
राम मंदिर का भरोसा
राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ अयोध्या के विकास के लिए किए गए वादों को पूरा करने के लिए तन मन धन से जुटी हुई है। उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी बीजेपी को इसका फ़ायदा मिलेगा।
दरअसल संघ परिवार अयोध्या को शुरू से ही एक विश्व स्तरीय धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का सपना संजोए हुए हैं।
वह शुरू से ही कहता रहा है कि जैसे मुसलमानों के लिए मक्का और ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी है, ठीक उसी तर्ज पर अयोध्या का विकास किया जाएगा। लगता है कि बीजेपी इसी परियोजना के सहारे चुनावी वैतरणी भी पार करना चाहती है।
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कोरोना की बदइंतजामी
दरअसल उत्तर प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान काफी अव्यवस्था रही। ऑक्सीजन की कमी से हज़ारों लोगों की मौत हुई। सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन सिलिंडर माँगने वालों के ख़िलाफ क़ानूनी कार्रवाही की गई।
सरकार पर कोरोना के मामले और इससे होने वाली मौत के आँकड़े छुपाने के भी आरोप हैं। इससे जनता में सरकार के ख़िलाफ़ काफी ग़ुस्सा है।
बीजेपी सब कुछ छोड़ छाड़ कर राम की शरण में चली गई है। बीजेपी को पूरा यकीन है कि इससे कोरोना की अव्यवस्था और महंगाई की मार झेल रहे उसके वोटर इन मुद्दों को भुलाकर उसकी शरण में आ जाएगा।
राम नाम के सहारे
दरअसल, राम नाम के सहारे ही बीजेपी आज इस मुकाम पर पहुँची है। केंद्र में पिछले 7 साल से उसकी सरकार है। ज़्यादातर राज्यों में भी सत्ता पर उसी का क़ब्ज़ा है। यह सब राम की कृपा से हुआ है।
1989 में बीजेपी ने पहली बार अयोध्या में बाबरी मसजिद की जगह राम मंदिर बनाने का मुद्दा उठाया था। तब वह 1984 में जीती 2 सीटों से बढ़कर 86 सीटों तक पहुँच गई थी। तब बीजेपी ने केंद्र में वी. पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को समर्थन दिया था।
दूसरी तरफ से इस सरकार को वामपंथियों का समर्थन हासिल था। वीपी सिंह ने पिछड़ों के आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया तो इसकी काट के लिए तब के बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर में रथ यात्रा निकालकर राम मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया।
यूपी में पहली बीजेपी सरकार
बीजेपी के इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने के बाद 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी थी। इसी के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवा के ज़रिए बाबरी मसजिद को तोड़ा गया।
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की बीजेपी की चार सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया था। इसके 10 महीने बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी।
दरअसल 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव की नई-नई बनी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस तरह दलित और पिछड़े वोटों के ध्रुवीकरण से बीजेपी सत्ता से दूर हो गई।
सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी को इस बात का एहसास हो गया था कि गठबंधन अगर लंबा चलता है तो बीजेपी का भविष्य अंधकार में है।
लिहाज़ा उसने जोड़-तोड़ करके पहले इस गठबंधन को तोड़ा। 1995 में बीएसपी को समर्थन देकर मायावती को पहली बार मुख्यमंत्री बनवा दिया।
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कल्याण सिंह की सरकार
1996 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनी। इसमें बीजेपी और बीएसपी ने छह छह महीने मुख्यमंत्री पद अपने पास रखने के फार्मूले के तहत सरकार बनाई।
पहला मौका बीएसपी को मिला। 1997 में मायावती ने अपने मुख्यमंत्री काल के 6 महीने पूरे करने के बाद बीजेपी को सत्ता हस्तांतरण करने से इनकार कर दिया। तब कल्याण सिंह ने बीएसपी में ही तोड़फोड़ करके बीजेपी की सरकार बना ली।
लेकिन कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ जल्दी ही पार्टी में बगावत हुई तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। हालात यहाँ तक पहुंचे की कल्याण सिंह को बीजेपी भी छोड़नी पड़ी।
उनकी जगह पहले रामप्रकाश गुप्ता और फिर राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन बीजेपी 2002 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई।
2017 का चुनाव
बीजेपी का यह वनवास 2017 में दूर हुआ। तब बीजेपी ने राम मंदिर के साथ हिंदू वादी मुद्दों और पीएम मोदी की ज़बरदस्त ब्रांडिंग के सहारे धमाकेदार तरीक़े से सत्ता में वापसी की। बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटों पर जीत हासिल की थी।
अब बीजेपी के सामने अपने इस पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है। बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर भी रस्साकशी और सिरफुटव्वल चल रही है।
पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और यहाँ तक कि संघ परिवार भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज से खुश नहीं बताया जाते हैं।
संतुष्ट नहीं संघ
कुछ दिन पहले संघ परिवार ने भी उत्तर प्रदेश के चुनावों को लेकर लखनऊ में मंथन बैठक की थी। उसके बाद योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए बीजेपी आलाकमान ने विशेष तौर पर बीएल संतोष को भेजा था।
उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके तमाम मंत्रों से अलग-अलग मुलाक़ात करके फीडबैक लिया।
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राम बाण!
बताया यह भी जा रहा है कि बीजेपी के विधायकों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के कामकाज को लेकर के काफी नाराज़गी है। इस नाराज़गी ख़ामियाज़ा बीजेपी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।इन तमाम तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए राम मंदिर निर्माण और खुद राम बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकते हैं।
बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का वादा पूरा करने के बाद पहली बार चुनाव में उतरेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि उस पर राम की कितनी कृपा होती है।
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