सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 10 जनवरी को निर्देश दिया कि संभल मस्जिद के सामने कुएं के संबंध में संभल नगर पालिका द्वारा जारी नोटिस पर अमल नहीं किया जाए। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने संभल शाही जामा मस्जिद समिति की याचिका पर ये निर्देश दिया। अदालत में 19 नवंबर, 2024 को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक अधिवक्ता आयुक्त को मुकदमे में मस्जिद का सर्वे करने का निर्देश दिया गया था। ट्रायल कोर्ट में याचिका के जरिये दावा किया गया था कि मुगलकालीन ढांचा एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।
लाइव लॉ के मुताबिक मस्जिद कमेटी के वरिष्ठ वकील हुफ़ेज़ा अहमदी ने अदालत का ध्यान संभल नगर पालिका द्वारा जारी नोटिस की ओर दिलाया। जिसमें कुएं को मंदिर का हिस्सा होने का दावा किया गया था।
सीजेआई ने पूछा कि "दूसरों को इसका इस्तेमाल करने की इजाजत देने में क्या नुकसान है। अब वे क्या कहते हैं। इस पर वकील हुफैजा अहमदी ने कहा कि नोटिस में इसे 'हरि मंदिर' कहा गया है, अब वे इसे पूजा, स्नान आदि के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे। जबकि कुएं का इस्तेमाल मस्जिद के काम के लिए किया जा रहा है। लोग इससे वहां वजू आदि करते हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक मस्जिद कमेटी ने अदालत में एक अंतरिम आवेदन भी दायर किया, जिसमें कहा गया कि नगर पालिका द्वारा कुएं को मंदिर के रूप में दिखाने वाले पोस्टर लगाए गए हैं। क्षेत्र में पुराने मंदिरों और कुओं की खोज और पुनरुद्धार के लिए प्रशासन ने एक अभियान शुरू किया। इसके बाद ये पोस्टर लगाए गए।
पीठ ने मस्जिद समिति द्वारा दायर अंतरिम आवेदन पर नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया कि नगर पालिका द्वारा जारी नोटिस को प्रभावी न किया जाए। यानी उस पर अमल न किया जाए।
दूसरे पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि कुआं मस्जिद के बाहर है। यह विशेष अनुमति याचिका का विषय नहीं हो सकता, जो ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ है। वकील अहमदी ने इस पर कोर्ट को बताया कि कुआं मस्जिद परिसर के "आधा अंदर, आधा बाहर" है।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी नजर
सीजेआई ने संजीव खन्ना ने कहा कि कोर्ट संभल के हालात की "कड़ी निगरानी कर रहा है ताकि शांति और सद्भाव कायम रहे।"
यूपी राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने कहा कि स्थिति शांतिपूर्ण है और "वे बस एक मुद्दा बनाना चाहते हैं।" अहमदी ने आरोप लगाया कि राज्य पक्षपातपूर्ण व्यवहार कर रहा है।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने संभल ट्रायल कोर्ट को चंदौसी की शाही जामा मस्जिद के खिलाफ मुकदमे में तब तक आगे नहीं बढ़ने का निर्देश दिया था, जब तक कि सर्वे आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सूचीबद्ध नहीं हो जाती। यानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चंदौसी की मस्जिद का भी मुद्दा उसी तरह उठाया गया।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मस्जिद का सर्वे करने वाले एडवोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखा जाए और इस बीच इसे खोला नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार सांप्रदायिक सद्भाव के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 43 के तहत सामुदायिक मध्यस्थता के लिए एक शांति समिति बनाये।
गौरतलब है कि कोर्ट ने 12 दिसंबर को पूजा स्थल 1991 अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि लंबित मुकदमों (जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह, संभल जामा मस्जिद आदि से संबंधित) में किसी भी निचली अदालत द्वारा पारित नहीं किया जाना चाहिए। इसमें प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश, सर्वेक्षण के आदेश भी शामिल हैं। इसके बाद जौनपुर की अटाला मस्जिद को लेकर हुए ऐसे ही प्रयासों को लोकल अदालत ने ही रोक दिया था।
इस सप्ताह की शुरुआत में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की मस्जिद के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर 25 फरवरी तक रोक लगा दी है। लेकिन संभल में सरकार और उसके तमाम विभागों की ओर से तरह तरह की कार्रवाई जारी है, जिससे कि समुदाय विशेष उकसावे में आये। मसलन संभल के आसपास तमाम जगहों पर खुदाई के आदेश दिये गये। कई कस्बों में मुस्लिम बस्ती के बीच मंदिर खोज निकालने के दावे हुए। एक जगह मंदिर की खुदाई के दौरान उसके नीचे मुगलकालीन दीवारें और बावड़ी निकल आई। यूपी के हर गांव-शहर में अब सिर्फ मंदिर-मस्जिद की चर्चा है। इलाहाबाद (प्रयागराज) में महाकुंभ और अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शनिवार को धार्मिक आयोजन करने की पहल के साथ पूरी सरकार धार्मिक कार्यों में जुटी हुई है।
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