loader
संभल के मंदिर में पूजा करती पुलिस

संभलः नफरती मीडिया और प्रशासन ने मंदिर पर कब्जे की झूठी कहानी फैलाई

मीडिया में एक कहानी शुक्रवार को आग की तरह फैली। संभल प्रशासन ने दावा किया कि शहर में सांप्रदायिक दंगों के बाद 1978 से बंद एक मंदिर को शुक्रवार को फिर से खोल दिया। अधिकारियों ने दावा किया कि शाही जामा मस्जिद से कुछ ही दूरी पर स्थित मंदिर को अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान अधिकारियों की नजर पड़ने के बाद खोला गया। भस्म शंकर मंदिर में हनुमान मूर्ति और एक शिवलिंग है। यहां की एसडीएम वंदना मिश्रा ने दावा किया कि "इलाके का निरीक्षण करते समय, हमारी नजर इस मंदिर पर पड़ी। इस पर ध्यान देने पर, मैंने तुरंत जिला अधिकारियों को सूचित किया।" वंदना ने कहा, "हम सभी एक साथ यहां आए और मंदिर को फिर से खोलने का फैसला किया।" एसडीएम के इस बयान को कुछ टीवी चैनलों, एएनआई न्यूज एजेंसी और हिन्दी मीडिया ने इसे फौरन हिन्दू-मुसलमानों के बीच विवाद के रूप में पेश कर दिया। 

एबीपी चैनल के एक रिपोर्टर ने मौके पर जाकर जब पड़ताल की तो सारी कहानी सामने आई गई। एबीपी रिपोर्टर ने एक काम यह अच्छा किया कि उसने इस मंदिर को बननवाने वाले रस्तोगी परिवार के हर आयु वर्ग के लोगों से बात की और सभी ने एक ही जैसे तथ्य बताये। जिन चैनलों और न्यूज एजेंसी ने योगी सरकार के प्रशासन के साथ मिलकर संभल के इस मंदिर को लेकर जो फर्जी तथ्य फैलाये, क्या वो अब माफी मांगेंगे। बहरहाल, आपको यह पूरी कहानी जाननी चाहिए। सत्य हिन्दी पर जानिएः 
ताजा ख़बरें
इस मंदिर को बनवाने वाले रस्तोगी परिवार के धर्मेंद्र रस्तोगी ने सभी झूठे दावों से साफ इनकार करते हुए कहा कि मंदिर 2006 तक खुला था। वहां मुसलमानों या किसी का कोई डर नहीं था। मंदिर की चाबी रस्तोगी परिवार के पास थी, मंदिर के आसपास कोई अतिक्रमण नहीं था। मंदिर के बगल वाला कमरा भी उन्हीं के द्वारा बनवाया गया था।

धर्मेंद्र रस्तोगी और उनके बेटे ने कहा कि स्थानीय मुसलमानों से कभी डर नहीं था। उन्होंने मंदिर के बगल में 'अतिक्रमण' के बारे में एक और फर्जी खबर का भी खंडन किया, कहा कि मंदिर वैसा ही है, कोई अतिक्रमण नहीं है। मंदिर के बगल वाला कमरा उन्होंने 2006 में उनके जाने से पहले बनवाया था।

एक अन्य स्थानीय, प्रदीप वर्मा ने कहा कि वो 1993 तक उसी गली में रहे। जब वे कभी-कभार इलाके में आते थे, तो वे नियमित रूप से पूजा करते थे और मंदिर की चाबियाँ रस्तोगी परिवार के पास रहती थीं। वह आगे कहते हैं वो पूजा करके चले जाते थे, यहां रुकते नहीं थे।
रस्तोगी परिवार की इन बुजुर्ग को भी सुनिए। उनकी बात से मीडिया की फर्जी कहानी का जबरदस्त खंडन हो रहा है। 
एबीपी न्यूज के मुताबिक मोहम्मद सलमान उसी गली के रहने वाले हैं, उनका कहना है कि मंदिर की चाबियां उनके पड़ोसी मोहन रस्तोगी के पास थीं। यह भी दावा है कि इलाके के मुसलमान मंदिर के बाहरी हिस्से की पेंटिंग करके मंदिर की देखभाल करते थे, मंदिर के बगल में कमरा (गोदाम) रस्तोगी परिवार द्वारा बनाया गया था।
उसी गली के एक अन्य स्थानीय शारिक कहते हैं, समाचार चैनल डर के कारण अतिक्रमण और हिंदू पलायन के बारे में फर्जी खबरें चला रहे हैं। कहते हैं, मोहल्ले में हर किसी को खबर थी कि यह मंदिर है। सभी हिंदुओं से अपील है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से मंदिर आएं।
एक और स्थानीय, मोहम्मद शुएब ने कहा कि तमाम न्यूज़ चैनल एक फेक नैरेटिव बना रहे हैं। 1998-2006 के बीच निजी कारणों से लोगों ने इलाका छोड़ना शुरू कर दिया। 1976 के दंगों के बाद नहीं, जैसा दावा किया गया था। पंडित जी के बेटे भोला किशन, उदित रस्तोगी सभी दोस्त थे जो साथ खेलते थे।  शुएब आगे कहते हैं, जब प्रशासन ने मंदिर की चाबियां मांगी तो रस्तोगी परिवार ने ही चाबियां दीं। जब पत्रकारों ने पूछा कि आपने अतिक्रमण क्यों नहीं रोका, तो उन्होंने जवाब दिया, यह कमरा रस्तोगी परिवार द्वारा पूजा के लिए बनाया गया था जिसे बाद में उनके अपने परिवार द्वारा गौदान के रूप में इस्तेमाल किया गया था।  
धर्मेंद्र रस्तोगी ने दोहराया किमंदिर पर कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है. मंदिर के बगल की चहारदीवारी और कमरा उनके परिवार द्वारा बनवाया गया था। चाबियाँ हमेशा रस्तोगी समाज के पास रहती थीं जो उन्होंने पुलिस को दे दी थीं। जगह को सुरक्षित करने के लिए रस्तोगी ने चहारदीवारी बनवाई थी। 
उत्तर प्रदेश से और खबरें
आल्ट न्यूज के संस्थापक सह संपादक जुबैर अहमद जो पेशेवर फैक्ट चेकर हैं, ने बताया कि झूठी कहानी को आगे बढ़ाने में एएनआई की बहुत बड़ी भूमिका है। ट्वीट्स की संख्या देखें- उन्होंने 'मंदिर खोजा गया', 'मंदिर 4 दशकों से बंद था', 'अतिक्रमण किया गया था', '1978 के बाद फिर से खोला गया' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह सब केयर टेकर (रस्तोगी परिवार) और स्थानीय मुसलमानों ने खारिज कर दिया है। बता दें कि संभल में 24 नवंबर को जबरदस्त हिंसा हुई थी। जिसमें 4 मुस्लिम युवक मारे गये थे। पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की थी। पुलिस का कहना है कि मुस्लिमों की दो गुटों में आपसी लड़ाई में गोलियां चली थीं। जबकि पूरी दुनिया ने देखा कि शाही मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा और उत्तेजना किसने फैलाई और कैसे पुलिस ने दखल दिया।

एएनआई पर ऐसा आरोप पहली बार नहीं लगा है। देश में एएनआई मोदी सरकार की तरफ झुकाव के लिए बदनाम हो चुकी है। लेकिन अपराध की खबर देते समय भी उसका पूर्वाग्रह बरकरार रहता है। आरोपी अगर समुदाय विशेष का होगा तो एएनआई उसका नाम तलाश कर जरूर देती है। लेकिन आरोपी अगर बहुसंख्यक समुदाय से है, और उनमें भी तथाकथित उच्च वर्ग से है तो वो आरोपी का नाम छिपा लेती है। उसके ऊपर आरोप है कि वो अक्सर नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के बयान तोड़ मरोड़ कर पेश करती है। अभी हाल ही में उसने कांग्रेस और आप के बीच सीट बंटवारे की कहानी चलाई तो आप प्रमुख केजरीवाल ने उसका फौरन ही खंडन कर दिया। 
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

उत्तर प्रदेश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें