काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को अयोध्या के राम मुद्दे की तरह गरम करने और इस पर आन्दोलन चलाने के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पशोपेश में है। पहले वह इस मुद्दे को तूल देना नहीं चाहता था और तर्क देता था कि 'संघ का काम आन्दोलन चलाना नहीं है'। पर अब उसका कहना है कि 'यदि समाज इस पर पहल करता है तो विचार किया जाएगा।'
बता दें कि काशी के विश्वनाथ मंदिर से ज्ञानव्यापी मसजिद सटी हुई है और मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर शाही इदगाह के पास स्थित है।
मामला क्या है?
दरअसल बीते दिनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक हुई, जिसमें 13 महंतों ने भाग लिया। इसमें सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया कि काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर और मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को 'मुक्त' कराया जाए। यह तय किया गया कि सबसे पहले अखाड़ा परिषद इससे जुड़े ए़फ़आईआर दर्ज करवाए और उसके बाद क़ानूनी लड़ाई शुरू करे। उसके बाद संविधान के दायरे में रहते हुए इस पर आन्दोलन खड़ा किया जाए। इसके तहत विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मदद ली जाए।संघ की भूमिका यहीं से शुरू होती है। परिषद ने कहा कि जिस तरह राम जन्मभूमि विवाद का मुद्दा सुलझा लिया गया, उसी तरह आरएसएस की मदद से इन दोनों मंदिरों के मामले को भी सुलझा लिया जाए।
आरएसएस का क्या कहना है?
पहले संघ इस मुद्दे पर बिल्कुल दिलचस्पी नहीं ले रहा था। संघ के संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था,
“
'संघ आन्दोलन से नहीं जुड़ता है। हम चरित्र निर्माण के लिए काम करते हैं। अतीत में स्थितियां अलग थीं, इसका नतीजा यह निकला कि संघ अयोध्या आन्दोलन से जुड़ गया। हम एक बार फिर चरित्र निर्माण के काम में जुटेंगे।'
मोहन भागवत, सरकार्यवाह, राष्ट्री स्वयंसेवक संघ
भागवत का संदेश साफ है। उनके कहने का मतलब यह है कि संघ का काम आन्दोलन चलाना नहीं है, अयोध्या का मामला अलग था, पर अब इसमें नहीं पड़ना है, हिन्दुओं को संगठित करना है। यानी उसे काशी और मथुरा के मंदिर आन्दोलों से न जोड़ा जाए
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक के बाद संघ के रवैए में बदलाव के संकेत दिखने लगे है। अब उसने कहा है, 'यह हमारी पहल नहीं होगी। यदि समाज ऐसा करता है तो हम विचार करेंगे। काशी और मथुरा विषय नहीं हैं और हम समाज को प्रेरित नहीं करेंगे।'
यानी संघ खुद कुछ नहीं कहेगा, लेकिन यदि आन्दोलन खड़ा होता है तो वह समय आने पर विचार करेगा। यह संघ के रुख में हल्का बदलाव ही कहा जाएगा।
इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए कि बाबरी मसजिद के ध्वंस के बाद विश्व हिन्दू परिषद के लोग कहा करते थे, 'अयोध्या तो बस झाँकी है, काशी, मथुरा बाकी है।'
बता दें कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991, के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल का धर्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को जैसा था, उसे नहीं बदला जा सकता है। इसके बाद राम जन्मभूमि मंदिर को छोड़ बाकी सभी मुद्दों पर इस तरह की क़ानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई।
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