कोरोना के चलते उत्तर प्रदेश में वसूली, कुर्की की कार्रवाई पर उच्च न्यायालय ने रोक दी है। इसके साथ ही सार्वजनिक संपत्ति क्षति पर योगी सरकार के अध्यादेश के ख़िलाफ़ याचिका उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर ली है। इन सबके बाद नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए विरोधी हिंसा के आरोपियों को नोटिस, कुर्की, वसूली, मुक़दमों का सिलसिला रुका नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सीएए के विरोध में हुई हिंसा के चलते सार्वजनिक नुक़सान के लिए आरोपियों से जुर्माना वसूलने को लगायी गयी होर्डिंग पर उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर छुट्टी के दिन सुनवाई की थी। अदालत ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पूछा था कि किस क़ानून के तहत होर्डिंग लगायी गयी और इसे हटाकर 16 मार्च तक कंप्लायंस रिपोर्ट देने को कहा था। अपनी ज़िद पर आमादा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उच्च न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गयी जहाँ से उसे कोई राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने मामला तीन जजों की बेंच को सौंप दिया। हालाँकि इसके बाद भी कंप्लायंस वाले दिन योगी सरकार ने उच्च न्यायालय में शपथपत्र दाखिल कर समय माँगा और मामला सुप्रीम कोर्ट में होने की दलील दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी आधार पर सरकार को 10 अप्रैल तक का समय भी दे दिया है।
वसूली अध्यादेश को अदालत में चुनौती
हाल ही में लाए गए यूपी लोक एव निजी संपत्ति क्षति वसूली अध्यादेश की वैधता को चुनौती देते हुए एक याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दाखिल की गयी है। याचिका को स्वीकार करते हुए बुधवार को उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से जवाब माँगा है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अपना जवाब 25 मार्च तक दाखिल करने को कहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस समित गोपाल की पीठ इस मामले की 27 मार्च को सुनवाई करेगी। योगी सरकार के अध्यादेश को संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ बताते हुए अधिवक्ता अस्मां इज्जत, शशांक श्री त्रिपाठी और महाप्रसाद ने इस पर रोक लगाने और रद्द करने की माँग की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संविधान की धारा 323 बी व 213 के तहत यह अध्यादेश लाया गया है जबकि यह सीआरपीसी व पब्लिक प्रापर्टी डैमेजेज एक्ट के प्रावधानों के विपरीत है और सरकार के पास ऐसा कुछ करने की शक्ति नहीं है।
वसूली के लिए बना रहे दबाव, कुर्की की धमकी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार देर शाम जारी एक आदेश में अगले दो सप्ताह तक किसी भी तरह की वसूली जनता से किए जाने पर रोक लगा दी है। यह आदेश बैंकों, सरकारी संस्थाओं, अभिकरणों, प्राधिकरणों व सभी वित्तीय संस्थाओं के लिए 6 अप्रैल तक लागू किया है। हालाँकि इस सबके बीच सीएए विरोधी हिंसा के आरोपियों से वसूली की कार्रवाई जारी है। लखनऊ ज़िला प्रशासन ने बुधवार को उच्च न्यायालय का आदेश आने के बाद भी 13 लोगों को 21.76 लाख रुपये की वसूली की नयी नोटिस थमा दी है। प्रशासन ने एक सप्ताह में पैसा जमा न करने पर कुर्की की धमकी भी दी है। इन 13 लोगों की तसवीरों के साथ होर्डिंग भी लगायी गयी थीं पर बुधवार को इन सबके घरों पर वसूली नोटिस चिपका दी गयी है। लखनऊ ज़िला प्रशासन ने पूरे शहर में 53 लोगों से 1.53 करोड़ रुपये वसूली की नोटिसें जारी की हैं।
सीएए हिंसा पर सुनवाई 25 मार्च को
सीएए विरोध में उत्तर प्रदेश के कई शहरों में हुई हिंसा की न्यायिक जाँच की माँग को लेकर उच्च न्यायालय में याचिकाएँ दाखिल की गयी हैं। बुधवार को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए 25 मार्च को सुनवाई का आदेश दिया है। न्यायिक जाँच की माँग वाली इन याचिकाओं पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार से 16 मार्च तक रिपोर्ट माँगी थी। अदालत ने सरकार से हिंसा में मारे गए लोगों के नाम व विवरण के साथ उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट माँगे थे। इसके साथ ही अदालत ने सरकार से पूछा था कि पुलिस की ज़्यादती के ख़िलाफ़ कितनी शिकायतें दर्ज की गयीं और कितने पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ क्या क्या कार्रवाई की गयी है। राज्य सरकार ने 16 मार्च को रिपोर्ट दाखिल कर दी है जिसमें उसने 25 लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने की बात स्वीकारी है।
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