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कोरोना: फिर बैठने के वादे के साथ स्थगित हुआ घंटाघर का सीएए विरोधी धरना

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) के विरोध में बीते 63 दिनों से राजधानी लखनऊ के ऐतिहासिक घंटाघर पर चल रहे महिलाओं के धरने को कोरोना वायरस के कहर के चलते स्थगित कर दिया गया है। धरना दे रही महिलाओं ने सोमवार को घंटाघर खाली कर दिया। रविवार को ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक और किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वरिष्ठ डाक्टर कौसर उस्मान ने महिलाओं से धरना स्थगित करने की अपील की। मशहूर शायर मुनव्वर राना की बेटी और सीएए विरोध का प्रमुख चेहरा रहीं सुमैय्या राना, कांग्रेस नेत्री व सामाजिक कार्यकर्ता सदफ ज़फर ने भी शनिवार और रविवार को धरना स्थल पर जाकर महिलाओं से कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते धरना स्थगित करने की अपील की थी। 
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सदफ ज़फर ने महिलाओं से कहा था कि धरना स्थगित कर दिया जाए और हालात सामान्य होने पर इसे फिर से शुरू किया जाए। धरना स्थल पर शुरुआत से डटी रहीं मीडियाकर्मी काविश अज़ीज लेनिन ने भी धरना स्थगित करने की अपील की थी। सोमवार सुबह धरना समाप्त होने के बाद पुलिस ने सभी महिलाओं को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाया।

धरना समाप्त करने से पहले महिलाओं ने भावुक भाषण दिए व हालात माकूल होने पर फिर लौटने व धरना शुरू करने का वादा भी किया। उन्होंने एक ज्ञापन भी सहायक पुलिस आयुक्त को सौंपा है। ज्ञापन में लिखा है कि कोरोना वायरस का प्रकोप खत्म होने पर वे प्रदर्शन करने वापस आएंगी। 

धरना स्थल पर सांकेतिक तौर पर मौजूदगी के लिए प्रदर्शनकारी महिलाएं अपना दुपट्टा छोड़कर गई हैं। उनका कहना है कि यह दुपट्टा इस बात का प्रतीक है कि वे दिल से अब भी यहीं मौजूद हैं। जल्द लौटेंगे कहकर एक-दूसरे को समझाते, रोते हुए महिलाओं का हुजूम घंटाघर से अपने घरों की ओर रवाना हो गया। घंटाघर के खाली होने के बाद लखनऊ प्रशासन ने पूरे घंटाघर क्षेत्र की सफाई करवाई, इसे सैनेटाइज किया और वहां पुलिस बल तैनात कर दिया।

दो माह से ज़्यादा समय तक चले इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने कई बार प्रदर्शनकरियों को हटाने का अथक प्रयास किया और एक दर्जन से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज किये। प्रदर्शनकारी महिलाओं के परिवार वालों को तक गिरफ्तार किया गया।

पुलिस पर लगा प्रताड़ना का आरोप

पुलिस पर आरोप लगा कि उसने कड़कड़ाती ठंड में महिलाओं के कम्बल छीन लिये और खाने-पीने का सामान भी उन तक नहीं पहुंचने दिया। प्रदर्शनकरियों के समर्थन में आए लोगों को परेशान किया गया, कईयों पर मुक़दमे लादे गए और उन्हें हिरासत में लिया गया। पुलिस ने घंटाघर पर बने बाथरूम तोड़ दिये और टेंट तक नहीं लगने दिया गया। इस बीच कई बार बारिश हुई और ओले भी गिरे। धरने के दौरान 2 प्रदर्शनकारी महिलाओं की तबीयत ख़राब होने से उनकी जान तक चली गयी। 
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पुलिस के रवैये से उलझा मामला

कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत के बाद से ही इस धरने को स्थगित करने के प्रयास किए जा रहे थे। महिलाओं को संगठित करने में जुटे लोगों ने इसके लिए उन्हें समझाना शुरू किया था और राजी भी कर लिया था। लेकिन इस बीच पुलिस ने दो बार धरनास्थल पर जबरन लोगों को धमकाया और मुक़दमे दर्ज किये तो इससे महिलाएं भड़क गयीं। बीते कुछ सालों से मुसलिम समुदाय में सक्रिय एक संगठन के लोगों ने धरने को जारी रखने का जोरदार प्रयास किया।

फ़ैसले का किया स्वागत 

सदफ ज़फर ने धरना स्थगित करने के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि महिलाओं ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा है। उन्होंने कहा कि अगर पुलिस और प्रशासन पहले ही बर्बरता न करके समझदारी का रवैया अपनाते, तो यह पहले ही किया जा सकता था। सुमैय्या राना ने कहा कि संविधान बचाने निकली महिलाओं ने पहले देश की अवाम को बचाना ज्यादा ज़रूरी समझा और इसीलिए धरने को स्थगित किया है। कविश अज़ीज लेनिन ने कहा कि देश से बढ़कर कुछ भी नहीं है। इसे महिलाओं ने समझा और धरना स्थगित कर दिया है। रंगकर्मी दीपक कबीर ने कहा कि लोगों को बचाना ज्यादा ज़रूरी है जबकि जीवन की गरिमा व बेहतरी की लड़ाई आगे लड़ी जाएगी। 

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कुमार तथागत
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