पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
जीत
पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
जीत
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
जीत
तीन सालों से दलितों से जुड़े मुद्दों पर लड़ रहे भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ ने रविवार को कांशीराम जयंती के मौक़े पर अपनी सियासी पारी की शुरुआत कर ही दी। क्या भीम आर्मी प्रमुख के सक्रिय राजनीति में आने से बीएसपी सुप्रीमो मायावती की मुसीबतें बढ़ सकती हैं?
चंद्रशेखर ‘रावण’ ने बीते कुछ दिनों से अपनी अलग राजनैतिक पार्टी बनाने के संकेत देने शुरू कर दिए थे। उनके इस इरादे पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया भी दी थी। अपने राजनैतिक दल ‘आज़ाद समाज पार्टी’ का एलान करते हुए चंद्रशेखर ने दलित-मुसलिम गठजोड़ को आज की सियासी ज़रूरत बताते हुए इसी पर काम करने का इरादा जताया।
चंद्रशेखर आज़ाद ने गठजोड़ की कवायद भी शुरू कर दी है। उनकी पहली नज़र मायावती के रवैये के चलते बीएसपी से अलग हुए विभिन्न जातीय समूहों के कद्दावर नेताओं पर तो है ही, वह मुसलिम नौजवानों के कई संगठनों को भी अपने साथ लाना चाहते हैं।
मायावती से बीते कुछ सालों में अलग हुए नेताओं में से कुछ ने अपना अलग राजनैतिक दल भी खड़ा किया है। राजभर समाज की भारतीय समाज पार्टी, कुशवाहा समाज की जनाधिकार पार्टी, गड़रिया समाज की पाल महासभा के नेताओं से चंद्रशेखर ‘रावण’ की बातचीत हो चुकी है। हाल के दिनों में मुसलिमों में अपनी पैठ बना चुके और आतंकवाद के नाम पर निर्दोष मुसलिम नौजवानों को फंसाने के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने वाले संगठन रिहाई मंच के नेताओं के भी संपर्क में भीम आर्मी प्रमुख बीते काफी समय से हैं।
आने वाले दिनों में कुर्मियों के ताक़तवर संगठन अपना दल से विमुख हुए कुछ प्रमुख कुर्मी नेता भी चंद्रशेखर के साथ जुड़ सकते हैं। इनमें दस्यु सरगना ददुआ व कुर्मी महासभा के अध्यक्ष बाल कुमार पटेल शामिल हैं। रावण के साथियों का कहना है कि दलितों की सबसे प्रमुख जाति जाटव के साथ मुसलमानों व अति पिछड़ों जैसे - केवट, कहार, मल्लाह, राजभर, काछी, गड़रिया व माली को अपने साथ जोड़ना आज़ाद समाज पार्टी की प्राथमिकता होगी।
चंद्रशेखर ‘रावण’ के राजनैतिक दल बनाने पर बिफरीं मायावती ने इसे दलित समाज को बाँटने की साज़िश बताया है। कांशीराम जयंती पर मायावती के भाषण का बड़ा हिस्सा ‘रावण’ पर ही केंद्रित रहा, जिसमें उन्होंने ‘रावण’ को ख़ूब खरी-खोटी सुनायी। मायावती ने अपने मतदाताओं, कार्यकर्ताओं को आगाह करते हुए कहा कि उन्हें बरगलाने के लिए बाबा साहेब अंबेडकर के नाम का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने ‘रावण’ का नाम लिए बिना कहा कि यह दुखी और पीड़ित समाज को बाँटने की साज़िश है।
मायावती ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि महज सियासी फ़ायदे के लिए दलितों का प्रयोग किया जा रहा है। अनर्गल मुद्दों व विवादों के लिए लिए दलितों को गुमराह किया जा रहा है। ‘रावण’ पर सीधे निशाना साधते हुए बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि भीम आर्मी प्रमुख को दलितों से कुछ भी लेना-देना नहीं है, बल्कि वह उनके वोट बाँट कर किसी और को फ़ायदा पहुँचाना चाहते हैं।
बसपा के भीतर मायावती ने अपने परिवार को छोड़कर अन्य किसी जाटव नेता को उभरने ही नहीं दिया। जाटव समाज के उत्पीड़न की कुछ हालिया घटनाओं पर मायावती की चुप्पी और ‘रावण’ की सक्रियता ने ज़रूर बसपा के कैडर में बेचैनी पैदा कर दी है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें