बाबरी मसजिद विध्वंस के मुक़दमे में अभियुक्तों की सूची में पहला नाम तत्कालीन यूपी शिवसेना के अध्यक्ष पवन पांडे का है जबकि आडवाणी, जोशी सहित अन्य का नाम साज़िश रचने वालों में है। पवन पांडे यूपी में पहली और अब तक आखिरी बार शिवसेना के टिकट से जीतने वाले विधायक रहे हैं। आज भी पांडे के अंबेडकरनगर जिले में स्थित आवास पर बाबरी मसजिद के अवशेष किसी प्रतीक चिन्ह की तरह रखे हुए हैं।
राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन कार्यक्रम में उन्हें बुलाया तक नहीं गया है। बाबरी मसजिद विध्वंस के अन्य प्रमुख आरोपियों- संतोष दुबे और गांधी यादव को भी पूछा तक नहीं गया है। पांडे के साथ ये सब भी ढांचा गिराने के आरोपी हैं और मुक़दमे का सामना कर रहे हैं।
दरअसल, 90 के दशक में ये सभी राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे और कारसेवा के दौरान अयोध्या में मौजूद थे। अदालत में इन सभी ने ढांचा गिराने में अपनी भूमिका को नकारा नहीं बल्कि इस पर गर्व जताते हुए स्वीकार किया है।
हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के इस रवैये से आहत पवन पांडे ने 5 अगस्त को अंबेडकर नगर में अपने गांव में ही रहकर पूजा-पाठ करने का फ़ैसला किया है। ट्रस्ट की ओर से हो रही अनदेखी और अपने मन मुताबिक़ मंदिर न बनने को लेकर इन सभी ने अब हस्ताक्षर अभियान चलाने का फ़ैसला किया है।
'ट्रस्ट में राजनीति हावी'
ट्रस्ट की ओर से न बुलाने के फ़ैसले से आहत पवन पांडे ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सदस्यों के चयन से लेकर मंदिर के निर्माण की परिकल्पना तक में मनमानी की गयी है।
‘हमें अपने किए पर गर्व है’
राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता महंत रामचंद्र दास परमहंस को याद करते हुए वो कहते हैं कि उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए शिलादान कार्यक्रम चलाया था और आज भी ये शिलाएं अयोध्या के सरकारी मालखाने में जमा हैं। कम से कम ट्रस्ट को महंत जी का सम्मान करते हुए उन शिलाओं का उपयोग करना चाहिए।
पवन ने बातचीत में कहा, ‘मैंने, संतोष दुबे और गांधी यादव ने अन्य अभियुक्तों की तरह अदालत में मुकरने का काम नहीं किया बल्कि अपने किए को स्वीकार किया है। हमें अपने किए पर गर्व है।’
पवन का कहना है, ‘अदालत में हमने कहा था कि बाबर आक्रांता था जिसने मंदिर पर कब्जा कर वहां मसजिद बना दी थी। अब तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे मान लिया है और मंदिर की जमीन राम लला को लौटा दी है। इसका मतलब साफ है कि हमारा कहना सही था और हमने तो अपनी ज़मीन से अवैध कब्जे को हटाया था।’
पवन ने कहा, ‘आज बीजेपी की नजर में हम कारसेवक लोग असामाजिक तत्व हो गए हैं और हमें मंदिर निर्माण से दूर रखा जा रहा है। जिन लोगों ने अदालत में कहा कि बाबरी मसजिद की गुम्बद उनके सामने गिरायी गयी, उन्हें ही मंदिर के भूमि पूजन से दूर रखा जा रहा है।’
राजनैतिक करियर दांव पर लगाया
मंदिर आंदोलन के समय 1992 में शिवसेना यूपी के अध्यक्ष रहे पवन पांडे इस पार्टी के प्रदेश में पहले विधायक बने थे। उनका कहना है कि बाबरी मसजिद विध्वंस के आरोप में उन्हें 16-17 बार जेल जाना पड़ा था। पवन ने कहा, ‘हम लोगों में से छह ने अपनी स्वीकारोक्ति के साथ अदालत में बयान दिया और उनमें से एक अभी भी जेल में है। हमें न तो ट्रस्ट में जगह दी गयी और न ही भूमि पूजन में बुलाने लायक समझा जा रहा है।’
पवन का कहना है कि बाबरी मसजिद के गिरने के बाद से उन्हें वनवास काटना पड़ा है। यहां तक कि बीजेपी में भी उनकी कोई जगह नहीं रही है और आज वो किसी भी राजनैतिक दल में नहीं हैं।
हस्ताक्षर अभियान शुरू
मंदिर आंदोलन के इन प्रमुख किरदारों का कहना है कि भूमि पूजन के दिन यानी 5 अगस्त को वे अपने घरों पर रहकर पूजा-पाठ करेंगे और राम को याद करेंगे। पवन पांडे कहते हैं कि उन लोगों ने जनता के बीच 11 सूत्री मांगों को लेकर हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है। इसमें मंदिर को बड़े भू-भाग में बनाना, संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल करना और महंत रामचंद्र दास परमहंस की दी हुई शिलाओं को मंदिर निर्माण में प्रयोग लाने जैसी कई मांगें शामिल हैं।
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